नमस्कार दोस्तों हम आप लोगों को अपने इस पोस्ट में बताएंगे कि प्राकृतिक चिकित्सा का अर्थ क्या होता है तथा इसकी परिभाषा क्या होती है क्योंकि बहुत से लोग नहीं जानते होंगे कि प्राकृतिक चिकित्सा का अर्थ क्या होता है तथा इसकी परिभाषा क्या होती है इसलिए जिन लोगों को पता नहीं है उन लोगों को घबराने की बात नहीं है क्योंकि हम अपने इस पोस्ट में बहुत ही विस्तार से बताने वाले हैं कि प्राकृतिक चिकित्सा का अर्थ क्या है और इसकी परिभाषा क्या है जिसे पढ़कर आप लोग बहुत ही आसानी से जान सकते हैं क्योंकि हमने इसके बारे में बहुत ही सरल तथा शुद्ध भाषा में बताया है जिससे आप लोगों को पढ़ने में बहुत ही आसानी होगी और आप लोगों को समझने में भी आसानी होगी I हमने इस पोस्ट में प्राकृतिक चिकित्सा से संबंधित और भी कई सवालों के बारे में बताएं हैं जैसे प्राकृतिक चिकित्सा का अर्थ और परिभाषा क्या होता हैं , प्राकृतिक चिकित्सा का इतिहास क्या है , योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा का जीवन में क्या महत्व है , प्राकृतिक चिकित्सा का जन्म एवं विकास कब हुआ , प्राकृतिक चिकित्सा के 10 सिद्धांत इन सभी सवालों के जवाब हम बताने वाले हैं जिसे पढ़कर आप लोग बहुत ही आसानी से जान सकते हैं क्योंकि हम इन सभी सवालों के बारे में बहुत ही विस्तार से बताएंगे I आइए सबसे पहले हम आप लोगों को बताते हैं कि प्राकृतिक चिकित्सा का अर्थ और परिभाषा क्या होता हैं I
प्राकृतिक चिकित्सा का अर्थ /Meaning of naturopathy.

प्राकृतिक चिकित्सा सभी चिकित्सा प्रणालियों में सर्वाधिक पुरानी चिकित्सा पद्धति है। प्राचीन काल से पंचमहाभूतों- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश तत्व की महत्ता की है। प्राकृतिक चिकित्सा न केवल उपचार की पद्धति है यह एक जीवन पद्धति है इसे बहुधा औषधि विहीन उपचार पद्धति कहा जाता है। यह पूर्णरूप से प्रकृति के सामान्य नियमों के पालन पर आधारित है। प्राकृतिक चिकित्सा प्रकृति पर आधारित चिकित्सा को कहते है। शरीर से संचित विजातीय द्रव्यों को प्राकृतिक साधनों द्वारा निकालना एवं जीवनी शकित को उन्नत करना तथा रोग ग्रस्त अंग को जीवनी शक्ति प्रदान करना ही प्राकृतिक चिकित्सा का उद्देश्य है।
प्राकृतिक चिकित्सा पंच तत्व पर आधारित चिकित्सा पद्धति है। प्राकृतिक चिकित्सा में पंच तत्वों को प्रयोग करके ही चिकित्सा की जाती है। पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि, आकाश इन तत्वों से ही शरीर का निर्माण हुआ है। इन तत्वों के असंतुलन के कारण ही रोग या विकृति उत्पन्न होती है। प्राकृतिक चिकित्सा में पंच तत्वों का संतुलन बनाकर रोग दूर होते है। प्राकृतिक चिकित्सा में उपचार की तुलना में स्वास्थ्य वर्धन पर अधिक महत्व दिया जाता है। प्राकृतिक चिकित्सा स्वस्थ जीवन जीने की एक कला विज्ञान है। प्राकृतिक चिकित्सा एक चिकित्सा पद्धति नहीं जीवन जीने की कला है जो हमें आहार, निद्रा, सूर्य का प्रकाश , पेयजल, विशुद्ध हवा, सकारामकता एवं योग विज्ञान का समुचित ज्ञान कराती है।
प्राकृतिक चिकित्सा व्यक्ति को उसके शारीरिक, मानसिक, नैतिक तथा आध्यात्मिक तलों पर प्रकृति के रचनात्मक सिद्धांतों के अनुकूल निर्मित करने की एक पद्धति है। इसमें स्वास्थ्य संवर्धन रोगों से बचाव व रोगों को ठीक करने के साथ ही आरोग्य प्रदान करने की अपूर्व क्षमता है।
प्राकृतिक चिकित्सा की परिभाषा /Definition of naturopathy.
1.प्रो0 जीसेफ स्मिथ एम.डी /Prof. Joseph Smith MD.
दवाओं से रोग अच्छा नहीं होता बल्कि केवल दबाता है। रोग हमेशा प्रकृति अच्छा करती हैं।
2.महात्मा गाँधी /Mahatma Gandhi.
जिसे हवा, पानी और अन्न का परिणाम समझ में आ गया वह अपने शरीर को स्वस्थ रख सकता है उतना डाक्टर कभी भी नहीं रख सकता।
3.जुस्सावाला जे0एम0 /Jussawala JM.
प्राकृतिक चिकित्सा एक विस्तृत शब्द है जो रोगोपचार के सभी प्रणालियों के लिये उपयोग किया जाता है जिसका उद्देश्य प्राकृतिक शक्ति एवं शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता के साथ सहयोग करना है। यह व्याधि से मुक्त कराने का एक भिन्न तरीका है जिसका जीवन स्वास्थ्य एवं रोग के संबन्ध में अपना स्वयं का एक दर्शन है।
4.पं0 श्रीराम शर्मा आचार्य /Pt. Shriram Sharma Acharya.
प्राकृतिक चिकित्सा का अर्थ है प्राकृतिक पदार्थों विशेषत: प्रकृति के पांच मूल तत्वों द्वारा स्वास्थ्य रक्षा और रोग निवारक उपाय करना।
प्राकृतिक चिकित्सा का इतिहास /History of naturopathy.
हम आप लोगों को प्राकृतिक चिकित्सा का इतिहास क्या है इसके बारे में बताने वाले हैं क्योंकि लोगों को नहीं पता होगा कि प्राकृतिक चिकित्सा का इतिहास क्या है क्योंकि प्राकृतिक चिकित्सा है बहुत ही पुराना इतिहास है इसलिए लोग इसके बारे में नहीं जानते हैं इसलिए जो लोग नहीं जानते हैं उन्हें घबराने की कोई बात नहीं है क्योंकि हम बताने वाले हैं कि प्राकृतिक चिकित्सा का इतिहास क्या है जिससे आप लोग भी जान सकते हैं कि प्राकृतिक चिकित्सा का इतिहास क्या है बस आप लोगों को हमारे इस पोस्ट को एक बार पढ़ना होगा क्योंकि हम बहुत ही विस्तार से बताने वाले हैं कि प्राकृतिक चिकित्सा का इतिहास क्या है I
प्राकृतिक चिकित्सा का इतिहास उतना ही पुराना है जितना स्वयं प्रकृति। यह चिकित्सा विज्ञान आज की सभी चिकित्सा प्राणालियों से पुराना है। अथवा यह भी कहा जा सकता है कि यह दूसरी चिकित्सा पद्धतियों कि जननी है। इसका वर्णन पौराणिक ग्रन्थों एवं वेदों में मिलता है, अर्थात वैदिक काल के बाद पौराणिक काल में भी यह पद्धति प्रचलित थी।
प्राकृतिक चिकित्सा उतनी ही पुरानी है जितनी की प्रकृति स्वयं है और उनके आधार भूत तत्व पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश। प्रकृति के तत्व जिनसें जीवन की उत्पत्ति होती है सदैव वही तत्व रोगों को दूर करने में सहायक रहे। प्राचीन काल से ही तीर्थ स्नान पर घूमना, उपवास रखना, सादा भोजन करना, आश्रमों में रहना , पेड़ पौधों की पूजा करना, सूर्य, अग्नि, तथा जल की पूजा करना आदि कर्म के अंग माने जाते रहे है यदि किसी प्राकृतिक नियमों को तोड़ने में कोई कभी अस्वस्थ हो जाता था तो उपवास, जड़ी-बूटियों तथा अन्य प्राकृतिक साधनों का प्रयोग करके स्वस्थ हो जाता हैै ।
योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा का जीवन में महत्व बताइए /Explain the importance of yoga and naturopathy in life.
योग या प्राकृतिक चिकित्सा का जीवन में क्या महत्व होता है इसके बारे में हम आप लोगों को बताएंगे क्योंकि बहुत से लोग नहीं जानते होंगे कि हमारे जीवन में योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा का क्या महत्व होता है इसलिए हम आप लोगों को इसके बारे में बताएंगे जिससे आप लोग को भी पता हो सके कि हमारे जीवन में योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा का क्या महत्व होता है क्योंकि अगर बहुत से लोगों से पूछ लिया जाए कि प्राकृतिक चिकित्सा क्या होता है या प्राकृतिक चिकित्सा का हमारे जीवन में क्या महत्व होता है तो शायद नहीं बता पाएंगे इसलिए हम आप लोगों को इसके बारे में नीचे बहुत ही विस्तार से तथा पॉइंट के आधार पर बताएंगे जिससे आप लोग पढ़कर आसानी से जान सकते हैं कि हमारे जीवन में योग और प्राकृतिक चिकित्सा का क्या महत्व है तो आइए हम आप लोगों को बताते हैं कि योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा का हमारे जीवन में क्या महत्व है I
योग चिकित्सा का महत्व /Importance of yoga therapy.
एक जीवन पद्धति है, जिसे पतंजलि ने क्रमबद्ध ढंग से प्रस्तुत किया था। इसमें यम, नियम, आसन,प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान व समाधि आठ अंग है। योग के इन अंगों के अभ्यास से सामाजिक तथा व्यक्तिगत आचरण में सुधार आता है, शरीर में ऑक्सीजन युक्त रक्त के भली-भॉति संचार होने से शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, इंद्रियां संयमित होती है तथा मन को शांति एवं पवित्रता मिलती है। योग के अभ्यास से मनोदैहिक विकारों/व्याधियों की रोकथाम, शरीर में प्रतिरोधक शक्ति की बढोतरी तथा तनावपूर्ण परिस्थितियों में सहनशक्ति की क्षमता आती है। ध्यान का, जो आठ अंगो में से एक है, यदि नियमित अभ्यास किया जाए तो शारीरिक अहितकर प्रतिक्रियाओं को घटाने की क्षमता बढती है, जिससे मन को सीधे ही अधिक फलदायक कार्यो में संलग्न किया जा सकता है।
एक जीवन पद्धति है, तथापि, इसके प्रोत्साहक, निवारक और रोगनाशक अन्तःक्षेप प्रभावोत्पादक है। योग के ग्रंथो में स्वास्थ्य के सुधार, रोगों की रोकथाम तथा रोगों के उपचार के लिए कई आसानों का वर्णन किया गया है । शारीरिक आसनों का चुनाव विवेकपूर्ण ढंग से करना चाहिए। रोगों की रोकथाम, स्वास्थ्य की उन्नति तथा चिकित्सा के उद्देश्यों की दृष्टि से उनका सही चयन कर सही विधि से अभ्यास करना चाहिए । अध्ययनों से यह प्रदर्शित होता है कि योगिक अभ्यास से बुद्धि तथा स्मरण शक्ति बढती है तथा इससे थकान एवं तनावो को सहन करने, सहने की शक्ति को बढाने मे तथा एकीकृत मनोदेहिक व्यक्तित्व के विकास में भी मदद मिलती है। ध्यान एक दूसरा व्यायाम है, जो मानसिक संवेगों मे स्थिरता लाता है तथा शरीर के मर्मस्थलों के कार्यो को असामान्य करने से रोकता है । अध्ययन से देखा गया है कि ध्यान न केवल इन्द्रियों को संयमित करता है, बल्कि तंत्रिका तंत्र को भी नियंमित करता है। योग के वास्तविक प्राचीन स्वरूप की उत्पत्ति औपनिषदिक परम्परा का अंग है। तत्व ज्ञान एवं तत्वानुभूति के साधन के रूप में योग का विकास किया गया।
प्राकृतिक चिकित्सा का महत्व /Importance of naturopathy.
प्राकृतिक चिकित्सा न केवल उपचार की पद्धति है, अपितु यह एक जीवन पद्धति है । इसे बहुधा औषधि विहीन उपचार पद्धति कहा जाता है। यह मुख्य रूप से प्रकृति के सामान्य नियमों के पालन पर आधारित है। जहॉ तक मौलिक सिद्धांतो का प्रश्न है इस पद्धति का आयुर्वेद से निकटतम सम्बन्ध है। प्राकृतिक चिकित्सा के समर्थक खान-पान एवं रहन सहन की आदतों , शुद्धि कर्म, जल चिकित्सा, ठण्डी पट्टी, मिटटी की पट्टी, विविध प्रकार के स्नान, मालिश तथा अनेक नई प्रकार की चिकित्सा विधाओं पर विशेष बल देते है।
मिट्टी चिकित्सा /Mud therapy.
मिट्टी जिसमें पृथ्वी तत्व की प्रधानता है जो कि शरीर के विकारों विजातीय पदार्थो को निकाल बाहर करती है। यह कीटाणु नाशक है जिसे हम एक महानतम औषधि कह सकते है।
मिट्टी की पट्टी का प्रयोग /Use of clay.
उदर विकार , विबंध , मधुमेह, शिर दर्द, उच्च रक्त चाप ज्वर, चर्मविकार आदि रोगों में किया जाता है। पीडित अंगों के अनुसार अलग अलग मिट्टी की पट्टी बनायी जाती है।
वस्ति /Vasti.
उपचार के पूर्व इसका प्रयोग किया जाता जिससे कोष्ट शुद्धि हो। रोगानुसार शुद्ध जल नीबू जल, तक्त, निम्ब क्वाथ का प्रयोग किया जाता है।
जल चिकित्सा /Hydrotherapy.
इसके अन्तर्गत उष्ण टावल से स्वेदन , कटि स्नान, टब स्नान, फुट बाथ, परिषेक , वाष्प स्नान, कुन्जल , नेति आदि का प्रयोग वात जन्य रोग पक्षाद्घात राधृसी , शोध, उदर रोग, प्रतिश्याय , अम्लपित आदि रोगो में किया जाता है।
सूर्य रश्मि चिकित्सा /Sun rays therapy.
सूर्य के प्रकाश के सात रंगो के द्वारा चिकित्सा की जाती है।यह चिककित्सा शरीर मे उष्णता बढाता है स्नायुओं को उत्तेजित करना वात रोग,कफज , ज्वर , श्वास , कास ,आमवात पक्षाधात , ह्रदयरोग , उदरमूल , मेढोरोग वात जन्यरोग ,शोध चर्मविकार, पित्तजन्य रोगों में प्रभावी हैं।
उपवास /Fasting.
सभी पेट के रोग, श्वास, आमवात , सन्धिवात , त्वक विकार, मेदो वृद्धि आदि में विशेष उपयोग होता है।
प्राकृतिक चिकित्सा के 10 सिद्धांत /10 principles of naturopathy.
हम आप लोगों को बताने वाले हैं कि प्राकृतिक चिकित्सा के सिद्धांत क्या होते हैं क्योंकि लोगों को नहीं पता होगा कि प्राकृतिक चिकित्सा का क्या सिद्धांत होता है इसलिए हम आप लोगों को बताएंगे कि प्राकृतिक चिकित्सा का क्या सिद्धांत होता है और हम प्राकृतिक चिकित्सा के 10 सिद्धांत के बारे में बताएंगे जिससे आप लोगों को प्राकृतिक चिकित्सा के 10 सिद्धांत के बारे में आसानी से पता हो सके I क्योंकि हम नीचे प्राकृतिक चिकित्सा के 10 सिद्धांत के बारे में बहुत ही विस्तार से और सरल शब्दों में बताने वाले हैं जिसे पढ़कर आप लोग बहुत ही आसानी से जान सकते हैं I तो आइए हम आप लोगों को पॉइंट के आधार पर बताते हैं कि प्राकृतिक चिकित्सा के 10 सिद्धांत क्या होते हैं I
1.प्राकृतिक चिकित्सा में मन, शरीर तथा आत्मा तीनों की चिकित्सा की जाती है /In naturopathy, the mind, body and soul are treated.
प्राकृतिक चिकित्सा में शारीरिक मानसिक, आध्यात्मिक तीनों पक्षों की चिकित्सा एक साथ की जाती है। शरीर, मन और आत्मा तीनों के सामंजस्य का नाम ही पूर्ण स्वास्थ्य है क्योंकि शरीर के साथ मन जब तक स्वस्थ नहीं है तब तक व्यक्ति को पूर्ण स्वस्थ नहीं कहा जा सकता है। और शरीर, मन तभी स्वस्थ रह सकते हैं जब आत्मा स्वस्थ हो, केवल शरीर को ही स्वस्थ रखना मनुष्य का कर्तव्य नहीं है क्योंकि मन और आत्मा शरीर के अभिन्न अंग है। बिना मन के खुश हुये हमारी इंद्रियां कैसे खुश रह सकती है। यदि मन स्वस्थ नहीं हैं तो विशाल काय शरीर भी कुछ समय में समाप्त हो जाता है। प्राकृतिक चिकित्सा में इन तीनों की स्वास्थ्योन्नति पर बराबर ध्यान रखा जाता है।
भारतीय दर्शन के अनुसार आध्यात्मिक रूप से मनुष्य ही पूर्ण रूप से स्वस्थ होता है वही , जीवन के परम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। क्योंकि आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति ही एक स्वस्थ समाज की स्थापना कर सकता है। जहां हिंसा, द्वेष, क्रोध, घृणा आदि विकृत मानसिकता न पनप सके। प्राकृतिक चिकित्सा शारीरिक स्वास्थ्य के साथ ही महत्-तत्व चिकित्सा, राम नाम चिकित्सा पर भी बल देती है जिससे मनुष्य आत्म संयम सीख सके और अपनी जीवन शैली को बदलकर संपूर्ण जीवन को उचित दिशा दे सके।
2.सभी रोग एक हैं, और उनका कारण भी एक ही है, और उनका उपचार भी एक ही है /All diseases are one, and their cause is the same, and their treatment is also the same.
सभी रोग, उनके कारण उनकी चिकित्सा भी एक है चोट और वातावरणजन्य परिस्थितियों को छोड़कर सभी रोगों का मूल कारण एक ही है और उसका उपचार भी एक है शरीर में विजातीय पदार्थों की संग्रह हो ताना जिससे रोग उत्पन्न होते है। उनका निष्कासन ही चिकित्सा है। प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति का मौलिक सिद्धांत वह है। प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार सभी रोग एक ही है। रोग को अलग-अलग नामों से जाना जाता है जिस प्रकार चांदी से बने आभूषणों के अलग अलग नाम हैं जैसे- कंगन, पायल, अंगूठी आदि उसी प्रकार एक ही विजातीय द्रव्य के अलग अलग स्थान पर एकत्र होने के कारण रोग के अनेकों नाम हैं। रोग का एक मात्र कारण विजातीय द्रव्य है। जिसे टॉक्सिक मैटर कहते हैं, शरीर एक मशीन के समान कार्य करता है जिसके कारण हमारे शरीर में विजातीय द्रव्य एकत्र होते रहते हैं और उत्सर्जन तंत्र के माध्यम से बाहर निकाला जाता है। जैसे पसीने के रूप में, मल मूत्र के रूप में और जब यही मल जब शरीर से सुचारु रूप से नहीं निकलता तो शरीर के विभिन्न स्थानों पर जमा होने लगता है, और वही सड़ने लगता है जिसके कारण रोग होते हैं। जैसे आंतों की सफाई न होने पर कब्ज होती है जिसके कारण बवासीर और फिसर जैसे रोग होते हैं अंन्त में इनका व्यापक रूप हमारा रक्त भी दूषित कर देता है जिससे चर्मरोग होता है।
3.प्राकृतिक चिकित्सा में निदान की विशेष आवश्यकता नहीं /No special need for diagnosis in naturopathy.
प्राकृतिक चिकित्सा के सिद्धांत के अनुसार सभी रोग एक है और उनके कारण भी एक ही हैं ऐसी अवस्था में रोग निदान की विशेष आवश्यकता नही रह जाती है। वर्तमान समय में रोग के निदान के लिये बड़ी बड़ी मशीनें व उपकरण प्रयोग में लाये जाते हैं जिनके माध्यम से शरीर में रोग का पता लगाया जाता है जिनके विपरीत प्रभाव रोगी पर देखने को मिलता है। एक्सरे मशीन से आंखों की रोशनी प्रभावित होती है। गर्भाशय शिशु पर विपरीत प्रभाव पड़ता है यहां तक की बच्चा अपंग पैदा हो सकता है। इस प्रकार की मशीनों के अत्यधिक प्रयोग से रोग निवारण नहीं रोग को बढ़ाया जा रहा है बल्कि शरीर और दूषित होता है इसके अतिरिक्त रोगी पर अत्यधिक आर्थिक दबाव पड़ती है जिससे मानसिक रूप से क्षुब्ध हो जाता है लेकिन प्राकृतिक चिकित्सा में किसी भी उपकरण की सहायता के बिना आकृति निदान की व्यवस्था है रोगी की आकृति को देखकर सिर्फ यह पता लगाना है कि शरीर के किस भाग पर विजातीय द्रव्य की अधिकता है। चहेरे को देखकर, गर्दन को देखकर और पेट को देखकर ही रोगों का निदान किया जाता है जो एक बहुत ही सरल और सहज प्रकिय्रा है। रोगी को किसी प्रकार की परेशानी नही होती और आर्थिक दबाव बिल्कुल नहीं होता है।
4.रोग का कारण कीटाणु नहीं /Germs do not cause disease.
रोग का मुख्य कारण कीटाणु नहीं है। जीवाणु शरीर में जीवनी शक्ति के हास होने के कारण एवं विजातीय पदार्थों के संग्रह के पश्चात् तब आक्रमण कर पाते है जब शरीर में उनके रहने और पनपने लायक अनुकूल वातावरण तैयार हो जाता है अत: मूलकारण विजातीय पदार्थ है जीवाणु नहीं है जीवाणु तो दूसरा कारण है। उपर्युक्त सिद्धांत से स्पष्ट हो जाता है कि रोग का एक मात्र कारण विजातीय द्रव्य हैं तो कीटाणु रोग का कारण कैसे हो सकते हैं। स्वस्थ शरीर में कीटाणुओं का अस्तित्व नहीं रहता लेकिन इसके विपरीत रोगियों में विभिन्न प्रकार के कीटाणु प्रवेश करते रहते हैं और रोगी को जर्जर करते रहते हैं। ऐसा क्यों होता है, यह एक प्राकृतिक नियम है कि सृष्टि में जितने पदार्थ हैं इनके सूक्ष्म परमाणु अनवरत रूप से गतिशील रहते हैं।
जिस प्रकार गुड़ के पास ही मक्खियां आती है। ठीक उसी प्रकार गंदगी में ही मच्छर आते हैं क्योंकि कीटाणुओं भी जीवित रहने के लिये उनका आहर चाहिये जो कि स्वस्थ व्यक्ति में उन्हें नहीं मिलता और वे जीवित नहीं रह पाते। इसके विपरीत रोगी के शरीर में उनका चौगुना विकास होता है। यही कारण है कि किसी भी प्रकार के कीटाणुओं के संक्रमण में 100 प्रतिशत लोग प्रभावित नहीं होते वही उसकी चपेट में आ जाते हैं। जिनका रहन सहन सही नहीं है जीवनी शक्ति प्रबल होती है उनमें कीटाणु जीवित नहीं रह पाते इसीलिये वह स्वस्थ रहते हैं। इससे स्पष्ट है कि रोग के प्रभाव का प्रथम कारण एक मात्र विजातीय द्रव्य ही होते हैं कीटाणु नहीं।
5.प्राकृतिक चिकित्सा में उत्तेजक औषधियों के सेवन का प्रश्न ही नहीं /There is no question of using stimulant drugs in naturopathy.
प्राकृतिक चिकित्सा में औषधियों का प्रयोग नहीं होता है। प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार आधार ही औषधि है। औषधि उपचार का सिद्धांत है कि रोग बाहरी चीज है जिसका शरीर पर आक्रमण होता है। अत: इसे औषधियों के माध्यम से दूर करना चाहिये। बाहर से आये कीटाणुओं को औषधियों से समाप्त करना चाहिये। जबकि संपूर्ण प्रकार की औषधियां एक प्रकार का विष हैं जिनसे व्यक्ति ठीक कैसे हो सकता है। एक निर्धारित मात्रा से अधिक लेने पर व्यक्ति की मौत हो सकती है लेकिन विष तो विष है आज नही तो कल अपना प्रभाव दिखायेगा ही। क्योंकि एक ही बार में ली गयी नींद की गोलियां व्यक्ति को तुरंत समाप्त कर देती हैं। लेकिन धीरे धीरे ली गयी गोलियां व्यक्ति को पंगु बनाती हैं शरीर को धीरे धीरे खाती हैं आज मिलने वाली दवा पर कुछ समय बाद प्रतिबंध लग जाता है। सभी दवाओं पर सावधानी के निर्देश दिये रहते हैं।
फिर भी मनुष्य उनका उपयोग करता रहता है लेकिन प्राकृतिक चिकित्सा में किसी प्रकार की औषधियों का प्रयोग नहीं किया जाता है। औषधियों को अत्यधिक हानिकारक माना जाता है जिससे रोग कम होने के बजाय बढ़ता जाता है। प्राकृतिक चिकित्सा मानती है कि शरीर औषधि से नही बल्कि प्रकृति से निर्मित हुआ है इसलिये पंचतत्वीय शरीर की चिकित्सा के लिये पंच तत्वों का ही प्रयोग किया जाता है क्योंकि प्रकृति से बड़ा चिकित्सक और कोई नहीं है। प्रकृति के सभी सप्राण खाद्य पदार्थ ही औषधि है। शुद्ध वायु, धूप, जल आदि ही औषधि हैं जो रोग को दूर करने की क्षमता रखते हैं।
6.तीव्र रोग शत्रु नहीं मित्र होते हैं /Acute diseases are friends not enemies.
तीव्र रोग चकि शरीर के एक उपचारात्मक प्रयास है अत: हमारे शत्रु नहीं है। जीर्ण रोग तीव्र रोगों को दबाने से और गलत उपचार से पैदा होते है। प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार रोगों को दो श्रेणी में बांटा गया है। 1. तीव्र रोग, 2. जीर्ण रोग।
1.तीव्र रोग के कारण शरीर से विजातीय द्रव्यों का निष्कासन भी हो जाता है जैसे- उल्टी , दस्त हाने से पेट और ऑंतों की सफाई हो जाती है। जुकाम व बुखार में यही विजातीय द्रव्य पसीने के रूप में बाहर निकलते हैं और जीवनीशक्ति का पुन: विकास होने लगता है। तीव्र रोग हमारे अंदर के विष को बाहर निकालने का कार्य करते हैं किन्तु हम घबराकर औषधियों के माध्यम से उनके कार्य में रूकावट डाल देते हैं जिससे तीव्र रोग कुछ समय बाद जीर्ण रोग का रूप ले लेते हैं।
2.जीर्ण रोग वह होते हैं जो शरीर में दबे रहते हैं और लंबे समय के बाद प्रकट होते हैं जिनके शरीर में रहते हुये हमारा शरीर काम तो करता है लेकिन अंदर से क्षतिग्रस्त होता रहता है और लंबे समय तक शरीर में बने रहते हैं क्योंकि इनकी जड़ें शरीर में जम चुकी होती हैं इसके विपरीत तीव्र रोग वह होते हैं जिनकी अवस्था में शरीर कार्य करने में सक्षम नहीं हो पाता है और यह शरीर में तीव्र गति से आते है और वैसे ही तीव्र गति से चले भी जाते हैं। प्राकृतिक चिकित्सा में तीव्र रोगों को मित्र कहा गया है जिस प्रकार सामने से वार करने वाले से खतरनाक छिपकर वार करने वाला होता है। उसी प्रकार तीव्र रोग सामने से वार करता है इससे व्यक्ति को संभलने का अवसर मिल जाता है।
7.प्रकृति स्वयं चिकित्सक है /Nature itself is the healer.
प्रकृति स्वयं सबसे बड़ी चिकित्सा है शरीर में स्वयं रोगों से बचने व अस्वस्थ हो जाने पर पुन: स्वस्थ प्राप्त करने की क्षमता विद्यमान है। प्रकृति जीव का संचालन करती है जो प्रत्येक जीवन के पार्श्व में रहकर उसके जन्म , मरण, स्वास्थ्य एवं रोग आदि का ध्यान रखती है, उस महान शक्ति को जीवनी शक्ति, प्राण आदि कहते हैं। शरीर की समस्त क्रियायें इसी के माध्यम से संपन्न होती हैं। हमारा खाना पीना, बोलना चालना, उठना बैठना सब इसी पर निर्भर है। मां अपने बच्चे के लिये इन सब बातों का जैसे ध्यान रखती है वैसे ही प्रकृति भी हमारा ख्याल रखती है, और जब तक बच्चा मां के पास रहता है वह अपने आप को सुरक्षित महसूस करता है। जिस प्रकार खाना खिलाते समय यदि खाना अटक जाये तो मां बच्चे को पीठ पर जोर से मारती है पानी पिलाती है। ठीक इसी प्रकार से प्रकृति भी हर तरह से ध्यान रखती है। जब खाना गलती से श्वास नली में चला जाता है तो प्रकृति के समान ही तुरंत खांसी उत्पन्न कर उसे बाहर निकाल देती है।
इसी प्रकार जब कोई भी जहरीली चीज मुंह में चली जाती है तो तुरंत उल्टी होने लगती है और जहर बाहर निकल जाता है। घाव हो जाने पर उसे कौन भरता है, हड्डी टूट जाने पर उसे कौन जोड़ता है। चिकित्सक केवल सहारा देता है, लेकिन हड्डी को जोड़ नहीं सकता। यह कार्य केवल और केवल प्रकृति रूप में मां ही कर सकती है। संसार में प्रकृति से बड़ा चिकित्सक कोई नहीं है, प्रकृति ही सभी साध्य व असाध्य रोगों का उपचार करती है। प्राकृतिक चिकित्सा तो प्रकृति के कार्य में सहायक के रूप में कार्यकरता है।
8.जीर्ण रोगी के आरोग्य में समय लग सकता है /Recovery of chronic patient may take time.
जीर्ण रोगी का अर्थ है जिसमें रोग लंबे समय से बैठा है। उसे समाप्त करने में समय लगता है। जीर्ण रोग न तो बहुत जल्दी आते है और न ही पलक झपकते ठीक हो सकते हैं। जीर्ण रोग उस पेड़ के समान होते हैं जो कई वर्षों से अपनी जड़े जमाये हुये हैं इसलिये उसकी जड़े जमीन में बहुत अंदर तक चली जाती है। पेड़ को तने से बहुत जल्दी काटा जा सकता है। इसी प्रकार जीर्ण रोग भी शरीर में बहुत जड़ें बना लेते हैं और उन्हें जड़ से मिटाने में थोड़ा समय लगता है।
यह मनुष्य का दुर्भाग्य ही है कि वह प्रकृति से दूर होता जा रहा है और कृत्रिम दुनिया में जी रहा है। आज की औषधियां इसी का उदाहरण है जिन्हें खा कर मनुष्य सोचता है कि वह स्वास्थ्य को प्राप्त कर रहा है। परन्तु सत्य यह है कि वह खुशी से जहर खा रहा है जो धीरे धीरे उसे अंदर से खाये जा रहा है जिसका पता उसे कुछ समय बीत जाने के बाद लगता है। जब वह एक रोग को दूर करने के लिये ली गई औषधियों के कारण दूसरे रोग को आमंत्रित कर देता है।
प्राकृतिक चिकित्सा में जीर्ण रोगी के स्वास्थ्य लाभ में समय लगने का एक महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि व्यक्ति हर जगह से थक हार कर इसकी ओर मुड़ता है और फिर अपने साथ जगह जगह से एकत्र किया हुआ औशधीय विष लेकर आता है जो प्राकृतिक चिकित्सक के कार्य को और भी बढ़ा देता है। जिससे रोगी के आरोग्य लाभ में समय लग सकता है। इस लिये रोगी को धैर्यपूर्वक प्राकृतिक चिकित्सा करवानी चाहिये जिससे पूर्ण लाभ मिल सके।
9.प्राकृतिक चिकित्सा में दबे रोग उभरते हैं /Buried diseases emerge in naturopathy.
प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा रोग भी उभर कर ढीक हो जाते है। वर्तमान औषधीय चिकित्सा में जहां उभरे रोग दब जाते हैं, उसके विपरीत प्राकृतिक चिकित्सा में दबे रोग उभरते हैं जिसके कारण कई रोगी अविश्वास करने लगते है कि उनकी बीमारियां बढ़ गई हैं। जबकि बीमारियां बढ़ती नहीं हैं बल्कि अप्रत्यक्ष से प्रत्यक्ष में आ जाती हैं जिससे उनका उपचार किया जा सकता है।
प्राकृतिक चिकित्सा में इसे सकारात्मक रूप में लिया जाता है, क्योंकि इसका अर्थ है हमारी जीवनी शक्ति अपना कार्य रही है। जिस प्रकार एक सामान्य ज्वर की चिकित्सा के समय तीव्र सिरदर्द व पेट दर्द एवं दस्त भी हो सकते हैं। क्योंकि सिरदर्द होने पर हम दवा से दबा देते हैं। इसी प्रकार पेटदर्द होने पर भी हम इसे दवा से दबा देते हैं, और दस्त को रोक देते हैं जिससे मल शरीर में ही अलग-अलग स्थानों पर जमा हो जाता है और प्राकृतिक उपचार के समय यह बाहर निकलने का प्रयास करता है जिससे सभी रोग उभर आते हैं I
एक प्राकृतिक चिकित्सक का कर्तव्य है कि इन उभारों की अनदेखी न करें और तत्काल उनकी चिकित्सा करें। जिससे रोगी की जीवनी शक्ति का अधिक क्षय न हो। रोगी को इससे घबराने की आवश्यकता नही है। रोगी को यह सोचना चाहिये कि उनका रोग जड़ से ही समाप्त हो रहा है जिससे उसके दुबारा हाने की संभावना लगभग समाप्त हो जाती है।
10.चिकित्सा रोग की नहीं संपूर्ण शरीर की होती है /The medicine is not of the disease but of the whole body.
प्राकृतिक चिकित्सा में चिकित्सा रोग की नहीं बल्कि रोगी की होती है। अन्य चिकित्सा पद्धतियों में केवल रोग निवारण पर बल दिया जाता है परन्तु प्राकृतिक चिकित्सा केवल रोग का ही नहीं अपितु संपूर्ण शरीर की चिकित्सा करती है जिससे रोग स्वत: मिट जाता है क्योंकि रोग का मूल कारण तो शरीर में एकत्र विष है। जैसे सिरदर्द होने पर अधिकांश लोग दवाओं का प्रयोग करते हैं जिससे कुछ समय के लिये दर्द समाप्त हो जाता है लेकिन बार बार होता रहता है क्योंकि उसकी जड़ तो कहीं और ही होती है। प्राकृतिक चिकित्सा में पेट तथा आंतों को साफ करके सिरदर्द को पूर्ण रूप से समाप्त किया जाता है।
इसके साथ ही शरीर के शुद्धि करण से सिरदर्द और अन्यरोग स्वत: ही समाप्त हो जाते हैं। प्राकृतिक चिकित्सा में किसी अंग विशेष को रोगी नहीं माना जाता है बल्कि किसी भी रोग में संपूर्ण शरीर ही रोगी हो जाता है जैसे एक साधारण लगने वाली कब्ज के कारण व्यक्ति का संपूर्ण शरीर ही रोगी हो जाता है। कब्ज के कारण अपच अजीर्ण गैस , ऐसीडिटी , बवासीर, फिसर, त्वचा रोग, अस्थमा, हृदय रोग आदि होते है। सभी रोग का कारण आंतों में रूका हुआ मल है जो विष का रूप धारण कर संपूर्ण शरीर में फैल जाता है। सिर की ओर जाने पर सिर दर्द, बेचैनी, घबराहट आदि होती है इसलिये केवल पेट की चिकित्सा और शरीर की सफाई से ये सारे रोग एक के बाद एक करके समाप्त हो जाते हैं इसलिये केवल चिकित्सा न करके संपूर्ण शरीर की चिकित्सा की जाती है।
आधुनिक प्राकृतिक चिकित्सा का जन्म एवं विकास /Birth and Development of Modern Naturopathy.
ईसा के जन्म के 400 वर्ष पूर्व ग्रीस के हिप्पोक्रेटीज प्राकृतिक चिकित्सा के जनक कहे जाते है। उनके समय तक दौ सौ पैसठ औषधियों का अविष्कार हो चुका था ये उनकी लिखी पुस्तकों से ज्ञान होता है लेकिन ये औषधियाँ मुख्यत: कुछ नये रोगों में ही प्रयोग की जाती थी। यदपि हिप्पोक्रेटीज इन औषधियों में विश्वास रखता था , उनकी धारणा थी कि प्रकृति में रोग निवारण शक्ति है। तथा नये-नये रोग स्वयं ही शरीर में एक प्रकृति तरीके से उभार लाकर शरीर के भागों में से एक अधिक के द्वारा विकारों के बाहर कर देते है। उनका कहना था कि चिकित्सक का कर्त्तव्य है कि वह रोगी में आये बदलाव का अनुमान पहले से कर ले जिससे वह उन प्राकृतिक तरीको को सहज सफल होने में सहायता दे तथा रोगी चिकित्सक की मदद से रोग निवारण कर सके।
हिप्पोक्रेटीज को जल चिकित्सा का पूरा-पूरा ज्ञान था उन्होंने शीतल तथा उष्ण दोनों प्रकार के जल का उपयोग अल्सर , ज्वर और अन्य रोगों में किया। उन्होंने कहा कि शीतल जल का स्नान लघु कालीन होना चाहिए उसके तुरन्त बाद या घर्षण स्नान करना चाहिए। लघुकालीन शीतल स्नान से शरीर गरम रहता है इसके विपरीत उष्ण जल से स्नान से इसके विपरीत प्रभाव पड़ता है। यूनान के स्पार्टन नामक जाति में शीतल जल से स्नान करने का कानून बना था वहाँ बड़े-बड़े स्नानगार में शीतल और उष्ण वायु स्नान की व्यवस्था की। फादर नीप ने प्राकृतिक चिकित्सा का उपयोग बड़े उत्साह से किया और जड़ी बूटी व जल के प्रयोग सम्बन्धी बहुमूल्य अविष्कार किया गया है। मध्यकाल में अरा के चिकित्सकों ने जल चिकित्सा को महत्व दिया।
एवी सेना कब्ज निवारण हेतु शीलत जल का स्नान तथा मिट्टी को लाभकारी बताया है।
रेजेज ने ज्वर के ताप को कम करने के लिए बरफीला जल थोड़ा पानी की सलाह दी ।
कुलेन चिकित्सक के रूप में जल के सन्दर्भ में कुछ व्यवस्थिति अवलोकन प्रस्तुत किये। उन्होंने ज्वर के उपचार के लिए जल के सम्बन्ध में कहा कि जब प्रतिक्रिया की दिशा को कम करने के लिए जल का उपयोग किया जाता है तो उसका प्रभाव शान्तिदायक होता है लेकिन जब हृदय और धमनियों के कार्यों को बढ़ाने के लिए तथा सबल देने के लिए जल का उपयोंग किया जाता है तो वह टॉनिक का कार्य करता है। जल रोग निवारण और स्वास्थ्य संवर्धन के लिए उपयुक्त माना जाता है।
प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति भारत की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है किन्तु बीच में इस चिकित्सा प्रणाली के संसार से लोप हो जाने के बाद उसके पुर्नरूथान का श्रेय पाश्चात्य देशों को दी है इस सत्य को नकारा नहीं जा सकता। प्राकृतिक चिकित्सा के पुनरूथान में मदद देने वाले अनेक प्राकृतिक चिकित्सक थे और ये लोग वह थे जो औषधियों द्वारा रोगों का उपचार करते-करते अपनी आयु के एक बड़े भाग को समाप्त कर देने पर भी शान्ति नहीं पा सके। उनके स्वयं के प्राण प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा बचे थे। इस सम्बन्ध में निम्नवत जानकारी है।
प्राकृतिक चिकित्सा की विशेषताएं /Features of Naturopathy.
आप लोगों को प्राकृतिक चिकित्सा की विशेषताएं के बारे में बताएंगे क्योंकि बहुत से लोग नहीं जानते होंगे कि प्राकृतिक चिकित्सा की क्या विशेषता होती है इसलिए जो लोग नहीं जानते हैं उन लोगों को घबराने की कोई बात नहीं है क्योंकि हम बताने वाले हैं कि प्राकृतिक चिकित्सा की विशेषता क्या होती है जिसे पढ़कर सभी लोग आसानी से जान सकते हैं तो आइए हम आप लोगों को नीचे पॉइंट के आधार पर बताते हैं प्राकृतिक चिकित्सा की विशेषता क्या होती है जिससे सभी लोगों को इसके बारे में जानकारी प्राप्त हो सके I
1.स्वयं के आध्यात्मिक विश्वास के अनुसार प्रार्थना करना उपचार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
2.प्रकृति के उपचार में दबे हुए रोगों को सतह पर लाया जाता है और स्थायी रूप से हटा दिया जाता है।
3.रोग का प्राथमिक कारण रुग्णता कारक पदार्थ का संचय है। बैक्टीरिया और वायरस शरीर में प्रवेश कर तभी जीवित रहते हैं जब रुग्णता कारक पदार्थ का संचय हो और उनके विकास के लिए एक अनुकूल वातावरण शरीर में स्थापित हुआ हो। अतः रोग का मूल कारण रुग्णता कारक पदार्थ है और बैक्टीरिया द्वितीयक कारण बनते हैं।
4.प्राकृतिक चिकित्सा शरीर का सम्पूर्ण रूप से उपचार करती है।
5.गंभीर बीमारियां शरीर द्वारा आत्म चिकित्सा का प्रयास होती हैं। अतः वे हमारी मित्र हैं, शत्रु नहीं। पुराने रोग, गंभीर बीमारियों के गलत उपचार और दमन का परिणाम हैं।
6.सभी रोगों, उनके कारण और उपचार एक हैं। दर्दनाक और पर्यावरणीय स्थिति को छोड़कर, सभी रोगों का कारण एक है यानी शरीर में रुग्णता कारक पदार्थ का संचय होना। सभी रोगों का उपचार शरीर से रुग्णता कारक पदार्थ का उन्मूलन है।
7.प्रकृति सबसे बड़ा मरहम लगाने वाली है। मानव शरीर में स्वयं ही रोगों से खुद को बचाने की शक्ति है तथा अस्वस्थ होने पर स्वास्थ्य पुनः प्राप्त कर लेती है।
8.प्राकृतिक चिकित्सा एक ही समय में सभी तरह के पहलुओं जैसे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक, का उपचार करती है।
9.प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार, “केवल भोजन ही चिकित्सा है”, कोई बाहरी दवाओं का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
10.प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा पुरानी बीमारियों से पीड़ित मरीजों को भी अपेक्षाकृत कम समय में सफलतापूर्वक उपचारित किया जाता है।
प्राकृतिक चिकित्सा के जनक कौन है /Who is the father of naturopathy.
अब हम आप लोगों को बताने वाले हैं कि प्राकृतिक चिकित्सा के जनक कौन है I क्योंकि बहुत से लोग नहीं जानते होंगे कि प्राकृतिक चिकित्सा के जनक कौन हैं इसलिए हम आप लोगों को बताएंगे कि प्राकृतिक चिकित्सा के जनक कौन हैं तथा इन्होंने किस सन में प्राकृतिक चिकित्सा शब्द का पहली बार प्रयोग कब किया था इन सभी चीजों के बारे में हम आप लोगों को बताने वाले हैं जिससे आप लोगों को भी आसानी से पता चल सके कि प्राकृतिक चिकित्सा के जनक कौन है तथा प्राकृतिक चिकित्सा शब्द का पहली बार प्रयोग कब किया गया था तो आइए इसी के बारे में हम आप लोगो को बताते हैं I
प्राकृतिक चिकित्सा की जड़ें 19वीं शताब्दी में यूरोप में चले ‘प्राकृतिक चिकित्सा आन्दोलनों’ में निहित हैं। स्कॉटलैण्ड के थॉमस एलिन्सन 1880 के दशक में ‘हाइजेनिक मेडिसिन’ का प्रचार कर रहे थे। वे प्राकृतिक आहार, व्यायाम पर जोर देते थे तथा तम्बाकू का सेवन न करने एव्वं अतिकार्य से बचने की सलाह देते थे।
नेचुरोपैथी’ शब्द का पहला प्रयोग 1895 में जॉन स्कील ने किया था। उसी शब्द को बेनेडिक्ट लस्ट ने आगे बढ़ा दिया था जिस कारण अमेरिका के प्राकृतिक चिकित्सक बेनेडिक्ट को यूएस में नेचुरोपैथी का जनक मानते हैं।
जीवन में प्राकृतिक चिकित्सा का महत्व /Importance of naturopathy.
हम आप लोगों को जीवन में प्राकृतिक चिकित्सा के महत्व के बारे में बताने वाले हैं कि जीवन में प्राकृतिक चिकित्सा का क्या महत्व होता है क्योंकि इसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते होंगे इसलिए हम आप लोगों को बताने वाले हैं कि जीवन में प्राकृतिक चिकित्सा का क्या महत्व होता है जिसे पढ़कर आप लोग आसानी से जान सकते हैं और हम इसके बारे में बहुत ही शुद्ध और सरल भाषा में बताएंगे जिससे आप लोगों को पढ़ने में आसानी होगी और आसानी से समझ में आ सके कि जीवन में प्राकृतिक चिकित्सा का महत्व क्या होता है तो आइए हम आप लोगों को इसके बारे में बताते हैं I
प्राकृतिक चिकित्सा, यह एक ऐसी अनूठी प्रणाली है जिसमें जीवन के शारीरिक, मानसिक, नैतिक और आध्यात्मिक तलों के रचनात्मक सिद्धांतों के साथ व्यक्ति के सद्भाव का निर्माण होता है। इसमें स्वास्थ्य के प्रोत्साहन, रोग निवारक और उपचारात्मक के साथ-साथ फिर से मज़बूती प्रदान करने की भी अपार संभावनाएं हैं।
श्रीनाथ नेचुरोपैथी एवं योग केंद्र कानपुर के निदेशक डा. रविंद्र कुमार पोरवाल ने कहा कि आम आदमी के जीवन में प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग का अहम महत्व है। कई देश इस चिकित्सा प्रणाली को अपना रहे हैं। इस दिशा में बहुत काम करने की जरूरत है।मिनी पीजीआई में फिजियोलॉजी विभाग द्वारा आयोजित योग एवं नेचुरोपैथी कार्यशाला के परिचय सत्र में मुख्यवक्ता के रूप में वे बोल रहे हैं। उन्होंने कहा कि विदिशा भार्गव ने दुनिया के कई देशों खासकर अमेरिका में प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली में योग के विकास पर करोड़ों डालर खर्च करके इसे आगे बढ़ाने का काम ही नहीं किया वरन् अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा तक को योग से परिचित कराया है और आम आदमी तक इसकी पहुंच बनाने का प्रयास किया है।
उन्होंने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि आप लोग चिकित्सा विज्ञान के छात्र हैं और आगे आने वाले समय में आप एलोपैथी में प्रेक्टिस करेंगे। तब आप लोगों की अधिक से अधिक अपने पेशे में रहकर सेवा कर सकेंगे। डा. पोरवाल ने कहा कि आज फास्टिंग डाइट की बहुत बात की जाती है। इससे वातावरण के विपरीत आचरण होने पर प्रकृति में नेचुरल तरीके से लोग कैसे ठीक हों। यही प्राकृतिक चिकित्सा आम लोगों के स्वस्थ जीवन जीने की पद्धति है। इससे सही खाना और उसमें ऊर्जा की मात्रा पर अधिक शोर मचता है। वास्तव में योग शरीर के आंतरिक अंगों को ठीक करने का सबसे बेहतर प्राकृतिक माध्यम है।उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि शरीर के कचरे को साफ करने के लिए चरणासन अवश्य करना चाहिए। उन्होंने छात्रों से विस्तार से प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली के बारे में अपने अनुभव साझा किये
प्राकृतिक चिकित्सा PDF /Naturopathy PDF.
हम आप लोगों को यहां पर प्राकृतिक चिकित्सा के बारे में एक PDF के माध्यम से बताएंगे जिससे आप लोगों को पढ़ने में बहुत ही आसानी होगी क्योंकि इस पीडीएफ के अंदर हम प्राकृतिक चिकित्सा से संबंधित कई सवालों के जवाब बताएंगे इससे आप लोगों को प्राकृतिक चिकित्सा से संबंधित और भी कई सवालों के जवाब के बारे में जानकारी प्राप्त हो जाएगी इसलिए आइए हम आप लोगों को नीचे पीडीएफ के माध्यम से बताते हैं I
भारत की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धति कौन सी है?
भारत की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद है। आयुर्वेद के माध्यम से जटिल रोगों का उपचार भी संभव है, हालांकि उपचार में समय लगने की वजह से लोग इससे किनारा कर जाते हैं।
प्राकृतिक चिकित्सा में कितने तत्वों से चिकित्सा दी जाती हैं?
नेचुरोपैथी यानी प्राकृतिक चिकित्सा उपचार के लिए पंच तत्वों आकाश, जल, अग्नि, वायु और पृथ्वी को आधार मानकर चिकित्सा सम्पन्न की जाती है।
विश्व की सबसे प्राचीन चिकित्सा प्रणाली कौन सी है?
आयुर्वेद विश्व की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति है। इसकी आवश्यकता तथा महत्व आज भी प्रासंगिक है। चिकित्सा पद्धति कई रोगों को यह जड़ से समाप्त करने में सक्षम है।
प्राकृतिक चिकित्सा का अर्थ क्या है?
प्राकृतिक चिकित्सा सबसे प्राचीन स्वास्थ्य देखभाल तंत्र है जो चिकित्सा के पारंपरिक और प्राकृतिक रूपों के साथ आधुनिक वैज्ञानिक ज्ञान का समामेलन करता है। प्रकृति की उपचार शक्ति पर भरोसा करते हुए , प्राकृतिक चिकित्सा मानव शरीर की खुद को ठीक करने की क्षमता को उत्तेजित करता है।
नेचुरोपैथी का मतलब क्या होता है?
प्राकृतिक चिकित्सा – संज्ञा स्त्रीलिंग [ संस्कृत प्राकृतिक + चिकित्सा] वह चिकित्सा पद्धति जिसमें प्रकृतिजन्य साधनों (जैसे, मिट्टी, पानी आदि) से चिकित्सा की जाती है ।
चिकित्सा कितने प्रकार की होती है?
1.प्राकृतिक चिकित्सा। 2. योग चिकित्सा। 3.एक्यूपंक्चर। 4.एक्यूप्रेशर। 5.चुम्बक चिकित्सा। 6.सूर्य चिकित्सा। 7.जल चिकित्सा। 8.ज्योतिषीय चिकित्सा।
नेचुरोपैथी कोर्स कितने साल का होता है?
डिप्लोमा इन नेचरोपैथी एंड योग का पाठ्यक्रम तीन वर्ष का है।
संतुलित आहार का क्या अर्थ है?
संतुलित आहार एक ऐसा आहार है जिसमें कुछ निश्चित मात्रा और अनुपात में विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ होते हैं ताकि कैलोरी, प्रोटीन , खनिज, विटामिन और वैकल्पिक पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में हो और पोषक तत्वों के लिए एक छोटा सा भाग आरक्षित रहे।
प्राकृतिक चिकित्सा का मूल सिद्धांत क्या है?
स्वास्थ्य के सम्बन्धित नियमों का पालन तथा किसी भी काम में अति न करना प्राकृतिक चिकित्सा का मुख्य सिद्धांत है।
संतुलित भोजन में कितने पोषक तत्व होते हैं?
भोजन में मुख्य पोषक तत्व हैं – कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन तथा खनिज लवण।