Kabir Ke Dohe (कबीर के दोहे एवं हिंदी में अर्थ) Rskg » Rskg

kabir ke dohe (कबीर के दोहे एवं हिंदी में अर्थ) rskg

kabir ke dohe आज हम आप लोगों को अपने इस पोस्ट में बताने वाले हैं कबीर के दोहे कौन से है क्योंकि बहुत से लोग कबीर के दोहे को पढ़ना चाहते हैं परंतु उन्हें कबीर दास के दोहे विस्तार से नहीं मिल पाते है इसलिए हम आप लोगों को इस पोस्ट में बहुत ही विस्तार से बताएंगे कि कबीर दास ने कौन कौन से दोहे लिखे हैं I हम आप लोगों को इस पोस्ट में बताएंगे कि कबीर के दोहे हिंदी में कैसे है तथा कबीर ने मौत पर कौन सी दोहा लिखे हैं, चेतावनी पर कौन से दोहे लिखे हैं, प्रेम पर कौन से दोहे लिखे हैं और भी इससे संबंधित कई सवालों के बारे में बताएंगे जिसे पढ़कर आप लोग कबीर दास के दोहे के बारे में बहुत ही विस्तार से जान सकते है तो आइए हम आप लोगों को बताते है कि कबीर ने हिंदी में कौन से दोहे लिखे हैं I

कबीर के दोहे हिंदी में अर्थ

kabir ke dohe
kabir ke dohe

हम आप लोगों को बताने वाले हैं कि कबीर दास ने हिंदी में कौन-कौन से दोहे लिखे क्योंकि कबीर दास जी के दोहे को बहुत से लोग पढ़ते हैं तथा पढ़ना चाहते हैं इसलिए हम आप लोगों को बताने वाले हैं कि कबीर दास हिंदी में कौन-कौन से लिखे हैं और उन दोहों के अर्थ के बारे में भी बताएंगे जिससे आप लोगों को दोहे के साथ साथ उनका अर्थ भी पता हो सके कि इसलिए आइए हम आप लोगों को नीचे बताते हैं कि कबीर दास के दोहे तथा उनके अर्थ के बारे में बताते है I

निंदक नियरे रखिये, आंगन कुटि छबाय।
बिन पानी बिन साबुन, निर्मल करे सुभाय।।

अर्थ = कबीर दास जी कहते हैं कि निंदा करने वाले व्यक्ति को हमेशा अपने पास ही रखना चाहिए। ऐसा आदमी हमारी कमियों को बताकर हमारे स्वभाव को बिना साबुन और पानी के साफ़ कर देता है।

यह तन काचा कुम्भ है, लिया फिरै था साथ।
ढबका लगा फुटि गया, कछु न आया हाथ।।

अर्थ = कबीर दास जी कहते हैं कि यह शरीर एक कच्चे घड़े के समान है जिसको तुम इतने अभिमान के साथ लिए घुमते हो। यह एक धक्का लगने से ही फूट जाता है और हाथ कुछ नहीं आता है।

पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात।
देखत ही छिप जायेगा, ज्यों सारा परभात।।

अर्थ = कबीर दास जी कहते हैं कि मनुष्य जीवन पानी के एक बुलबुले की भांति है। जैसे पानी का बुलबुला केवल थोड़ी देर के लिए ही बनता है और शीघ्र नष्ट हो जाता है। मनुष्य जीवन भी थोड़े समय में ठीक उसी प्रकार नष्ट हो जाता है जैसे सुबह होने पर आसमान में सभी तारे छिप जाते हैं।

कस्तूरी कुण्डल बसे, मृग ढूंढे बन माहिं।
ऐसे घट-घट राम है, दुनिया देखे नाहिं।।

अर्थ = कबीर दास जी कहते हैं कि मृग की अपनी ही नाभि में कस्तूरी रहती है लेकिन ज्ञान के अभाव के कारण मृग उसे सम्पूर्ण जंगल में ढूंढता रहता है। ठीक उसी प्रकार संसार के कण कण में परमात्मा का वास है लेकिन ज्ञान के अभाव के कारन संसार उन्हें नहीं देख पाता है।


चलती चक्की देख के दिया कबीरा रोय।

दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय।।

अर्थ = चलती हुई चक्की (अनाज को पीसने वाले पत्थरों की दो गोलाकार आकृति) को देखकर कबीर रोने लगे। कबीर देखते हैं कि चक्की के इन दो भागों (दो पत्थरों) के बीच में आने वाला हर दाना कैसे बारीक पिस गया है और कोई भी दाना साबूत नहीं बचा है।

पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।

अर्थ = कबीर दास जी कहते हैं कि पुस्तकों को पढ़ पढ़कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु को प्राप्त हो गए लेकिन कोई पूर्ण ज्ञानी नहीं बन पाया है। कबीरदास जी कहते हैं कि यदि कोई प्रेम के ढाई अक्षर पढ़ले अर्थात प्रेम को समझ जाये तो वही सच्चा पंडित या ज्ञानी कहलाने योग्य है।

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में परलय होएगी, बहुरि करोगे कब।।

अर्थ = कबीर दास जी कहते हैं कि जो कार्य कल करना चाहते हो वह आज ही पूरा कर दो और जो आज करना चाहते हो उसे अभी पूरा कर दो। पल भर में जीवन समाप्त हो जायेगा फिर तुम अपने उस कार्य को कब कर पाओगे।

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहने दो म्यान।।

अर्थ = कबीर दास जी कहते हैं कि सज्जन व्यक्ति से कभी भी उसकी जाति नहीं पूछनी चाहिए। वरन उसे कितना ज्ञान है यह देखना चाहिए। ठीक उसी प्रकार जैसे मूल्य तलवार का होता है म्यान का नहीं।

माला फेरत जग गया, गया न मन का फेर।
कर का मन का डारी दे, मन का मनका फेर।।

अर्थ = कबीर दास जी कहते हैं कि माला फेरते हुए कई युग बिता दिए लेकिन मन की अशांति नहीं मिट पायी। हाथों से माला को जपना छोड़कर मन से माला को जपो अर्थात मन से परमात्मा का स्मरण करो तभी मन की अशांति मिट सकती है।

जहाँ दया तहाँ धर्म है, जहाँ लोभ तहाँ पाप।
जहाँ क्रोध तहाँ पाप है, जहाँ क्षमा तहाँ आप।।

अर्थ = कबीर दास जी कहते हैं कि जहाँ दया होती है वहां धर्म होता है। जहाँ लालच और क्रोध होता है वहां पाप होता है। जहाँ क्षमा होती है वहां ईश्वर का वास होता है।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।

अर्थ = कबीर दास जी कहते हैं कि ऐसे बड़े होने का भी क्या फायदा है जैसे खजूर का पेड़ होता है। जो यात्रियों को छाया भी नहीं देता और जिसके फल भी इतनी दूर लगते हैं जिनको कोई तोड़ भी नहीं सकता।

माली आवत देख के, कलियान करी पुकार।
फूल फूल चुन लिए, काल हमारी बार।।

अर्थ = कबीर दास जी कहते हैं कि माली को आता देखकर, कलियाँ पुकारती हैं कि आज जो फूल बन गए थे उन्हें माली ने तोड़ लिया। अब कल हमारी बारी है क्योंकि कल हम भी फूल बन जायेंगे तब माली हमें भी तोड़ लेंगे।

प्रेम प्याला जो पिए, शीश दक्षिणा दे।
लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का ले।

अर्थ = कबीर दास जी कहते हैं कि प्रेम का प्याला वही पी सकता है जो अपने सर का बलिदान करने के लिए तैयार हो। एक लालची इंसान चाहे कितना भी प्रेम-प्रेम जप ले वह कभी भी अपने सर का बलिदान नहीं दे सकता।

ऐसी वाणी बोलिये मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होय।।

अर्थ = कबीर दास जी कहते हैं कि अपने मुख से ऐसी वाणी का इस्तेमाल कीजिये जो दूसरों को शीतलता का अहसास कराये और जिससे स्वयं को भी शीतलता का अनुभव हो।

कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।।

अर्थ = कबीर दास जी कहते हैं कि हम इस संसार में सबका भला सोचें। किसी से यदि हमारी दोस्ती न हो तो किसी से दुश्मनी भी न हो।

नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाये।
मीन सदा जल में रहै, धोये बास न जाये।।

अर्थ = कबीर दास जी कहते हैं कि कितना भी नहा धो लीजिये, यदि मन का मैल ही न धुले तो ऐसे नहाने धोने का क्या फायदा। जिस प्रकार मछली हमेशा पानी में ही रहती है लेकिन फिर भी उससे बदबू नहीं जाती।

माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंदे मोहे।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोहे।।

अर्थ = कबीरदास जी कहते हैं कि मिट्टी कुम्हार से कहती है कि तुम मुझे क्या रौंदते हो, एक दिन ऐसा आएगा जब तुम भी इसी मिटटी में मिल जाओगे, तब मैं तुम्हे रौंदूंगी। भाव यह है कि समय हमेशा एक जैसा किसी का नहीं रहता है। किसी भी चीज का अभिमान नहीं करना चाहिए।

साई इतना दीजिये, जामें कुटुंब समाय।
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु ना भूखा जाय।।

अर्थ = कबीरदास जी कहते हैं कि हे परमात्मा मुझे बस इतना दीजिये जिससे कि मेरे परिवार का भरण पोषण हो सके। जिससे मैं अपना भी पेट भर सकूं और मेरे द्वार पर आया हुआ कोई भी साधु-संत कभी भूखा न जाये।

कबीर दास के 10 दोहे

हम आप लोगों को कबीर दास के 10 दोहे के बारे में बताएंगे जिससे आप लोगों को आसानी से पता हो सके कि कबीर दास ने कौन-सा दोहा लिखा है क्योंकि हम आप लोगों को नीचे पॉइंट के आधार पर बताने वाले हैं कि कबीर दास ने कौन-कौन से दोहे लिखे जो आप पढ़ भी सकते हैं याद भी कर सकते हैं तो आइए हम आप लोगो को कबीर दास के 10 दोहे के बारे में बताते हैं I

1.दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय ।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय ।

2.गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काको लागूं पायबलिहारी गुरु आपकी, जिन गोविंद दियो बताय।

3.बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।

4.जब तूं आया जगत में, लोग हंसे तू रोएऐसी करनी न करी पाछे हंसे सब कोए।

5.तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,कबहुँ उड़ी ऑखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।

6.नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए।मीन सदा जल में रहे, धोय बास न जाए।

7.जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय ।जैसा पानी पीजिये, तैसी वाणी होय ॥

8.लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।पाछे फिर पछ्ताओगे, प्राण जाहि जब छूट ॥

9.निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय ।बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।।

10.मन हीं मनोरथ छांड़ी दे, तेरा किया न होई.पानी में घिव निकसे, तो रूखा खाए न कोई I

कबीर दास के दोहे अर्थ सहित pdf

रामायण की चौपाई

अब हम आप लोगों को रामायण की चौपाई के बारे में बताने वाले हैं राम की चौपाई कैसी होती हैं क्योंकि बहुत से लोग चौपाई पढ़ना चाहते हैं परंतु उन्हें अच्छी चौपाई नही मिल पाती है इसलिए हम आप लोगो को अच्छी अच्छी रामायण की चौपाई बताने वाले हैं जिसे आप लोग आसानी से पढ़ सकते हैं तो आइए हम आप लोगों को रामायण की चौपाई के बारे में बताते हैं I

1.मंगल भवन अमंगल हारी द्रवाहुस दशरथ अजर बिहारी I

2. हरि अनंत हरि कथा अनंता , कहई सुनहि बहुविधि सब संता I

3. जा पर कृपा राम की होई, ता पर कृपा करई सब कोई I

4.रघु कुल रीति सदा चलि आई, प्राण जाए पर वचन न जाई I

5. सुर नर मुनि सब की यही रीती, स्वरथ लाग करई सब प्रीती I

6. दीन दयाल बिरदु संभारी, हरऊ नाथ मम संकट भारी I

7. बिनु सत्संग विवेक ना होई, राम कृपा बिनु सुलभ ना होई I

8. गुरू गृह पढ़न गए रघुराई , अल्प काल विद्या सब पाई I

9.जा पर कृपा राम की होई।
ता पर कृपा करहिं सब कोई॥
जिनके कपट, दम्भ नहिं माया।
तिनके ह्रदय बसहु रघुराया॥

10.बिनु सत्संग विवेक न होई। 
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥
सठ सुधरहिं सत्संगति पाई।
पारस परस कुघात सुहाई॥

11.कहेहु तात अस मोर प्रनामा।
सब प्रकार प्रभु पूरनकामा॥
दीन दयाल बिरिदु संभारी।
हरहु नाथ मम संकट भारी॥

12.हरि अनंत हरि कथा अनंता।
कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥
रामचंद्र के चरित सुहाए।
कलप कोटि लगि जाहिं न गाए॥

13.जासु नाम जपि सुनहु भवानी।भव बंधन काटहिं नर ग्यानी॥तासु दूत कि बंध तरु आवा।प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा॥

14.होइहि सोइ जो राम रचि राखा।को करि तर्क बढ़ावै साखा॥अस कहि लगे जपन हरिनामा।गईं सती जहँ प्रभु सुखधामा॥

15.सुमति कुमति सब कें उर रहहीं।नाथ पुरान निगम अस कहहीं॥जहाँ सुमति तहँ संपति नाना।जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना॥

16.ह्रदय बिचारति बारहिं बारा,कवन भाँति लंकापति मारा।अति सुकुमार जुगल मम बारे,निशाचर सुभट महाबल भारे।।

17.एक पिता के बिपुल कुमारा,होहिं पृथक गुन शीला अचारा।कोउ पंडित कोउ तापस ज्ञाता,कोउ धनवंत वीर कोउ दाता॥

18.संत सहहिं दुख परहित लागी,पर दुख हेतु असंत अभागी।भूर्ज तरु सम संत कृपाला,परहित निति सह बिपति बिसाला॥

19.अगुण सगुण गुण मंदिर सुंदर,भ्रम तम प्रबल प्रताप दिवाकर।काम क्रोध मद गज पंचानन,बसहु निरंतर जन मन कानन।।

20.जेहि पर कृपा करहिं जनुजानी।कवि उर अजिर नचावहिं बानी।।मोरि सुधारहिं सो सब भांती।जासु कृपा नहिं कृपा अघाती।।

21.प्रनवउ पवन कुमार खल बन पावक ग्यान धुन।जासु हृदय आगार बसहि राम सर चाप घर।।

22.प्रबिसि नगर कीजै सब काजा।हृदय राखि कौशलपुर राजा।।

23.पवन तनय बल पवन समानाIबुधि विवके बिग्यान निधाना।।

24. धन्य देश सो जहं सुरसरी।धन्य नारी पतिव्रत अनुसारी॥धन्य सो भूपु नीति जो करई।धन्य सो द्विज निज धर्म न टरई॥

25.श्याम गात राजीव बिलोचन,दीन बंधु प्रणतारति मोचन।अनुज जानकी सहित निरंतर,बसहु राम नृप मम उर अन्दर॥

मौत के दोहे

अब हम आप लोगों को बताने वाले हैं कि कबीर दास ने मौत के ऊपर कौन से दोहे लिखे हैं क्योंकि बहुत लोग नहीं जानते होंगे कि कबीर दास के मौत के दोहे कौन से हैं इसलिए हम आप लोगों को बताने वाले हैं कि कबीर दास ने मौत के ऊपर कौन-कौन से दोहे लिखे हैं क्योंकि हम आप लोगों को मौत के ऊपर कई सारे दोहे बताने वाले हैं जिसे पढ़कर आप लोग भी जान सकते हैं कि कबीर दास जी ने मौत के ऊपर कैसे दोहे तथा कौन-कौन से दोहे लिखे तो आइए हम आप लोगों को नीचे मौत के ऊपर कुछ दोहे बताते हैं I

काल जीव को ग्रासै, बहुत कहयो समुझायेकहै कबीर मैं क्या करुॅ, कोयी नहीं पतियाये।

अर्थ= मृत्यु जीव को ग्रस लेता है-खा जाता है। यह बात मैंने बहुत समझाकर कही है।कबीर कहते है की अब मैं क्या करु-कोई भी मेरी बात पर विश्वास नहीं करता है।

काल छिछाना है खड़ा, जग पियारे मीतहरि सनेही बाहिरा, क्यों सोबय निहचिंत।

अर्थ = मृत्यु रुपी बाज तुम पर झपटने के लिये खड़ा है। प्यारे मित्रों जागों।परम प्रिय स्नेही भगवान बाहर है। तुम क्यों निश्चिंत सोये हो । भगवान की भक्ति बिना तुम निश्चिंत मत सोओ।

काल फिरै सिर उपरै, हाथौं धरी कमानकहै कबीर गहु नाम को, छोर सकल अभिमान।

अर्थ = मृत्यु हाथों में तीर धनुष लेकर सबों के सिर पर चक्कर लगा रही है।समस्त घमंड अभिमान छोड़ कर प्रभु के नाम को पकड़ो-ग्रहण करो-तुम्हारी मुक्ति होगी।

बेटा जाय क्या हुआ, कहा बजाबै थालआवन जावन हवै रहा, ज्यों किरी का नाल।

अर्थ = पुत्र के जन्म से क्या हुआ? थाली पीट कर खुशी क्यों मना रहे हो?इस जगत में आना जाना लगा ही रहता है जैसे की एक नाली का कीड़ा पंक्ति बद्ध हो कर आजा जाता रहता है।

कबीर गाफील क्यों फिरय, क्या सोता घनघोरतेरे सिराने जाम खड़ा, ज्यों अंधियारे चोर।

अर्थ = कबीर कहते है की ऐ मनुष्य तुम भ्रम में क्यों भटक रहे हो?तुम गहरी नीन्द में क्यों सो रहे हो? तुम्हारे सिरहाने में मौत खड़ा है जैसे अंधेरे में चोर छिपकर रहता है।

कबीर टुक टुक देखता, पल पल गयी बिहायेजीव जनजालय परि रहा, दिया दमामा आये।

अर्थ = कबीर टुकुर टुकुर धूर कर देख रहे है। यह जीवन क्षण क्षण बीतता जा रहा है।प्राणी माया के जंजाल में पड़ा हुआ है और काल ने कूच करने के लिये नगारा पीट दिया है।

कबीर हरि सो हेत कर, कोरै चित ना लायेबंधियो बारि खटीक के, ता पशु केतिक आये।

अर्थ = कबीर कहते है की प्रभु से प्रेम करो। अपने चित्त में कूड़ा कचरा मत भरों।एक पशु कसाई के द्वार पर बांध दिया गया है-समझो उसकी आयु कितनी शेष बची है।

कागा काय छिपाय के, कियो हंस का भेशचलो हंस घर आपने, लेहु धनी का देश।

अर्थ = कौये ने अपने शरीर को छिपा कर हंस का वेश धारण कर लिया है।ऐ हंसो-अपने घर चलो। परमात्मा के स्थान का शरण लो। वही तुम्हारा मोक्ष होगा ।

काल हमारे संग है, कश जीवन की आसदस दिन नाम संभार ले,जब लगि पिंजर सांश।

अर्थ = मृत्यु सदा हमारे साथ है। इस जीवन की कोई आशा नहीं है।केवल दस दिन प्रभु का नाम सुमिरन करलो जब तक इस शरीर में सांस बचा है।

काल काल सब कोई कहै, काल ना चिन्है कोयीजेती मन की कल्पना, काल कहाबै सोयी।

अर्थ = मृत्यु मृत्यु सब कोई कहते है पर इस मृत्यु को कोई नहीं पहचानता है।जिसके मन में मृत्यु के बारे में जैसी कल्पना है-वही मृत्यु कहलाता है।

काल पाये जग उपजो, काल पाये सब जायेकाल पाये सब बिनसि है, काल काल कंह खाये।

अर्थ = अपने समय पर सृष्टि उत्पन्न होती है। अपने समय पर सब का अंत हो जाता है।समय पर सभी जीचों का विनाश हो जाता है। काल भी काल को-मृत्यु भी समय को खा जाता है।

चहुॅ दिस ठाढ़े सूरमा, हाथ लिये हथियारसब ही येह तन देखता, काल ले गया मार।

अर्थ = चारों दिशाओं में वीर हाथों में हथियार लेकर खड़े थे।सब लोग अपने शरीर पर गर्व कर रहे थे परंतु मृत्यु एक हीचोट में शरीर को मार कर ले गये।

चेतावनी दोहे

अब हम आप लोगों को कबीर दास के चेतावनी दोहे के बारे में बताएंगे कि कबीर दास जी ने चेतावनी के ऊपर कैसे दोहे लिखे हैं क्योंकि बहुत से लोग नहीं जानते होंगे कि कबीर दास जी के चेतावनी दोहे कौन से हैं इसलिए हम आप लोगों को बताने वाले हैं कि कबीर दास के चेतावनी दोहे कौन से है I आइए हम आप लोगो को नीचे बताते हैं कि कबीर के चेतावनी दोहे कौन से हैं I

बिन रखवाले बाहिरा, चिड़िया खाया खेत ।आधा-परधा ऊबरे, चेति सकै तो चेति ॥

अर्थ = खेत एकदम खुला पड़ा है, रखवाला कोई भी नहीं । चिड़ियों ने बहुत कुछ उसे चुग लिया है । चेत सके तो अब भी चेत जा, जाग जा , जिससे कि आधा-परधा जो भी रह गया हो, वह बच जाय ।

नान्हा कातौ चित्त दे, महँगे मोल बिकाइ ।गाहक राजा राम है, और न नेड़ा आइ I

अर्थ = खूब चित्त लगाकर महीन-से-महीन सूत तू चरखे पर कात, वह बड़े महँगे मोल बिकेगा । लेकिन उसका गाहक तो केवल राम है , कोई दूसरा उसका खरीदार पास फटकने का नहीं ।

मैं-मैं बड़ी बलाइ है, सकै तो निकसो भाजि ।कब लग राखौ हे सखी, रूई लपेटी आगि ॥

अर्थ = यह मैं -मैं बहुत बड़ी बला है । इससे निकलकर भाग सको तो भाग जाओ । अरी सखी, रुई में आग को लपेटकर तू कबतक रख सकेगी ? राग की आग को चतुराई से ढककर भी छिपाया और बुझाया नहीं जा सकता ।

कबीर’ नौबत आपणी, दिन दस लेहु बजाइ ।ए पुर पाटन, ए गली, बहुरि न देखै आइ ॥

अर्थ = कबीर कहते हैं– अपनी इस नौबत को दस दिन और बजालो तुम । फिर यह नगर, यह पट्टन और ये गलियाँ देखने को नहीं मिलेंगी ? कहाँ मिलेगा ऐसा सुयोग, ऐसा संयोग, जीवन सफल करने का, बिगड़ी बात को बना लेने का I

इक दिन ऐसा होइगा, सब सूं पड़ै बिछोह ।राजा राणा छत्रपति, सावधान किन होइ ॥

अर्थ = एक दिन ऐसा आयगा ही, जब सबसे बिछुड़ जाना होगा । तब ये बड़े-बड़े राजा और छत्र-धारी राणा क्यों सचेत नहीं हो जाते ? कभी-न-कभी अचानक आ जाने वाले उस दिन को वे क्यों याद नहीं कर रहे I

कबीर’ कहा गरबियौ, काल गहै कर केस ।ना जाणै कहाँ मारिसी, कै घरि कै परदेस ॥

अर्थ = कबीर कहते हैं -यह गर्व कैसा,जबकि काल ने तुम्हारी चोटी को पकड़ रखा है? कौन जाने वह तुम्हें कहाँ और कब मार देगा ! पता नहीं कि तुम्हारे घर में ही, या कहीं परदेश में ।

कहा कियौ हम आइ करि, कहा कहैंगे जाइ ।इत के भये न उत के, चाले मूल गंवाइ ॥

अर्थ = हमने यहाँ आकर क्या किया ? और साईं के दरबार में जाकर क्या कहेंगे ? न तो यहाँ के हुए और न वहाँ के ही – दोनों ही ठौर बिगाड़ बैठे । मूल भी गवाँकर इस बाजार से अब हम बिदा ले रहे हैं ।

कबीर’ केवल राम की, तू जिनि छाँड़े ओट ।घण-अहरनि बिचि लौह ज्यूं, घणी सहै सिर चोट ॥

अर्थ = कबीर कहते हैं, चेतावनी देते हुए — राम की ओट को तू मत छोड़, केवल यही तो एक ओट है । इसे छोड़ दिया तो तेरी वही गति होगी, जो लोहे की होती है , हथौड़े और निहाई के बीच आकर तेरे सिर पर चोट-पर-चोट पड़ेगी । उन चोटों से यह ओट ही तुझे बचा सकती है ।

आये है तो जायेगा, राजा रंक फकीरऐक सिंहासन चढ़ि चले, ऐक बांधे जंजीर।

अर्थ = इस संसार में जो आये हैं वे सभी जायेंगे राजा, गरीब या भिखारी।पर एक सिंहासन पर बैठ कर जायेगा और दूसरा जंजीर में बंध कर जायेगा।धर्मात्मा सिंहासन पर बैठ कर स्वर्ग और पापी जंजीर में बाॅंध कर नरक ले जाया जायेगा।

आठ पहर यूॅ ही गया, माया मोह जंजालहरि नाम हृदय नहीं, जीत लिया महा काल।

अर्थ = माया मोह अज्ञान भ्रम आसक्ति में संपूर्ण जीवन बीत गया। हृदय में हरि का नाम भक्ति नहीं रहने के कारणमृत्यु ने मनुष्य को जीत लिया है।

उॅचा मंदिर मेरिया, चूना कलि घुलाय
ऐकहि हरि के नाम बिन, जादि तादि पर लै जाय।

अर्थ = उॅंचा मंदिर बनाया गया उसे चूना और रंग से पोत कर सुन्दर बना दिया गया।परंतु प्रभु की पूजा और भजन-कीत्र्तन के बिना एक दिन वह स्वतः नष्ट हो जायेगा।

ऐक शीश का मानवा, करता बहुतक हीशलंका पति रावन गया, बीस भुजा दस शीश।

अर्थ = एक सिर का मनुष्य बहुत अहंकार और धमंड करता है जब कि लंका का राजा रावनबीस हाथ और दस सिर का रहने पर भी चला गया तो दूसरों का क्या कहना है।

ऐक दिन ऐसा होयेगा, कोये कहु का नाहिघर की नारी को कहै, तन की नारी नाहि।

अर्थ = एक दिन ऐसा आयेगा जब इस संसार में हमारा कोई नहीं रह जायेगा।घर की गृहणी पत्नी का क्या-शरीर की नाड़ी नस भी नहीं रहेगी और सब कुछ छोड़कर चला जायेगा।

कबीर गर्व ना किजीये, देहि देखि सुरंगबिछुरै पै मेला नहीं, ज्यों केचुली भुजंग।

अर्थ = कबीर अपने शरीर के सुंदरता पर गर्व नहीं करने की सलाह देते हैं। अगर यह शरीर घट जाता हैमृत्यु हो जाती है तो यह शरीर साॅंप के केंचुल की तरह पुनः नही मिलता है।

कबीर केवल हरि कह, सुध गरीबी चालकूर बराई बूरसी, भरी परसी झाल।

अर्थ = कबीर कहते है कि गरीब के भाॅंति विनम्र भाव से प्रभु का नाम लो। तुम्हारे सभी सांसारिक दुखदूर हो जायेंगे। लोग अंहकार में इस उपदेश को नहीं मानते हैं और त्रिविध ताप से झुलसते रहते हैं।

कबीर देबल हार का, माटी तना बंधानखरहरता पाया नहीं, देवल का सहि दान।

अर्थ = कबीर कहते हैं यह शरीर हाड़ माॅंस का संमूह है और यह मिटृी से वृक्ष की भाॅंति बंघा है।मृत्यु के बाद इसे कोई देख भी नहीं पाता है कारण यह या तो मिटृी में गाड़ दिया जाता है या जला दिया जाता है।

कबीर देवल ढ़हि पड़ा, ईट रही संवारिकरि चिजरा प्रीतरी, ढ़है ना दूजी बारि।

अर्थ = कबीर कहते है कि यह शरीर तो ढ़ह-मर गया-इसकी चिता को क्यों सजा रहे हो।तुम इसके निर्माता-परमात्मा से प्रेम करो तो कभी नाश नहीं होगा। तुम्हें जीवन से मुक्ति मिल जायेगी।

कबीर येह तन बन भया, करम जु भया कुल्हारआप आपको काटि है, कहै कबीर बिचारि।

अर्थ = यह शरीर जंगल की तरह है और मेरे सारे कर्म कुल्हारी की भांति है। यह स्वंग अपने से अपने को काटता है।बुरे कर्म अच्छे कर्मो को और अच्छे कर्म बुरे कर्मो को काट देता है।

कबीर के दोहे प्रेम पर

कबीर के प्रेम दोहे के बारे में बहुत से लोगों को पता नहीं होगा इसलिए हम आप लोगों को बताने वाले हैं कि कबीर ने प्रेम पर कौन से दोहे लिखे हैं जिसे पढ़कर आप लोग भी जान सके कि कबीर दास ने प्रेम पर कौनसे दोहे लिखे हैं तो आइए हम आप लोगों को नीचे बताते हैं कि कबीर ने प्रेम पर कौन से दोहे लिखे हैं I

नेह निबाहन कठिन है, सबसे निबहत नाहि
चढ़बो मोमे तुरंग पर, चलबो पाबक माहि।

अर्थ = प्रेम का निर्वाह अत्यंत कठिन है। सबों से इसको निभाना नहीं हो पाता है।जैसे मोम के घोंड़े पर चढ़कर आग के बीच चलना असंभव होता है।

प्रेम पंथ मे पग धरै, देत ना शीश डरायसपने मोह ब्यापे नही, ताको जनम नसाय।

अर्थ = प्रेम के राह में पैर रखने वाले को अपने सिर काटने का डर नहीं होता।उसे स्वप्न में भी भ्रम नहीं होता और उसके पुनर्जन्म का अंत हो जाता है।

प्रेम ना बारी उपजै प्रेम ना हाट बिकायराजा प्रजा जेहि रुचै,शीश देयी ले जाय।

अर्थ = प्रेम ना तो खेत में पैदा होता है और न हीं बाजार में विकता है।राजा या प्रजा जो भी प्रेम का इच्छुक हो वह अपने सिर का यानि सर्वस्व त्याग कर प्रेमप्राप्त कर सकता है। सिर का अर्थ गर्व या घमंड का त्याग प्रेम के लिये आवश्यक है।

पीया चाहै प्रेम रस, राखा चाहै मानदोय खड्ग ऐक म्यान मे, देखा सुना ना कान।

अर्थ = या तो आप प्रेम रस का पान करें या आंहकार को रखें। दोनों एक साथ संभव नहीं हैएक म्यान में दो तलवार रखने की बात न देखी गई है ना सुनी गई है।

प्रीत पुरानी ना होत है, जो उत्तम से लागसौ बरसा जल मैं रहे, पात्थर ना छोरे आग।

अर्थ = प्रेम कभी भी पुरानी नहीं होती यदि अच्छी तरह प्रेम की गई हो जैसे सौ वर्षो तक भीवर्षा में रहने पर भी पथ्थर से आग अलग नहीं होता।

प्रेम पियाला सो पिये शीश दक्षिना देयलोभी शीश ना दे सके, नाम प्रेम का लेय।

अर्थ = प्रेम का प्याला केवल वही पी सकता है जो अपने सिर का वलिदान करने को तत्पर हो।एक लोभी-लालची अपने सिर का वलिदान कभी नहीं दे सकता भले वह कितना भी प्रेम-प्रेम चिल्लाता हो।

प्रीति बहुत संसार मे, नाना बिधि की सोयउत्तम प्रीति सो जानिय, हरि नाम से जो होय।

अर्थ = संसार में अपने प्रकार के प्रेम होते हैं। बहुत सारी चीजों से प्रेम किया जाता है।पर सर्वोत्तम प्रेम वह है जो हरि के नाम से किया जाये।

प्रेम भक्ति मे रचि रहै, मोक्ष मुक्ति फल पायसब्द माहि जब मिली रहै, नहि आबै नहि जाय।

अर्थ = जो प्रेम और भक्ति में रच-वस गया है उसे मुक्ति और मोझ का फल प्राप्त होता है।जो सद्गुरु के शब्दों-उपदेशों से घुल मिल गया हो उसका पुनः जन्म या मरण नहीं होता है।

हम तुम्हरो सुमिरन करै, तुम हम चितबौ नाहिसुमिरन मन की प्रीति है, सो मन तुम ही माहि।

अर्थ = हम ईश्वर का सुमिरण करते हैं परंतु प्रभु मेरी तरफ कभी नहीं देखते है।सुमिरण मन का प्रेम है और मेरा मन सर्वदा तुम्हारे ही पास रहता है।

सौ जोजन साजन बसै, मानो हृदय मजहारकपट सनेही आंगनै, जानो समुन्दर पार।

अर्थ = वह हृदय के पास हीं बैठा है। किंतु एक झूठा-कपटी प्रेमी अगर आंगनमें भी बसा है तो मानो वह समुद्र के उसपार बसा है।

साजन सनेही बहुत हैं, सुख मे मिलै अनेकबिपति परै दुख बाटिये, सो लाखन मे ऐक।

अर्थ = सुख मे अनेक सज्जन एंव स्नेही बहुतायत से मिलते हैं पर विपत्ति मेंदुख वाटने वाला लाखों मे एक ही मिलते हैं।

सही हेतु है तासु का, जाको हरि से टेकटेक निबाहै देह भरि, रहै सबद मिलि ऐक।

अर्थ = ईश्वर से प्रेम ही वास्तविक प्रेम है। हमे अपने शक्तिभर इस प्रेम का निर्वाह करना चाहिये औरगुरु के निर्देशों का पूर्णतः पालन करना चाहिये।

सबै रसायन हम किया, प्रेम समान ना कोयेरंचक तन मे संचरै, सब तन कंचन होये।

अर्थ = समस्त दवाओं -साधनों का कबीर ने उपयोग किया परंतु प्रेम रुपी दवा केबराबर कुछ भी नहीं है। प्रेम रुपी साधन का अल्प उपयोग भी हृदय में जिस रस का संचारकरता है उससे सम्पूर्ण शरीर स्र्वण समान उपयोगी हो जाता है।

प्रीत पुरानी ना होत है, जो उत्तम से लागसौ बरसा जल में रहे, पात्थर ना छोरे आग।

अर्थ = प्रेम कभी भी पुराना नहीं होती जैसे सौ वर्षो तक भी वर्षा में रहने पर भी पत्थर से आग अलग नहीं होती।

यह तो घर है प्रेम का, उंचा अधिक एकांतसीस कटि पग तर धरै, तब पैठे कोई संत।

अर्थ = यह घर प्रेम का है बहुत ऊंचा और एकांत है। जो अपना शीश काट कर पैरों के नीचे रखने को तैयार हो तभी कोई संत इस घर में प्रवेश कर सकता है अर्थात् प्रेम के लिये सर्वाधिक त्याग की आवश्यकता होती है।

प्रेम छिपाय ना छिपै, जा घट परगट होयजो पाऐ मुख बोलै नहीं, नयन देत है रोय।

अर्थ = हृदय का प्रेम किसी भी प्रकार छिपाया नहीं जा सकता । वह मुंह से नहीं बोलता है पर उसकी आंखे प्रेम की विह्वलता के कारण रोने लगती हैं।

पीया चाहै प्रेम रस, राखा चाहै मानदोय खड्ग एक म्यान में, देखा सुना ना कान।

अर्थ = या तो आप प्रेम रस का पान कर सकते हैं या आंहकार को रख सकते हैं। दोनों एक साथ संभव नहीं हैं। जैसे एक म्यान में दो तलवार रखने की बात न देखी गई है ना सुनी गई है।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर यह दोहा किसका है?

यह दोहा कबीर दास जी का है I

कबीर के दोहे को किस नाम से जाना जाता है?

कबीर के दोहे बीजक ग्रंथनाम से जाना जाता है।

खजूर के पेड़ की क्या विशेषता है?

यह एक मध्यम आकार का पेड़ है और इसकी ऊँचाई 15-25 मीटर तक होती है, अक्सर कई तने एक ही मूल (जड़) प्रणाली से जुडे़ होते हैं पर यह अक्सर अकेले भी बढ़ते हैं।

कबीर पंथ के मूल मंत्र ?

मसि कागद छुयो नहीं, कलम गहो नहीं हाथ. वाले कबीर ने यहां भगवान गोस्वामी को जो बीज मंत्र दिया वही बीजक कहलाया।

नारियल कितने साल में फल देता है?

शुरुआती 3 से 4 साल तक नारियल के पौधों की देखभाल की जरूरत होती है. नारियल का पौधा 4 साल में फल देने लगता है I

कबीर दास जी के गुरु मंत्र?

इस पर कबीर दास जी उठ खड़े हुए और कहा कि यह शब्द ‘राम राम’ ही मेरा गुरुमंत्र है और आप मेरे गुरु हैं।

कबीर बीजक शब्द?

शब्द हमारा आदिका,शब्दे पैठा जीव । फूल रहनि की टोकरी,घोरे खाया घीव ।। साँचा शब्द कबीर का,ह्रदय देखु विचार । चित दै समुझे नही,मोहि कहत भैल युग चार ।

बीजक के कितने भाग है?

कबीरदास‍‍‍ ने बीजक एवं अनुराग सागर” नाम के ग्रंथ मे किया जिसके तीन मुख्य भाग हैं : साखी ,सबद ,रमैनी I

पंचवाणी किसकी रचना है?

कबीर दास जी का I

कबीर के शिष्य कौन थे?

कबीर के 12 शिष्य अनंतनांद, शसरुरानंद, सुखानंद, नारारीदास, भवानंद, भगत पिपा, कबीर, सेन, धन्ना, रविदास और दो महिला शिष्य सुश्रुरी और पद्यवती थे।

कबीर दास किसके शिष्य थे ?

कबीर दास रामानंद के शिष्य थे I

newsclick here
rskgclick here

Leave a Comment