कृषक समाज किसे कहते है परिभाषा (krishak samaj ki paribhasha in hindi) – हमारे समाज में कृषक समाज एक ऐसा समाज है जो खेती किसानी तथा पशुपालन तथा दुग्ध उद्योग तथा मत्स्य कुकुट तथा अन्य बहुत सारे कृषि उद्योग हैं जिनको करके अपना जीवन व्यतीत करता है और ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्र में पाया जाता है इसीलिए कृषक समाज के बारे में ज्यादा कुछ ना कहकर इतना कहना चाहता हूं कि कृषक समाज खेती किसानी करने तथा पशुपालन करने वाला एक निम्न अर्थव्यवस्था वाला समाज है जो कि भारत की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका रखता है।
यही कृषक समाज की उचित परिभाषा है और यही किसानों की मर्यादा कि वह लोग कम लाभ में भी अपना कार्य सुनिश्चित करते हैं तथा उसमें लगे रहते हैं भारतीय किसान बहुत ही निम्न अर्थव्यवस्था के होते हैं इसी वजह से भारत के लगभग 80 परसेंट आबादी के लोग कृषि उद्योग पर ही विश्वास रखते हैं मैं आप लोगों को बताना चाहता हूं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है यहां पर सबसे ज्यादा पर सबसे ज्यादा किसानी होती है।

ग्रामीण समाज एवं कृषक समाज की अवधारणा/Concept of Rural Society and Farmer Society
ग्रामीण समाज एक ऐसा समाज है जो की कृषक समाज के ऊपर निर्भर करता है और कृषि से संबंधित ही कार्य करता है जैसे मछली पकड़ना कपड़ा बोलना रेशा निकालना बढ़ाई गिरी का काम करना लकड़ी का काम करना मिट्टी का बर्तन बनाना लोहे का सामान बनाना इससे हसिया खुरपी कुल्हाड़ी फावड़ा तथा कपड़ा धोने वाले धोबी चमड़े से संबंधित कार्य करने वाले पालतू पशुओं से कार्य करने वाले जैसे कुकुट पालन करने वाले ऐसे बहुत सारे लोग ग्रामीण समाज में आते हैं जो कि कृषक पर आधारित होते हैं इसीलिए ग्रामीण समाज तथा कृषक समाज की अवधारणा देते हुए हम लोगों ने आप लोगों के समक्ष जो तथ्य प्रस्तुत किया है हमें आशा है कि आप लोगों को बहुत ही प्रेरित करेंगे।
इसी प्रकार कृषक समाज भी एक प्रकार से गांव में रहने वाला समाज है जो किसानी तथा पशुपालन जैसे कार्यों को करता है तथा अपने घर को संचालित करता है तथा देश की अर्थव्यवस्था में योगदान देता है तथा लोगों को भरण-पोषण कराने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है इसीलिए कृषक समाज एक ऐसा समाज है जिस पर पूरी दुनिया को नाज है क्योंकि अगर कृषक समाज मेहनत करता है तो उसका लाभ सभी लोग उठाते हैं लेकिन आज की समस्या ऐसी है कि कृषक समाज की स्थिति दयनीय हो गई समय पर खाद नहीं मिलता है समय पर पानी नहीं मिलता है और इन्हीं सारी समस्याओं से जूझते हुए कृषक समाज आगे बढ़ता है और लोगों को खाने पीने की चीजों का उत्पाद करके भेंट करता है तथा देश को संचालित करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
कृषक समाज की अवधारणा किसने दी है/Who has given the concept of farming society
अगर कृषक समाजबहुत सारे विद्वान हुए इन्होंने अपने अपने तरीके से कृषक समाज की अवधारणा प्रस्तुत की है उनमें से मैं आप लोगों को कुछ कृषक समाज के लोगों की अवधारणाएं एक लिस्ट के माध्यम से प्रस्तुत करना चाहता हूं जो आप लोगों के लिए बहुत ही उपयोगी होगा और हमें आशा है कि यह आप लोगों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो।
- नोर्वेक के अनुसार,” कृषक समाज एक बड़े स्तरीकृत समाज का वह उप-समाज है, जो या तो पूर्ण औद्योगिक अथवा अंशतः औद्योगिकृत है।
- रेमण्ड फर्थ के शब्दों मे,” लघु उत्पादकों का वह समाज जो कि केवल अपने निर्वाह के लिये ही खेती करता है, कृषक समाज कहा जा सकता है।”
- राबर्ट रेडफील्ड के अनुसार,” वे ग्रामीण लोग जो जीवन निर्वाह के लिए अपनी भूमि पर नियंत्रण बनाये रखते है और उसे जोतते है तथा कृषि जिनके जीवन के परम्परागत तरीके का एक भाग है और जो कुलीन वर्ग या नगरीय लोगों की ओर देखते है और उनसे प्रभावित होते है, जिनके जीवन का ढंग उनसे कुछ सभ्य होता है, कृषक समाज कहलाता है।
इस प्रकार से मैंने आप लोगों को ऊपर कृषक समाज की तीन अवधारणा प्रस्तुत की है जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण अवधारणाराबर्टरेडफील्ड का है इसी अवधारणा को प्रमुख अवधारणा के नाम से जाना जाता है क्योंकि इसी में बताया गयाा है गांव में रहने वाले मैंं छोटे तथा लघु उद्योग को करने वाले किसानी करने वाले तथा अपनेे कार्यों कम खर्चा मेंं चलाने वाले लोग कृषक समाज के लोग कह जातेे हैं इस प्रकार से उन्होंने अपने अवधारणा को प्रस्तुत किया।
कृषक समाज की अवधारणा दी है/The concept of farming society has been given
अगर हम कृषक समाज की बात करें तोमैं सभी लोग आ जाते हैं जो कृषि से जुड़े हुए हैं खेती किसानी से जुड़े हुए हैं पशुपालन से जुड़े हुए हैं तथा रबड़ उद्योग जैसे उद्योग पुल उद्योग तथा ऐसे बहुत सारे छोटे उद्योग हैं जो किसानी से जुड़े हुए हैं उन से संबंधित लोग को हम कृषक समाज के लोग मानते हैं कृषक समाज एक बहुत बड़ा तबका है हमारे देश का लगभग 48 पॉइंट 50% लोग खेती किसानी से जुड़े हुए हैं तथा कृषक समाज के लोग हैं और इन्हीं लोगों के संबंध में बहुत सारे विद्वानों ने अवधारणा प्रस्तुत की है जिनमें से रॉबर्ट रेडफील्ड एक बहुत महत्वपूर्ण विद्वान माने जाते हैं जिन्होंने कृषक समाज के ऊपर अपनी अवधारणा प्रस्तुत की मतलब उन्होंने कृषक समाज को अपने हिसाब से प्रस्तुत किया जैसे कि उन्होंने कहा कि खेती किसानी से जुड़े लोग जो लघु उद्योग से जुड़े रहते हैं मैं किसान कृषक समाज के लोग कहलाते हैं अब मैं आप लोगों को उनके विचार नीचे प्रस्तुत कर आऊंगा।
नोर्वेक के अनुसार,” कृषक समाज एक बड़े स्तरीकृत समाज का वह उप-समाज है, जो या तो पूर्ण औद्योगिक अथवा अंशतः औद्योगिकृत है।रेमण्ड फर्थ के शब्दों मे,” लघु उत्पादकों का वह समाज जो कि केवल अपने निर्वाह के लिये ही खेती करता है, कृषक समाज कहा जा सकता है।”राबर्ट रेडफील्ड के अनुसार,” वे ग्रामीण लोग जो जीवन निर्वाह के लिए अपनी भूमि पर नियंत्रण बनाये रखते है और उसे जोतते है तथा कृषि जिनके जीवन के परम्परागत तरीके का एक भाग है और जो कुलीन वर्ग या नगरीय लोगों की ओर देखते है और उनसे प्रभावित होते है, जिनके जीवन का ढंग उनसे कुछ सभ्य होता है, कृषक समाज कहलाता है।
कृषक समाज की अवधारणा का आर्थिक आधार पर वर्णन किस विद्वान ने किया है/Which scholar has described the concept of farming society on economic basis?
मैं आपको बताना चाहता हूं कि कृषक समाज की अवधारणा आर्थिक स्थिति के आधार पर इस मिंजर तथा राबर्ट रेडफील्ड इन विद्वानों ने अपने अवधारणा में जिक्र किया है जिन का विश्लेषण मैंने आप लोगों के समक्ष नीचे किया है और उनकी बहुत सारी विशेषताएं कि आप लोगों के समक्ष प्रस्तुत की गई आप लोगों को जानकारी प्राप्त हो जाएगी कि आखिर किस ने किस समाज की आर्थिक स्थिति के आधार पर अवधारणा प्रस्तुत की है धन्यवाद।
विस्तार‘‘ शब्द की उत्पत्ति 1866 में इंग्लैंड में विश्वविद्यालय विस्तार की एक प्रणाली के साथ हुई जिसे पहले कैम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालयों द्वारा आरंभ किया गया था और बाद में इंग्लैंड तथा अन्य देशों में अन्य शैक्षणिक संस्थाओं द्वारा अपनाया गया। ‘विस्तार शिक्षा‘ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक लाभों को साधारण लोगों तक पहुंचाना था। ऐसे अनेक विशेषज्ञ और वृत्तिक हैं जिन्होंने विस्तार को अलग-अलग रूप से परिभाषित किया है तथा उस पर अपनी राय व्यक्त की है जिनमें उन्होंने विस्तार के कार्यों के विभिन्न स्वरूपों को दर्शाया है।
ऐतिहासिक रूप से, ग्रामीण लोगों के लिए विस्तार का अर्थ है कृषि और गृह-अर्थव्यवस्था में शिक्षा। यह शिक्षा व्यावहारिक है जिसका लक्ष्य फार्म और घर में सुधार लाना है।
एसमिंजर (1957) के अनुसार, विस्तार शिक्षा है और इसका उद्देश्य उन लोगों की अभिवृत्तियों और क्रियाकलापों में परिवर्तन लाना है जिनके साथ कार्य कियाजाना है। लीगंस (1961) ने विस्तार शिक्षा की परिकल्पना ऐसे अनुप्रयुक्त विज्ञान के रूप में की है जिसमें अनुसंधान, संचित क्षेत्रीय अनुभावों से ली गई विषयवस्तु तथा वयस्कों और युवाओं के लिए विद्यालय से बाहर शिक्षा की समस्याओं पर केन्द्रित हानि, सिद्धांतों, विषयवस्तु और पद्धतियों के एक निकाय में उपयोगी प्रौद्योगिकी के साथ संश्लिष्ट व्यवहारात्मक विज्ञान से लिए गए प्रासंगिक सिद्धांत अंतर्निहित होते हैं।
क्षेत्र में कार्य करने के अलावा विस्तार औपचारिक रूप से कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता है जिसके परिणामस्वरूप डिग्रियां प्रदान की जाती हैं। विस्तार में शोध भी किया जाता है। विस्तार के संबंध में जो बात अनोखी है, वह ग्रामीण समुदाय के सामाजिक-आर्थिक रूपांतरण में इस विषय की जानकारी का प्रयोग करना है। इस सन्दर्भ में, विस्तार को लोगों के जीवन की गुणवत्ता में संपोषणीय सुधार लाने के लिए उनकी क्षमताओं के विस्तार को लोगों के जीवन की गुणवत्ता में संपोषणीय सुधार लाने के लिए उनकी क्षमताओं के विस्तार को लोगों के जीवन की गुणवत्ता में संपोषणीय सुधार लाने के लिए उनकी क्षमताओं के विस्तार को लोगों के जीवन की गुणवत्ता में संपोषणीय सुधार लाने के लिए उनकी क्षमताओं के विकास के विज्ञान के रूप में परिभाषित किय विकास के विज्ञान के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। विस्तार का मुख्य उद्देश्य मानव संसाधन विकास है।
कृषक समाज एवं ग्रामीण समाज में अंतर/Difference between farming society and rural society
जब हम और आप यह बात करते हैं कि ग्रामीण समाज तथा कृषक समाज में अंतर क्या है तो यह बात लोगों को समझ में नहीं आता और बहुत सारे लोग यह बताना चाहते हैं कि ग्रामीण समाज तथा कृषक समाज एक दूसरे के पर्यायवाची शब्द हैं और यही सही गांव में रहने वाले सभी लोग जो किसी से संबंधित है कृषक समाज के लोग कहलाते हैं तथा यह बात भी सही है कि गांव में रहने वाले लगभग सभी लोग किसी से संबंधित रहते हैं तो कृषक तथा ग्रामीण समाज में कोई अंतर नहीं है लेकिन लोग ऐसा कहते रहते हैं कि कृषक समर्थक ग्रामीण समाज में क्या मेन डिफरेंट होता है तो मैं आप लोगों को कुछ अंतर एक टेबल के माध्यम से दरभंगा और आप लोगों को बताने का प्रयास करूंगा कि ग्रामीण समाज तथा कृषक समाज में क्या अंतर होता है तो कृषक समाज दो प्रकार के होते हैं एक छोटे कृषक जिन्हें लघु उद्योग तथा एक बड़े होते हैं जो कि व्यवसाय के हिसाब से किसानी करते हैं तथा एक होते हैं जो अपना जीवन यापन करने के लिए किसानी करते हैं तो समाज ही दो वर्गों में बटा हुआ है और इस प्रकार से ग्रामीण और किसान दोनों में बहुत सारे अंतर होते हैं जो मैं आप लोगों के समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूं।
कृषक समाज | ग्रामीण समाज |
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1.कृषक समाज, ग्रामीण समाज या ग्रामीण समुदाय का पर्यायवाची शब्द है। 2. कृषक समाज के सदस्य केवल अपने जीवन निर्वाह के लिए खेती करते है और भूमि पर नियंत्रण बनाये रखते है तथा उसे जोतते है। 3. कृषक समाज के व्यक्तियों मे पाये जाने वाले पारस्परिक संबंध व्यक्तिगत तथा प्रगाढ़ होते है। 4. कृषक समाज एक स्थिर समाज है। इसके व्यक्तियों का जीवन प्राकृतिक जीवन है, क्योंकि प्रकृति से उनका प्रत्यक्ष संबंध है। 5. कृषक समाज के सदस्य अपने जीवन के अनेक क्षेत्रों मे कस्बे या नगर के अभिजात वर्ग से प्रभावित होते है। 6. कृषक समाज के कृषकों के पास भूमि का होना अनिवार्य नही है। 7. कृषक समाज मे ऐसे लोग भी पाये जाते है जिनके पास अपनी स्वयं की भूमि नही होती है। परन्तु वे एक आसानी या किराएदार के रूप मे किसी दूसरे भू-स्वामी की भूमि पर कृषि करते है। 8. अविभेदीकृत तथा उपस्तरीकृत समाज ही एक आदर्श कृषक समाज होता है। 9. एक कृषक समाज की अपनी परम्परागत संस्कृति होती है, जिसके प्रति कृषक समाज के सभी सदस्यों की अटूट भक्ति होती है। 10. कृषक समाज अपने परम्परागत तरीकों से अपना जीवन व्यतीत करता है और अपने परम्परागत तरीकों से ही खेती का कार्य करता है। 11. खेती कृषक समाज की आजीविका का साधन है और वही उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन है। 12. कृषक समाज के सभी व्यक्तियों में सांस्कृतिक और सामाजिक आधार पर अनेक विभिन्नताएं पायी जाती है। | ग्रामीण समाज गांव में रहता है यही कृषक समाज तथा ग्रामीण समाज में अंतर है ग्रामीण समाज में जातीय व्यवस्था के अंतर्गत लोगों का कार्य अलग-अलग होता था लेकिन अब ऐसा नहींं है। ग्रामीण समाज में भीीी मूल चूल परिवर्तन हुए हैंं जो कि आजकल देखने को मिलता है। ग्रामीण समाज एक बहुुत ही तथा अर्ध विकसित समाज है। लेकिन यह समाज अब धीरे-धीरे विकसित होने लगा है। ग्रामीण क्षेत्र के लोग पहले ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं होते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं है अब वहांं के लोग भी अपने बच्चोंचों को पढ़ाते हैं। इस प्रकार से हम लोग कह सकते हैं कि अब ग्रामीण तथााा कृषक समाजक मैंं ज्यादा अंतर नहीं रह गया है। ग्रामीण समाज के लोग अपने बच्चों को पढ़ानेेे के लिए अपने घर का खर्चा चलाने के लिए परदेस में जाकर रहते हैं। |
भारत कृषक समाज/India Farmers Society
अगर कृषक समाज की बात की जाए तो भारत की सबसे महत्वपूर्ण समाज में से कृषक समाज एक है इसी से सारे समाज अपन होते हैं क्यों किया मानव का सबसे महत्वपूर्ण संसाधन भारत में कृषि ही है।प्राचीन काल में भी मानव संसाधन का उपयोग करता रहा किसी मानव के व्यवसाय का एक मुख्य संसाधन है किसी के लिए भूमि सीमित मात्रा में उपलब्ध हैयहां पर कृषि क्षेत्रों के हिसाब से होती है जहां जैसा क्षेत्र होता है वहां वैसी फसलों का उपवास होता है जिसे तीन भागों में विभाजित किया गया है जो नीचे दिए गए हैं।
- उच्च अक्षांश में अधिक ठंड पड़ने के कारण पौधों के विकास का काल छोटा होता है।
- उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में वर्षा की कमी के कारण किसी कार्य कठिन होता है।
- पर्वतीय और पठारी प्रदेशों में उबड़ खाबड़ और भालू होते हैं जिनसे वहां किसी कार्य नहीं हो पाता।
जिन क्षेत्रों में संपन्न और उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी तथा पर्वत जल की आपूर्ति जैसे सुविधाएं उपलब्ध होती हैं उन्हें क्षेत्रों में किसी को प्रोत्साहन मिलता है जनसंख्या बढ़तीआवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किसी के नए क्षेत्रों का विकास किया गया है नए क्षेत्रों में नई मशीनों का उपयोग करके घास के मैदानों को साफ करके उन पर किसी की जा रही है किसी के विकास के लिए उन्नत बीज कीटनाशक दवाओं तथा उन्नत किस्म के बीजों का प्रयोग सिंचाई के नए उपकरणों का विकास करके कृषि उत्पादन में वृद्धि की जा रही है कृषि के लिए उत्तम जलवायु उर्वरा मिट्टी खेती के अनुकूल जल और भूमि की प्रकृति का होना अत्यंत आवश्यक है किसी के बेहतर विकास के लिए किसी के संबंधित नए उत्पादों का उत्पादन करना भी जरूरी होता है अब मैं आप लोगों को किसी के फसलों के बारे में बताना चाहता हूं कि इन्हें किस श्रेणी में बांटा गया है।
तो मैं आप लोगों को बताना चाहता हूं कि किसी के उपरांत प्राप्त किसी फसलों को निम्न श्रेणी में बांटा गया है जो नीचे लिस्ट के माध्यम से दिए गए।
- खाद्यान फसले –गेहूं चावल मक्का ज्वार बाजरा तथा समस्त मोटे अनाजों को शामिल किया गया है।
- व्यापारिक फसलें–– इसके अंतर्गत गन्ना तंबाकू चुकंदर तथा मसाले याद आते हैं।
- रेशेदार फसलें–इसके अंतर्गत कपास झूठ और सनई की फसलें आती हैं।
- रोपड़ फसलें–चाय कहावत था रबड़ रोपण फसलों के अंतर्गत आते हैं उपयुक्त फसलों के उदाहरण उत्पादन के लिए निम्न को पर्यावरणीय दशाओं का होना बहुत जरूरी है।
कृषक समाज की समस्याएं/problems of farming society
कृषक समाज की अगर समस्या की बात की जाए तो कृषक समाज में समस्या ही समस्या है क्योंकि इस समाज के लोग ज्यादातर ग्रामीण तबके से आते हैं और यहां पर कोई भी सुविधा नहीं होने की वजह से किसानों को बड़ी समस्या से झेलना पड़ता है किसानों की सबसे बड़ी समस्या उनके फसलों की सिंचाई का होता है जो कि आज पूरे भारत में एक बड़ी समस्या के रूप में बनी हुई है लेकिन बहुत सारी वैज्ञानिक तकनीकी मशीनों की वजह से कुछ समस्या का हल हुआ उसके बाद में मंडी का अभाव भी किसान की समस्या का एक मूल कारण है इसके साथ-साथ बहुत ऐसी समस्याएं हैं जिनका महत्वपूर्ण योगदान किसान के अर्थव्यवस्था को नीचे पहुंचाने में निभाती हैं।
- सिंचाई का अभाव होना
- फसल को बेचने के लिए मंडियों का अभाव होना।
- फसलों के दाम का एमएसपी तय ना होना।
- एमएसपी गारंटी कानून न लगना। किसानों के गन्ना भुगतान में ज्यादा समय लगना।
- किसान उत्पादक क्षमताओं का संगठन ना होना।
- ग्रामीण क्षेत्रों में सिंचाई के लिए पर्याप्त बिजली का ना होना।
- किसानों की सबसे महत्वपूर्ण समस्या यह होती है कि उनके लिए बीजों की उत्तम व्यवस्था ना होना।
- मानसून पर निर्भरता।
- स्वस्थ उर्वरक उद्योग।
- फसलों की कीमतों पर अत्यधिक हस्तक्षेप होना।
- विमुद्रीकरण का प्रभाव।
- प्राकृतिक संसाधनों का उचित उपयोग ना करना।
- प्रभावी नीतियों का उपयोग।
- कृषि में निवेश का अभाव।
- सहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों का विभाजन।
सिंचाई सुविधाएं
भारत के कुल शुद्ध सिंचाई क्षेत्र में सरकारी आंकड़े में शायद ही कभी कोई वृद्धि दिखाई गयी हो. कुल सिंचित क्षेत्र लगभग 63 मिलियन हेक्टेयर है और देश में बोया हुआ कुल क्षेत्रफल का केवल 45 प्रतिशत ही है.
हाल के वर्षों में असम, मध्य प्रदेश, जम्मू और कश्मीर और राजस्थान में सिंचाई की सुविधाओं में कुछ सुधार हुआ है. लेकिन 2004-05 में प्रमुख, मध्यम और लघु सिंचाई में वास्तविक सार्वजनिक निवेश में 2,35 अरब रूपये से लेकर 2013-14 में 30 9 बिलियन तक भारी वृद्धि के कारण यह नगण्य लगता है.भारत ने प्रमुख परियोजनाओं के लिए अपने पूंजीगत व्यय में में 3.5 गुना तक वृद्धि की है, जबकि छोटे सिंचाई में निवेश केवल 2.5 गुना बढ़ा है.
सिंचित क्षेत्र में बनी स्थिरता से इस क्षेत्र में किये जाने वाले निवेश और इसकी दक्षता पर सवाल उठते है. सिंचाई क्षेत्र में विकास के लिए इन बातों पर गौर करना जरुरी है.
सरकारी आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि मध्यम और बड़े सिंचाई परियोजनाओं की तुलना में छोटे सिंचाई परियोजनाओं के लिए सार्वजनिक व्यय से बनाई गई सिंचाई क्षमता का अनुपात अधिक है. छोटी सिंचाई परियोजनाओं पर नीति निर्माताओं द्वारा कम ध्यान दिया गया है. लेकिन वास्तविकता यह है कि कुओं, बाढ़ नियंत्रण और सूखे की कमी के रिचार्जिंग के लिए छोटे सिंचाई परियोजनाएं बहुत महत्वपूर्ण हैं.
ग्रामीण समाज की विशेषताएं/Features of Rural Society
ग्रामीण समाज के बारे में आप लोग जानते ही हैं कि यह कृषक समाज की पर्यायवाची शब्द की तरह प्रयोग होता है ग्रामीण समाज गांव में रहने वाला एक ऐसा तब का है जो कि ज्यादातर सुख वाली सुविधाओं से परे रहता है लेकिन इसका जीवन बड़ा आनंद में होता है यह गांव की सुधा हवाओं में रहता है तथा पर्यावरण की एक सुंदर छवि में रहता है इसी कारण ग्रामीण समाज का जीवन बहुत अच्छा होता है स्वास्थ्य की दृष्टि से लेकिन अगर सुख समृद्धि की बात की जाए तो ग्रामीण क्षेत्रों में कम ही देखने को मिलती है इसीलिए मैंने आप लोगों को आज ग्रामीण क्षेत्रों की तथा ग्रामीण समाज की बहुत सारी विशेषताओं के बारे में बताना चाहता हूं जो कि आप लोगों के समक्ष लिस्ट के माध्यम से प्रस्तुत किया जाएगा और हमें आशा है कि आप लोग इन सारी चीजों को बड़ी ही आसानी से एक्सेप्ट करेंगे और उन के माध्यम से अपनी जानकारी को बढ़ाएंगे।
- ग्रामीण समाज एक स्वास्थ्य पार्क समाज है क्योंकि यहां के लोग शुद्ध वातावरण में रहते हैं।
- ग्रामीण समाज में बहुत सारे समस्याएं भी हैं। और ब्राह्मण समाज की बहुत सारी विशेषताएं भी जैसे यहां के लोग सुधारा में रहते हैं तथा खान-पान की उचित व्यवस्था रहती है
- ब्राह्मण समाज के लोग दूध दही घी मक्खन इत्यादि विटामिन प्रोटीन वाली पदार्थों का सेवन नित्य तथा रोज करते हैं जो यहां उपलब्ध रहता है।
- जातीय व्यवस्था ग्रामीण समाज की प्रमुख विशेषताओं में से एक है।
- सरल एवं सादा जीवन व्यतीत करना।
- सामाजिक समरूपता।
- भाग्यवादी ता इसका मतलब यह हुआ कि यहां के लोग भाग्य पर ज्यादा विश्वास रखते हैं अपने कर्म पर नहीं।
- संयुक्त परिवार का होना।
- प्राकृतिक के समीप होना।
- जनसंख्या का घनत्व कम होना।
- प्रमुख व्यवसाय के रूप में कृषि का होना
कृषक समाज तथा किसान पर निबंध।/Essay on Farmer Society and Farmer.
कृषक समाज खेती किसानी करने वाला तथा गांव में रहने वाला एक बहुत बड़ा तक का है जो की खेती किसानी पर निर्भर रहता है तथा उसकी अर्थव्यवस्था बहुत नियम है इसी क्षेत्र में मैं आप लोगों को आज भारतीय किसानों की समस्याओं और उनके समाधान के लिए किए गए महत्वपूर्ण कार्यों के बारे में समझाना चाहता हूं तथा उनके बारे में निबंध के माध्यम से आप लोगों को जानकारी देना चाहता हूं जो कि आप लोगों के समक्ष दिया गया।
प्रस्तावना
ग्रामभारतीय सभ्यता के प्रतीक हैं भोजन एवं अन्य सताए गांव ही पूर्ण कर आते हैं भारत का औद्योगिक स्वरूप भी ग्रामीण कृषि को पर ही निर्भर है वस्तुतः भारतीय अर्थव्यवस्था का मूल आधार ग्राम ही है याद गांव को विकसित नहीं किया गया तभी देश कभी विकसित नहीं होगा और समृद्ध भी नहीं होगा अगर गांव विकसित और समृद्ध हो गए तो देश भी विकसित हो जाएगा।
किसानों की सामाजिक समस्याएं
विकास के इस युग में भी गांव में शिक्षा स्वास्थ्य मनोरंजन तथा परिवहन के संसाधनों की समुचित व्यवस्था नहीं हो सकी जिसके कारण भारतीय किसानों को अनेक परेशानियां सैनिक परिवार संसाधनों के अभाव में अपने बच्चों के लिए शिक्षा का प्रबंध भी नहीं कर पा रही है जो कि पिछड़ेपन का सबसे बड़ा कारण भारतीय किसान अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पूरा जीवन प्रयास करता रहेगा इसी कारण आधुनिक परिवेश में अन्य ही रहता है।
आर्थिक समस्याएं
गांव के अधिकांश किसानों को आर्थिक स्थिति अत्यंत सोचनीय है उसकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है धान के अभाव में वह अच्छी पैदावार भी नहीं कर पाता है जिसका प्रभाव संपूर्ण राष्ट्र के विकास पर पड़ता है गांव में निर्धनता भुखमरी और बेरोजगारी अपने चरम पर है किसको को किसान के संबंधित जानकारी सुगमता से सुलभ नहीं हो पाती है।
वर्तमान स्थिति
गांव में अभी भी पक्की सड़कों का अभाव है शिक्षा स्वास्थ्य था मनोरंजन के साधनों का उपयुक्त प्रभाव नहीं है बेरोजगारी अपने चरम पर है तथा संचार के समुचित संसाधनों पिए जल उपयोग निर्देश तथा परामर्श संबंधित सुविधाओं का अभाव है।
किसी की स्थिति
देश के कुल निर्यात में कृषि का योगदान लगभग 18% है अनाज की प्रति व्यक्ति उपलब्धता सन 2000 एचडी में प्रतिदिन 467 ग्राम पहुंच गई थी जबकि पांचवें दशक की शुरुआत में यह प्रति व्यक्ति 395 ग्राम प्रतिदिन थे स्वतंत्रता के पश्चात निरंतर कृषि उत्पादन में वृद्धि दर्ज की गई है लेकिन वर्ष 2002 में देश की अधिकांश हिस्सों में सूखा पड़ गया जिसके कारण 2,000 12 के लिए कृषक उत्पादन के लिए लगाए गए सारे अनुमान बेकार गया यज्ञ विधान की पूरी फसल नष्ट हो गई फिर भी आज हम खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हैं।
विज्ञान का योगदान।
जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व का दूसरा स्थान है पहले इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए अन्य पूर्ण करना असंभव ही प्रतीत होता था परंतु आज हम अन्य के मामले में आत्मनिर्भर हो गए हैं इसके से आधुनिक विज्ञान को ही जाता है विभिन्न प्रकार के उर्वर को बुवाई कटाई के आधुनिक संसाधनों कीटनाशक दवाइयों तथा सिंचाई यों की टीम संसाधनों ने खेती को अत्यंत सरल एवं सुविधा पूर्ण बना दिया है।
नवीन योजनाएं
गांव के विकास से सरकार के द्वारा नवीन योजनाओं का शुभारंभ किया जा रहा है गांव के परिवहन विद्युत सिंचाई के साधन पेयजल शिक्षा आदि की व्यवस्था हेतु व्यापक स्तर पर प्रयास किया जा रहा है किसानों को उन्नत बीजों का प्रयोग करने के लिए विभिन्न योजनाओं के द्वारा प्रोत्साहित किया जा रहा है आधुनिक कृषि यंत्र खरीदने के लिए विभिन्न प्रकार के अनुदान दिए जा रहे हैं किसानों के उत्थान के लिए राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना की जिसका उद्देश्य किसी पशुपालन कुटीर तथा ग्राम उद्योग को आर्थिक सहायता देकर प्रोत्साहन करना है।
राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक।
राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक का उद्देश्य किसी लघु उद्योग कुटीर उद्योग तथा ग्राम उद्योग दस्ता कार्य और ग्रामीण क्षेत्रों में अन्य आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहन देने के लिए ऋण उपलब्ध कराना ज्ञात तथा ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में खुशहाल बनाया जा सके तथा वहां के कृषक समाज के लोग खुशहाल हो सके।
कृषि अनुसाधन और शिक्षा।
कृषि अनुसाधन और शिक्षा विभाग की स्थापना कृषि मंत्रालय के अंतर्गत 1973 ईस्वी में की गई थीया विभाग कृषि पशुपालन और मत्स्य पालन के क्षेत्र में अनुसंधान और शैक्षिक गतिविधियों काश संचालित करने के लिए उत्तरदाई है कृषि मंत्रालय के कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग के प्रमुख संगठन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने कृषि प्रौद्योगिकी के विकास निवेश सामग्री तथा खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता लाने के लिए प्रमुख वैज्ञानिक जानकारियों को आम लोगों तक पहुंचाने के लिए प्रमुख भूमिका निभाई है।
कृषक समाज तथा कृषि से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदु।
- किसी भारतीय अर्थव्यवस्था का मेरुदंड है तथा जनसंख्या का 48.9% भाग आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है निजी क्षेत्र का या सबसे बड़ा व्यवसाय है।
- जनवरी 2004 में राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन हुआ जिस के प्रथम अध्यक्ष सोमपाल थे।
- भारत में कृषि वर्ष 1 जुलाई से 30 जून तक मनाया जाता है।
- भारत में कृषि क्षेत्र के जीडीपी का 0.3% भाग किसी शोध पर व्यय किया जाता है जबकि अमेरिका में यह 4% है राष्ट्रीय किसान आयोग ने इसे 5% करने का सुझाव दिया है।
- 2011-12 के स्थिर कीमत पर सकल मूल्यवर्धन में प्रथम वर्ष दो हजार सत्रह अट्ठारह में कृषि एवं सहायक क्रियाएं क्षेत्र का हिस्सा 17.1% रह गया।
- राष्ट्रीय आय लेखन की संशोधित विधि के अनुसार स्थिर की मृत्यु 2011-12 पर सकल मूल्य वर्धन में विकास दर 2016-17 में 6.3% आकृति की गई वर्ष दो हजार सत्रह अट्ठारह के लिए या वृद्धि दर 3.4% आकृति की गई।
- कुल सकल पूंजी निर्माण के अनुपात के रूप में शक्ल किसी पूंजी निर्माण 2011-12 मूल्य कीमतों पर 2011-12 में 8.6% से गिरकर 2013-14 में 7.4% रह गई सी ओशो द्वारा जारी संशोधित अनुमानों के अनुसार किसी से जीवाय जीडीपी के कृषि और संबंध में बीएसएफ का प्रतिशत शेयर में 2013 में 16.6% से 2015-16 में 16.3% तक गिरावट की प्रवृत्ति देखी गई।
- देश का कुल श्रमिक शक्ति का लगभग 48.9% भाग कृषि एवं इससे संबंधित उद्योग धंधों से अपनी आजीविका कमाता है।
- देश का लगभग 55% कृषि क्षेत्र वर्षा पर निर्भर करता है।
उपज करने वाले राज्य | उपज | कुल उत्पाद का प्रतिशत |
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पश्चिम बंगाल | चावल | 13.7 प्रतिशत |
उत्तर प्रदेश | गेहूं | 30.6% |
महाराष्ट्र | मक्का | 14.5% |
राजस्थान | मोटा अनाज | 15.8% |
मध्य प्रदेश | दाल | 27.2% |
उत्तर प्रदेश | कुल खाद्यान्न | 17.8% |
गुजरात | मूंगफली | 41.8 प्रतिशत |
राजस्थान | सरसों | 46.5% |
मध्य प्रदेश | सोयाबीन | 51 दशमलव 3% |
कर्नाटक | सनफ्लावर | 41.7% |
मध्य प्रदेश | समस्त तिलहन | 27% |
उत्तर प्रदेश | गन्ना | 41.1 प्रतिशत |
गुजरात | कपास | 32.1% |
पश्चिम बंगाल | झूठ | 75.1% |
कृषक समाज क्या है?
कृषक समाज एक ऐसा समाज है जो अपना जीवन यापन खेती किसानी फल सब्जी अनाज होगा कर भेज कर अपना जीवन यापन करता है तथा पशुओं को पाल कर अपना जीवन व्यतीत करता है कृषक समाज के लोग कहलाते हैं।
कृषक वर्ग की संरचना से आप क्या समझते हैं?
जब हम किसान के वर्ग की बात करते हैं तो किसान कई प्रकार के होते हैं एक छोटे किसान जो छोटी खेती करते हैं तथा एक खेतिहर किसान जो ज्यादा पर किसानी करते हैं व्यवसाय की किसानी करते हैं और छोटे खेतिहर उसे अपने जीवन यापन के लिए खेती करते हैं तथा कुछ किसान मजबूरी भी करते हैं।
कृषक समाज की अवधारणा किसने दी?
कृषक समाज की अवधारणा देते हुए रॉबर्ट रेडफील्ड ने यह बात कही ग्रामीण लोग जो जीवन निर्वाह के लिए अपनी भूमि पर नियंत्रण बनाये रखते है और उसे जोतते है तथा कृषि जिनके जीवन के परम्परागत तरीके का एक भाग है और जो कुलीन वर्ग या नगरीय लोगों की ओर देखते है और उनसे प्रभावित होते है, जिनके जीवन का ढंग उनसे कुछ सभ्य होता
रॉबर्ट रेड फील्ड की अवधारणा क्या है?
राबर्ट रेडफील्ड के अनुसार,” वे ग्रामीण लोग जो जीवन निर्वाह के लिए अपनी भूमि पर नियंत्रण बनाये रखते है और उसे जोतते है तथा कृषि जिनके जीवन के परम्परागत तरीके का एक भाग है और जो कुलीन वर्ग या नगरीय लोगों की ओर देखते है और उनसे प्रभावित होते है, जिनके जीवन का ढंग उनसे कुछ सभ्य होता है, कृषक समाज कहलाता है
भारत की जनसंख्या का कितना प्रतिशत कृषक समाज है?
भारत की जनसंख्या का 48.9% लोग खेती किसानी से संबंधित है अर्थात हम कह सकते हैं कि भारत में लगभग 50% लोग कृषक समाज के अंतर्गत आते हैं और उसी से अपना जीवन यापन करते हैं।
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