कबीरदास के गुरु कौन थे kabir das ke guru kaun the शायद आप लोगों को पता नहीं होगाI बहुत से लोग जो Studyकरते हैं उन्हें शायद पता हो बाकी लोगों को अगर ना पता हो तो आइए हमारे साथ हम आप सभी लोगों को बताएंगे कि कबीरदास के गुरु कौन थे क्या कर रहे थे और मैं कैसे इंसान थे दोस्तों मैं आप सभी लोगों को बता दूं कि कबीर दास एक बहुत अच्छे इंसान थे जो हिंदी साहित्य में उनकी बहुत सी poemsहैं जो भारत में मशहूर है इसलिए मैं आप सभी लोगों को कबीर दास के गुरु के बारे में बताने वाले हैं Iलेकिन इससे पहले हम आप लोगों को कबीर दास के बारे में बताएंगे कि उनका जन्म कब हुआ या कब उनके गुरु उन्हें मिले और उनको शिक्षा दीक्षा दी I
कबीर दास का जीवन परिचय Biography of Kabir Das
कबीर दास हिंदी साहित्य के व्यक्ति थे I इनके जन्म के संबंध में अनेक मतभेद हैं कुछ लोगों के अनुसार वे रामानंद स्वामी के आशीर्वाद से काशी की एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से पैदा हुए थे I कबीरदास का जन्म सन 1398 के आसपास हुआ था लहरतारा ताल काशी के समक्ष हुआ था Iभूल से रामानंद स्वामी ने विधवा ब्राह्मणी को पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया थाI परंतु कबीरदास के जन्म के बाद एक लहरतारा तालाब या ताल था वहीं पर उस ब्राह्मणी ने कबीर दास फेक आई I और बाद में इनको नीरू और नीमा नामक जुलाह ने पाया और इनका पालन पोषण किया I कबीरदास के माता-पिता के संबंध में बहुत मतभेद है कि कबीर दास नीरू और नीमा के वास्तविक संतान है या नीरू और नीमा ने इनका केवल पालन पोषण किया I नीरू जूलाह ने इस बच्चे को लहरतारा ताल के पास पड़ा मिला था जिसे वह घर ले गया और उसका पालन पोषण किया बाद मेंं वही कबीर कहलाया या कबीर केेेे नाम से प्रसिद्ध हुआ I कबीर दास ने स्ववयं अपने आपको जुलाह के रूप मेंं प्रस्तुत किया-
जाति जुलाहा नाम कबीरा
बनि बनि फिरो उदास
और जो लोग कबीरपंथी हैं उन लोगों का मानना है कि कबीरदास का जन्म काशी के लहरतारा ताल में एक कमल के सुनहरे एवं मनोहर पुष्प पर बालक के रूप में हुआ था I बहुत से लोग यह भी कहते हैं कि कबीर दास जन्म से मुसलमान थे और युवावस्था में स्वामी रामानंद ने उन्हें हिंदू धर्म का ज्ञान कराया जिससे कबीर दास को हिंदू धर्म का ज्ञान हुआ I 1 दिन की बात है कबीर दास पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर गिर पड़े थे उसी समय रामानंद भी पंचगंगा घाट पर स्नान करने के लिए सीढ़ियों से उतर रहे थे कि उनका पैर कबीर दास के शरीर पर पड़ गयाI उस समय कबीरदास के मुंह से राम राम का शब्द निकल पड़़ा और उसी राम को दीक्षा मंत्र मान लिया और उसी समय स्वामी रामानंद जी को अपना गुरु मान लिया I कबीर दास ने कहा है कि-हम अकाशी मे प्रकट भये हैं, रामानंद चेतायेI कबीर दास के एक पुत्र और एक पुत्री थी पुत्र का नाम कमल और पुत्री का नाम कमाली था I इन लोगों की देखभाल या परवरिश करने के लिए कबीर दास को अपने कंधों पर बहुत काम करना पड़ता था I कबीर दास को कबीरपंथी में बाल ब्रह्मचारी माना जाता है I कबीरपंथी के अनुसार देेेखा जाए तो कमात्य उनका शिष्य था कमाली और लोई उनकी शिष्या थीI कबीरदास ने लोई शब्द का प्रयोग एक एक जगह कंबल के रूप में किया है I वैसे अगर माना जाए तो कबीर दास के पत्नी और बच्चेे दोनों थे I एक जगह कबीर दास लोई को पुकार कर कहतेे हैं कि-
कहत कबीर सुनहु रे लोईI
हरि बिन राखन हार ना कोईI
कबीरदास पढ़े-लिखे नहीं थे I जो कबीर दास ने ग्रंथ लिखे हैं वो ग्रंथ उन्होंने नहीं लिखे हैं केवल उन्होंने मुख से बोला है और उनके शिष्य उन ग्रंथों को लिखा हैI कबीर की बाड़ का संग्रह-बीजक के नाम से प्रसिद्ध है I कबीर दास की मृत्यु मगहर में सन 1518ईस्वी के लगभग में हुई थी I कबीरदास एक सामाजिक धर्म सुधारक थे I कबीरदास की भाषा-कबीर दास की भाषा अवधी, सधुक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी यह कबीरदास की भाषा थीI
नाम | कबीर दास |
जन्म | 1398 लहरतारा ताल काशी |
पिता का नाम | नीरू |
माता का नाम | नीमा |
पत्नी का नाम | लोई |
बच्चे का नाम | पुत्र का नाम कमाल और पुत्री का नाम कमाली था |
मुख्य रचना | साखी, सबद, रमैनी |
शिक्षा | बिना पड़े लिखें थे |
मृत्यु | 1518 मगहर उत्तर प्रदेश |
कबीर दास के माता-पिता कौन थे या क्या करते थे Who were the parents of Kabir Das or what did they do?
कबीर दास के माता पिता के विषय में अधिक राय है कि कबीर दास नीरू और नीमा के वास्तविक संतान है या केवल नीरू और नीमा ने इनका केवल पालन पोषण किया है I लेकिन यह भी कहा जाता है कि नीरू जुलाह को यह बच्चा लहरतारा ताल पर पड़ा मिला था और उस बच्चे को नीरू नेे अपने घर ले गया और उसका पालन पोषण किया और बाााद में यही बच्चा कबीर कहलाया या कबीर के नाम से प्रसिद्ध हुआ I कबीर दास के माता पिता को नीरू और नीमा के नाम से जाना जाता हैI आप लोगों को यह बता दें कि उनके माता-पिता नीरू और नीमा क्या करते थे तो दोस्तों उनके माता-पिता एक जुलाह थे इसलिए उनका काम यह था कि कपड़ा बुनने वाला शिल्पी I भारतवर्ष में जुलाह कहलाने वाले मुसलमान हैI हिंदूूूू में कपड़ा बुनने वाले लोगो को कोली आदि नामों से पुकारे जाते हैं I इसलिए बहुत से लोग कबीर दास को जन्म से मुसलमान मानतेे हैंI अब आप लोगों को शायद पता हो गया होगा कि कबीर दास के माता पिता कौन थे और क्या काम करते थेI कबीरपंथी के लोग कबीरदास का जन्म काशी के ताल मेंं एक कमल के सुनहरे पुष्प पर बालक के रूप में हुआ थाI
कबीर दास जी की रचनाएं compositions of kabir das ji
कबीर दास के कुछ महत्वपूर्ण रचनाओं को टेबल के आधार पर समझाने की कोशिश करेंगे जिससे आप सभी लोगों को यह आसानी से समझ में आ जाए
1 | बीजक |
2 | सखी ग्रंथ |
3 | कबीर ग्रंथावली |
4 | अनुराग सागर |
5 | सबद |
6 | रमैनी |
7 | पतिव्रता का अंग |
8 | कामी का अंग |
9 | मन का अंग |
10 | माया का अंग |
इन सभी रचनाओं में से सबसे महत्वपूर्ण रचना यह है साखी ,सबद रमैनीI कबीर दास की बहुत सारी रचनाएं हैं I
कबीर दास की शिक्षा कैसे थे How was the education of Kabir Das
कबीर दास पढ़े-लिखे नहीं थी परंतु कबीर दास अन्य बच्चों में से अलग थे कहा जाता है कि उनके माता-पिता गरीबी के कारण उन्हें मदरसे नहीं भेज पाए जिसके कारण कबीरदास किताबी विद्या ग्रहण नहीं कर सके I
मसि कागद छवो नहीं,कलम गही नहि हाथI
आप लोगों को बता दें कि कबीर दास ने खुद ग्रंथ नहीं लिखें कबीर दास उपदेशों के दोहों को मुंह से बोलते थे और उनके शिष्य लिखते थेI
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कबीर दास पर स्वामी रामानंद का प्रभाव Swami Ramanand’s influence on Kabir Das
कबीर दास के धर्म को लेकर कोई भी पुष्टि नहीं की गई कहा जाता है कि कबीर दास जन्म से ही मुसलमान थे लेकिन जब कबीरदास जब से स्वामी रामानंद के प्रभाव में आए तब से उन्हें हिंदू धर्म का ज्ञान हुआ I इसके बाद कबीरदास ने स्वामी रामानंद को अपना गुरु मान लिया I एक बार की बात है जब कबीर दास पंचगंगा घाट के सीढ़ियों से गिर पड़े थे उसी समय स्वामी रामानंद पंचगंगा घाट पर स्नान करने के लिए सीढ़ियों से उतर रहे थे अचानक उनका पैर कबीरदास के शरीर में लगा जिसके कारण कबीरदास के मुंह से राम राम का शब्द निकलाI उसी राम को कबीरदास में अपना दीक्षा मंत्र मान लिया और स्वामी रामानंद को अपना गुरु मान लिया Iइसके बाद में कबीर दास ने कहा कि
हम अकाशी में प्रकट भये हैं,रामानंद चेतायेI
कबीर दास जी किसी धार्मिक नहीं मानते थे और सभी धर्मो अच्छे विचारों को ग्रहण करते थेI यही कारण है कि कबीर दास जी ने हिंदू मुसलमान का भेदभाव मिटाकर हिंदू भक्तों और मुसलमान फकीरोंं के साथ सत्संग किया और दोनों धर्मों के अच्छे विचारों को ग्रहण किया I
कबीरदास के गुरु कौन थे (kabir das ke guru kaun the)

कबीर दास एक बार पंचगंगा घाट की सीढ़ियों से गिर पड़े थे उसी समय वहा स्वामी रामानंद पंचगंगा घाट पर स्नान करने के लिए सीढ़ियों से उतर रहे थे तो उनका पैर कबीरदास के शरीर में लगा और उसी समय कबीरदास के मुंह से राम राम का शब्द निकला और उसी राम को कबीरदास ने दीक्षा मंत्र मान लिया और उसी समय रामानंद स्वामी को अपना गुरु मान लिया लिए I इसलिए दोस्तों अगर पूछा जाए कि कबीर दास के गुरु कौन थे तो आप उनके गुरु का नाम रामानंद स्वामी बता सकते हैंI कबीर दास को उनकेेे गुरु उनको पहली बार पंचगंगा घाट पर मिलेे थे I कबीर दास ने रामानंद स्वामी को केवल अपना गुरु मान लिए थे ना कि उनसे शिक्षा दीक्षा ग्रहण की I
कबीर दास जी की विशेषताएं Features of Kabir Das Ji
कबीर दास जी की विशेषताओं को हम नीचे बिंदु के आधार पर अध्ययन करेंगे जो आप लोगों को अच्छे से समझ में आ सके-
- हम आप लोगों को बता दें कि कबीर दास को कई भाषाओं का ज्ञान था क्योंकि मैं साधु संतों के साथ कई जगह भ्रमण करने जाते थे इससे उनको कई भाषाओं का ज्ञान मिलता था Iकबीर दास जी साधु के साथ रहते थे इसलिए उनकी भाषा को साधु कड़ी भी कहा जाता हैI
- कबीरदास अपनी स्थानीय भाषा से लोगों को समझाने की कोशिश करते थे और इसके साथ ही जगह जगह पर उदाहरण देकर अपनी बातों को उनके अंतर्मन में पहुंचाने की कोशिश करते थेI कबीरदास के बाड़ी को साखी ,सबद ,रमैनी तीन भागों में लिखा गया है जो बीजक के नाम से प्रसिद्ध है I
- कबीर दास ने गुरु का स्थान या गुरु का पद भगवान से ऊंचा बताया है कबीर दास एक जगह गुरु को कुम्हार का उदाहरण देते हुए समझाया है कि -जो मिट्टी के बर्तन की तरह अपने शिष्य को ठोक पीटकर सुंदर चरित्रवान बना देता है
- कबीरदास सत्य बोलने वाले व्यक्ति थे उन्होंने सत्य बोलने में कभी निर्भीक और निडर व्यक्ति थे वे कटु सत्य बोलने से बिल्कुल नहीं हिचकिचाते थेI
संत कबीर दास जी की यह एक बहुत बड़ी खासियत थी कि वे निद्रा करने वाले लोगो को अपना दुश्मन मानते थेI कबीरदास को साधु संतो के बीच में रहना बहुत अच्छा लगता थाI कबीरदास जी का कहना था कि–
निंदक नियरे राखिए, आगन कुटी छवायI
बिन पानी साबुन बिना ,निर्मल करे सुभायI
कबीरदास अपने उपदेसो से समाज में बदलाव करना चाहते थे और मानव जीवन को सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते थे आप समझिए कि वे चाहते थे कि सभी व्यक्ति अच्छे मार्ग पर चलेI
कबीर दास जी का योगदान Contribution of Kabir Das Ji
कबीरदास जी का सबसे पहला योगदान यह था कि वे चाहते थे कि समाज में जो कुरोतिया है या जो बुराई है उनको खत्म किया जाए I इसके साथ सामाजिक भेदभाव और आर्थिक के खिलाफ विरोध किया जाएI कबीरदास अपने जीवन में किसी तरह की सिक्षा नहीं ली थी लेकिन उन्होंने अपने जीवन में अनुभवों और अध्यात्म कल्पना शक्ति के बल पर पूरी दुनिया को वो ज्ञान दियाI जो किसी भी व्यक्ति इस ज्ञान को अपने जीवन में अम्ल किया तो वह व्यक्ति अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है I कबीरदास जी ने आदर्श समाज की स्थापना पर जोर दिया है I कबीरदास जी जैसे महान कवियों के जन्म लेने से भारत भूमि धन्य हो गई I हिंदी साहित्य में इनका बहुत बड़ा योगदान है जो कभी भुलाया नहीं जा सकता है I
कबीर दास की मृत्यु death of kabir das
कबीर दास अपना पूरा जीवन काशी में गुजारा लेकिन मरने के समय मगहर चले गए थे I ऎसा मालूम पड़ता है कि उस समय मगहर में मरने से नरक मिलता है या नरक प्राप्त होता है और काशी में मरने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है I
जौ काशी तन तजै कबीरा तो रामै कौन निहोटाI
कबीर दास जी एक महान कवि एवं समाज सुधारक थे इन्होंने अपने साहित्य से लोगों को सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी इसके साथ ही समाज में फैली हुई कुरीतियों और बुराइयों को मिटाने का बहुत प्रयास कियाI कबीर दास अच्छे जीवन जीने में विश्वास रखते थे वे अहिंसा, सत्य,सदाचार गुड़ों केे प्रशंसक थेI कबीरदास जैसेे कवियों का भारत में जन्म लेना गौरव की बात है I
कबीर दास जी के कुछ प्रमुख दोहे Some important couplets of Kabir Das ji
कबीर दास के कुछ प्रमुख दोहो के बारे में बताने वाला हूं तो आइए हम लोग उनके प्रमुख लोगों के बारे में जानने की कोशिश करते हैं हम लोग उनके प्रमुख दोहों को नीचे बिन्दु के आधार पर समझते हैं-
- गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागू पाय I बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलायII
- यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान I शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जानI
- सब धरती काजग करूं, लेखनी सब वनराज I सात समुद्र की मसि करू, गुरु गुण लिखा न जाए I
- ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए I औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होएI
- बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर I पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर I
- निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाये I बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए I
- बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय I जो मन देखा आपना, मुझसे बुरा न कोय I
- दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय I जो सुख में सुमिरन करे, दुख काहे को होय I
- माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोहे I एक दिन ऐसा आएगा , मैं रोदूंगी तोहे I
- पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात I देखत ही छुप जाएगा है, ज्यो सारा प्रभात I
- चलती चक्की देखके, दिया कबीरा रोए I दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय I
- मलिन आवत देख के, कलियन करे पुकार I फूले फूले चुन लिए, कलि हमारी बार I
- काल करे सो आज कर, आज करे सो अब I पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब I
- जहां दया तहां धर्म है, जहां लोभ वहां पाप I जहां क्रोध तहां काल है, जहां छमा वहां आप I
- जो घट प्रेम न संचारे , जो घट जान सामान I जैसे खाल लुहार की, सांस लेत बिन प्राण I
- जल में बसे कमोदनी, चंदा बसे आकाश I जो है जा को भावना सो ताहि के पास I
- जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान I मोल करो तलवार का, पड़ा रहने दो म्यान I
- जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय I यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय I
- तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार I सतगुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार I
- तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोय I सहजे सब विधि पाइए, जो मन जोगी होय I
- प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए I राजा प्रजा जो ही रूचे,सिस दे ही ले जाए I
- जिन घर साधु न पुजिये, घर की सेवा नाही I ते घर मरघट जानिए, भूत बसे तिन माही I
- साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय I सार सार को गहि रहै थोथा देई उड़ाय I
- पीछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत I अब पछताए होत क्या, चिड़िया चुग गई खेत I
- जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाही I सब अंधियारा मिट गया, दीपक देखा माही I
- नहाए धोए क्या हुआ, जो मन मैल न जाए I मीन सदा जेल में रहे, धोए बास न जाए I I
- प्रेम पियाला जो पिय, सिस दक्षिणा देय I लोभी सीश न दे सके, नाम प्रेम का लेय I I
- कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर I जो पर पीर न जानही, सो का पीर में पीर I I
- कबीर सुता क्या करें, जागी न जपे मुरारी I एक दिन तू भी सोवेगा, लंबे पांव पसारी I I
- पोथी पढ़ पढ़ जग हुआ, पंडित भया न कोय I ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय I I
- राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोए I जो सुख साधू संग में, सो बैकुंठ न होय I I
- शीलवंत सबसे बड़ा सब रतनन की खान I तीनो लोक की संपदा, रही शील में आन I I
- ज्ञान रतन का जतन कर, माटी का संसार I हाय कबीरा फिर गया, फीका है संसार I I
- आए हैं तो जायेंगे, राजा रंक फकीर I एक सिंहासन चढ़ी चले, इक बंधे जंजीर I I
- रात गंवाई सोय के, दिन गवाया या खाए I हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय I I
कबीर दास जी के बारे में कुछ पूछे जाने वाले सवाल Some frequently asked questions about Kabir Das ji
दोस्तों मैं आप सभी लोगों को बताना चाहता हूं कि कबीर दास जी के बारे में बहुत से सवाल पूछे जाते हैं तो हम आपको आज कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों को पॉइंट के आधार पर बताना चाहता हूं तो आइए हम उन सवालों को देखते हैं कि कौन-कौन से सवाल पूछे जाते हैं उन सवालों को हम बिंदु के आधार पर जानने की कोशिश करते हैं या समझने की कोशिश करते हैं-
- कबीर दास जी कौन थे
- कबीरदास कौन से सदी के कवि थे
- साहित्य में कबीर दास ने कौन सी मुख्य रचनाएं सम्मिलित या लिखी हैं
- संत कबीर जी के गुरु का क्या नाम था
- कबीर जी का जन्म कहां हुआ था
- कबीर जी का पालन पोषण किसने किया था
- कबीर दास जी के कितने बच्चे थे और उन बच्चों का क्या नाम था
- कबीरदास पढ़े लिखे थे या नहीं
कबीर दास कौन थे
कबीर दास हिंदी साहित्य के बहुत महान कवि थे
कबीरदास कौन से सदी के कवि थे
कबीर दास जी 15 वी सदी के कवि और संत थे
कबीर जी के गुरु का क्या नाम था
कबीर जी के गुरु का नाम था स्वामी रामानंद I
कबीर जी का जन्म कहां हुआ था
कबीर जी का जन्म सन 1398 में लहरतारा ताल, काशी
कबीर दास जी का पालन पोषण किसने किया था
कबीर दास का पालन पोषण नीरू और नीमा ने किया था
कबीर दास जी के कितने बच्चे थे और उन बच्चों का क्या नाम था
कबीर दास जी के दो बच्चे थे जिनके पुत्र का नाम कमाल और पुत्री का नाम कमाली था
कबीर दास जी पढ़े लिखे थे या नहीं
कबीर दास जी पढ़े-लिखे नहीं थे I
कबीर दास रामानंद को क्यों अपना गुरु माने
कबीर रामानंद जी को इसलिए अपना गुरु माने क्योंकि एक बार जब कबीरदास स्नान करने के लिए नदी की सीढ़ी चल रह थे तो अचानक उनका पैर फिसल गया और वह गिर पड़े तभी आते रामानंद जी का पैर उनके सिर पर पड़ा इसलिए कबीर दास जी रामानंद जी को अपना गुरु मानने लगे