प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ अमृत राय best stories of premchand amrit rai
munshi premchand ki kahani के द्वारा रचित अनेक कहानियों में से एक कहानी अमृतराय भी है जो अत्यधिक रोचक है और यह पढ़ने के लायक है तथा इसमें बहुत से वह तो भाषा का प्रयोग किया गया है मैं एक शायरी लिखने वाला कविता मैं शायरी लिखते था और उसको लोग पढ़ते थे और लोग पढ़ते हुए बहुत ही मनभावन रहते थे मैंने उस शायरी लिखते लिखते ही मेरा मन हो गया था और मैं शायरी के लिखना नहीं चाहता था एक दिन मैं पत्रों के माध्यम से लोगों को अपने मरने की सूचना दी लोग इस बात को सुनकर बहुत ही अत्यधिक दुखी हुए परंतु मैं कहीं भी रहता था तो मेरे मन में एक बेचैनी से उड़ते रहते थे और मैं दिन-रात बेचैन रहता था
मैं दिन भर दिन और रात जागते हुए गुजरता था ऐसा लगता था कि हमारे रातों की नींद किसी ने छीन ली हो और मुझे रात को नींद नहीं पड़ता था मैं कई हफ्तों तक सोया नहीं था मेरी आंख लाल बहती थी जैसे मैं नशे में रहता था लोग मुझे देखते थे तो ऐसा उनको लगता था कि मैं नशे में रहता था लेकिन एक बार मै एक लाइब्रेरी में गया और उस लाइब्रेरी में जाकर एक पुस्तक के सामने मेरी निगाहे पड़ी है उसमें बहुत से अच्छी बातें लिखी थी और उनकी कभी ऐसा थी मैं उस पुस्तक को एक पैराग्राफ तक पढ़ा और और मैं अपने मन में सोचता रहा सोचते सोचते मुझे उस रोचक कहानी बहुत अत्यधिक अच्छी लगी और मैं उस किताब को पूरा पढ़ा उसमें मुझको बहुत ही अच्छी अच्छी जानकारी पढ़ने को मिला मैं उस कभी ऐसा वाल से मिलने कि मेरी मन में जिज्ञासा हुआ मैं गया
आयशा के घर फील्ड में हरी घास के ऊपर इधर-उधर घूमता रहा जब आयशा बानो आई तो मैं उनके कमरे में अपने एक दोस्त के साथ प्रवेश किया उसके बाद में प्रवेश कमरे में गया जहां आयशा बानो बैठी हुई थी और मैं उनसे नजर मिला कर बात नहीं कर पा रहा था आयशा ने मुझे पूछा कि आप आप तो एक शायर हैं लेकिन आप कि तू मृत्यु हो चुकी है क्या आप उनके भाई हैं तो मैंने कहा मैं उनका भाई नहीं मैं खुद मुंशी प्रेमचंद हूं तो उन्होंने मुझसे नजरें झुका तेरी बात किया और और मैं उनके पास से घर चला आया उसके बाद मैं कमरे में होटल में खाना खाया खाना खाने के बाद में उसी होटल में कमरा लिया और उस कमरे में रहने लगा मैं दिन-ब-दिन ऐसा के ख्यालों में खोता गया और मुझे तब पता चला कि प्रेम कौन सी चीज होती है मैंने आयशा से प्रेम किया लेकिन ऐसा 1 दिन भी मुझे मिलने के लिए वहां नहीं आई और ऐसा लगता था कि मेरी रातों की नींद पहले तो छीन गई थी अब मैं रात रात भर अच्छी नींद से सोता था
आयशा बानो से मेरी दिल्लगी हो गई थी और मैं उससे मन ही मन में प्यार करने लगा उसके बाद मैंने ऐसा से शादी के लिए शादी करने के बाद मैं बहुत ही इच्छुक तरह से रहने लगा उसके साथ मेरी मैं दिन-ब-दिन बदलता गया और मैं मुझे पता चला कि यही अमृत की कहानी है मुंशी प्रेमचंद बहुत ही दरियाई दिल के थे और मैं हमेशा शायरी उर्दू लफ्जों में लिखते रहे एक बार मुंशी प्रेमचंद की तबीयत खराब हो गई तो वह एक डॉक्टर से सलाह लेने गए डॉक्टर ने उन्हें सलाह दिया कि आप अच्छी जगह पर ठंडे मौसम में आप जा कर घूम रही है जिससे आपके मन को शांति मिले मुंशी प्रेमचंद ने बहुत सारे जगहों पर घूमे परंतु उनका दिल नहीं लग रहा था
उनकी आंखों से नींद खुल गई थी तब इसीलिए उन्होंने बानो से मोहब्बत की तब जाकर उनके दिल को सुकून मिला और वह आयशा बानो से शादी करने के पश्चात तुम्हें उनकी आंखों की नींद और दिन की रात जैसे किसी ने छीन लिया हो उसी प्रकार लौटा दिया हो आप उनको अच्छी नींद और अच्छी तबीयत थी तो मेरी बताए ही जानकारी आप लोग कैसे लगी इस पोस्ट में आप अच्छी जानकारी पाएंगे मैं आशा करता हूं मैं आप लोगों को अच्छी से अच्छी जानकारी इस पोस्ट में बताने की प्रयास करता हूं

प्रेमचंद की कहानी कफन Story of Premchand Shroud
मुंशी प्रेमचंद की सारी कहानियों में से एक कहानी कफन भी है जो एक बेबस औरत के ऊपर लिखी गई है जो बेचारी मरते वक्त उसको कफन भी नसीब नहीं हुआ ISI ke bare mein is kahani हम आप लोगों को बताने वाले हैं एक गांव में माधव नाम का एक व्यक्ति रहता था और उसका पुत्र यीशु भी रहता था माधव की पत्नी को मरे कई साल बीत गए थे परंतु यीशु की पत्नी भी बीमार रहा करती थी यह दोनों व्यतीत ने आलसी थे कि यह काम करना नहीं जाते थे अगर इनके घर में एक मुट्ठी भी दाना रहता तो उसको बनाकर खा लेते थे परंतु दूसरे के यहां काम करना नहीं जाते थे यीशु अगर काम करने जाता भी था तो उसको लापरवाही की वजह से लोग नहीं ले जाते थे वह बहुत ही लापरवाह था aur Agar Madhav ko कोई अगर काम पर ले जाता भी था
तो वह 5 मिनट काम करता तो 10 मिनट तक चिलम पीता रहता था यह दोनों बहुत ही लापरवाह थे यह दोनों बिगर काम किए हुए खाना चाहते थे 1 दिन की बात है जाड़े की रात था गांव में सन्नाटा था और यह दोनों किसी के खेत से चुरा के आलू लाए थे और उसे आग में डालकर भूख के मारे पेट पालते थे और उधर गैसों की पत्नी दर्द से घर में कराती थी गैसों माधव को कहता कि जाकर तुम मेरी पत्नी को को देखो कि उसका तबीयत ज्यादा तो खराब नहीं हुआ है तो माधव कहता कि जीते जी मैं उसका मुंह नहीं देखा हूं और वह इस हाल में पड़ी है कि वह अपनी सही ढंग से मुंह भी नहीं छुपा सकती पता नहीं किस हालत में पड़ी हो मैं उसके ससुर हूं इसके लिए मुझ को उसके पास जाना नहीं जाना चाहिए तुम ही जाकर उसको देखो कि उसकी हालत कैसी है तो घीसू ने कहा मुझे डर लगता है मैं नहीं जाऊंगा दोनों आगे के अलावा में आलू को डालकर भून कर खाते रहे खाने के बाद दोनों आग के अलाव के सामने चादर बिछा कर सो गए
जब सुबह हुई तो उन्होंने देखा कि उसकी पत्नी आंखें चढ़ी थी और शरीर ठंड था और माटी धूल से सनी हुई शरीर पड़ी हुई है जैसे मर गई हो अर्थात वह मर चुकी थी तब दोनों ने एक मारते हुए रोने लगी रोने की आवाज सुनकर गांव वाले दौड़ कर उनके पास आया और बोले क्या हुआ तब माधव ने कहा कि मेरी पत्नी का देहांत हो गया है गांव के सारे लोग आए और आने के बाद उसकी मैयत पर दो-चार आंसू गिराते गए अब माधव के पास अपनी बहू के अंतिम संस्कार के लिए पैसे नहीं थे तो उसने गांव के मुखिया के पास गया मुखिया के पास जाकर उसने मुखिया से सारी बात बताई मुखिया ने कहा अबे तुम्हें तो काम करना नहीं है और तुम लग रहा है
इस गांव में रहते नहीं हो तुम तो 14 हुई कि चांद की तरह हो गए साले तुम लोग दिखाई नहीं देते हो मुखिया उसे देख कर दे हुए कहा और मुखिया ने अलग मुंह करके उसको दो पैसे दिए और गांव के लोग कोई एक पैसा कोई दो पैसा ऐसा ऐसा करके लोगों ने उन दोनों को ₹5 दिए और उन दोनों को कहा कि जाओ तुम लोग बाजार से कफन खरीद कर लेकर आओ वह दोनों बाजार की तरफ कफन खरीदने के लिए चल दिए और इधर गांव वाले बाल काटने के लिए चल दिए दोनों बाजार में इधर-उधर टहलते रहे कहीं रेशम की कफन टंगा हुआ था कहीं भी अच्छे-अच्छे कफन टंगे थे लेकिन यह दोनों एक दुकान से दूसरी दुकान पर जाकर लौट आते थे तब इन्होंने एक बरामदे में जाकर बैठा और कहा भाई थोड़ा पूरी दे दो और इन दोनों ने पूरी खाया पूरी खाने के बाद यह लोग सोचते रहे
कि आखिर वह तो मर गई लेकिन कफन की क्या जरूरत है आखिरकार कफन आग में जल ही जाएगा तो इसके लिए कफन की जरूरत क्या थी यह दोनों बरामदे में बैठकर पूरी खाते रहे और सोचते रहे माधव भी आसमान की तरफ देखता रहा ऐसा देखता रहा कि मानो ईश्वर के बाद ध्यान कर रहा है तब उसने भी कहा कि बात तो ठीक है वह तो मर गई लेकिन अगर कफन ले जाएंगे तो आग में जलकर कफन खत्म हो जाएगा इससे क्या फायदा है कि कफन ले जाए शाम बहुत हो गई थी और यह लोग बरामदे से उठकर एक शराब की दुकान पर गए शराब की दुकान पर यह लोग एक शराब की बोतल खरीदें और कुछ बुढ़या खरीदी
इसके बाद यह दोनों पूरे खाते और शराब पीते गए शौर्य सोचते रहे कि जीवन में कभी ऐसा भोजन नहीं खाया था जीते जी पत्नी के तो ऐसा खाना नहीं खाया मरने के बाद ऐसा अच्छा खाना स्वादिष्ट मिला यह दोनों लोग आपस में बात कर रहे थे जब माधव और उसका पेट भर गया तो इनके सामने एक गरीब खड़ा था तो उन्होंने पूरी के पत्तल को उठाकर उस गरीब को दिया और कहा कि दुआ करना कि मेरे पत्नी को स्वर्ग प्राप्ति हो और यह दोनों लोग भी दुआ करते थे कि इसको तो केवल बैकुंठ ही होगा क्योंकि जीते जी तो हम लोगों के लिए अच्छे भोज नहीं मिले थे इसके मरने के बाद हम लोगों को अच्छे भोज मिले तो इसलिए इसको बैकुंठ ही प्राप्त होगा ऐसा यह दोनों कहते रहे और कहते कहते शाम हो गई यार यह दो लोग नहीं गए और उधर पत्नी की मय्यत पड़ी की पड़ी रह गई तो
दोस्तों इस कहानी से हमें यह अभिप्राय मिलता है कि अच्छी सोच के वाले व्यक्ति हमेशा अच्छे होते हैं इसलिए हमें अपने जीवन में कभी भी लापरवाही से किसी का काम नहीं करना चाहिए यह लोग लापरवाही से काम करते थे तो इसीलिए गांव के लोग इस से काम नहीं करवाते थे और यह भूख और प्यास के लिए तड़पते रहे और यह दो लोग दाने-दाने के लिए मजबूर हो रहे थे पत्नी के मरने के बाद इन दोनों को अच्छे भोज्य पदार्थ खाने को मिला
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मुंशी प्रेमचंद की कहानियों के नाम Names of stories of Munshi Premchand
मुंशी प्रेमचंद की अनेक कहानियां उनके द्वारा रचित की गई है मैं आज आप लोगों को मुंशी प्रेमचंद्र की कुछ ऐसी कहानियों के बारे में सांवरे के माध्यम से आप लोगों को हम बताने वाले हैं जो निम्नलिखित हैं
कहानियों के नाम | कवि के नाम |
नमक का दरोगा | मुंशी प्रेमचंद्र |
कफन | मुंशी प्रेमचंद्र |
अमृत राय | मुंशी प्रेमचंद्र |
बड़े घर की बेटी | मुंशी प्रेमचंद्र |
काकी | मुंशी प्रेमचंद्र |
दुर्गा का मंदिर | मुंशी प्रेमचंद्र |
मुंशी प्रेमचंद्र | |
आत्मा का नाम | मुंशी प्रेमचंद्र |
बैंक का दिलवा | मुंशी प्रेमचंद्र |
शांति | मुंशी प्रेमचंद्र |
समर यात्रा | मुंशी प्रेमचंद्र |
मई को | मुंशी प्रेमचंद्र |
मुंशी प्रेमचंद्र | |
पत्नी से पति | मुंशी प्रेमचंद्र |
शराब की दुकान | मुंशी प्रेमचंद्र |
जेल | मुंशी प्रेमचंद्र |
कर्मों का फल | मुंशी प्रेमचंद्र |
अनाथ लड़की | मुंशी प्रेमचंद्र |
बांका जिमीदार | मुंशी प्रेमचंद्र |
मुंशी प्रेमचंद्र | |
सिर्फ एक आवाज | मुंशी प्रेमचंद्र |
अंधेरा | मुंशी प्रेमचंद्र |
मनावर | मुंशी प्रेमचंद्र |
त्रिया चरित्र | मुंशी प्रेमचंद्र |
मिलाप | मुंशी प्रेमचंद्र |
राज हट | मुंशी प्रेमचंद्र |
नसीहत ओं का दफ्तर | मुंशी प्रेमचंद्र |
मुंशी प्रेमचंद्र | |
आखरी मंजिल | मुंशी प्रेमचंद्र |
स्वांग | मुंशी प्रेमचंद्र |
इस्तीफा | मुंशी प्रेमचंद्र |
दुख दशा | मुंशी प्रेमचंद्र |
विक्रमादित्य का दंगा | मुंशी प्रेमचंद्र |
त्रिशूल | मुंशी प्रेमचंद्र |
कप्तान साहब | मुंशी प्रेमचंद्र |
प्रताप चंद्र कमला चरण | मुंशी प्रेमचंद्र |
बंद दरवाजा | मुंशी प्रेमचंद्र |
प्रायश्चित | मुंशी प्रेमचंद्र |
कमला के नाम विरजन के पत्र | मुंशी प्रेमचंद्र |
शोक का पुरस्कार | मुंशी प्रेमचंद्र |
बोहनी | मुंशी प्रेमचंद्र |
मंत्र | मुंशी प्रेमचंद्र |
स्नेहक पर कर्तव्य का विजय | मुंशी प्रेमचंद्र |
शेर मखमूर | मुंशी प्रेमचंद्र |
भ्रम | मुंशी प्रेमचंद्र |
ममता | मुंशी प्रेमचंद्र |
करतब और प्रेम का संघर्ष | मुंशी प्रेमचंद्र |
दुनिया का सबसे अनमोल रतन | मुंशी प्रेमचंद्र |
दिल की रानी | मुंशी प्रेमचंद्र |
मुंशी प्रेमचंद की कहानी बूढ़ी काकी Story of Munshi Premchand Old Aunty
मुंशी प्रेमचंद्र की अनेक कहानियां उनके द्वारा रचित हुई कहानियों के में से एक कहानी बूढ़ी काकी की भी है जो मैं आज आप लोगों को बताने वाला हूं बूढ़ी काकी मैं अपने भतीजे बुद्धि राम को सारी संपत्ति दे दी थी बूढ़ी काकी विधवा थी और उनका एकमात्र सहारा ही बुधराम था बुधराम माल का बहुत प्रभाव से लड़का था लेकिन उसकी पत्नी रूपा बहुत ही साथी के साथ दुर्व्यवहार करती थी काकी के साथ दुर्व्यवहार करती थी उनको चैन से खाना नहीं खाने देते भी पानी नहीं देती थी उनको हमेशा परेशान करती थी इसलिए बूढ़ी काकी बहुत परेशान रहा करती थी बूढ़ी काकी की एकमात्र लाडली थी जो बुधराम की लड़की थी वह अपने हिस्से के खाना को बचाकर बूढ़ी काकी को खिलाया करती थी वही एकमात्र बूढ़ी काकी की देखभाल करती थी
बुधराम की पत्नी काकी को अच्छे से रहन-सहन खाना नहीं देती थी बट लिटिल काकी की भी सोचती थी कि इस अवस्था में हमें अपनी इंद्रियों को वश में कर लेना चाहिए इसलिए बूढ़ी काक अपनी इंद्रियों को वश में कर लिया था मैं जब भी कहा था ना मांगती थी तो बुधराम की पत्नी उससे कहती थी कि क्या तुम टर्टल लगाए रहती हो 1 दिन का बात है बुधराम की बेटी का तिलक आया हुआ था तिलक में बहुत से पकवान बन रहे थे और उन सब का महत्व ही काफी की कोठी में बहुत अच्छा बूढ़ी काकी मन ही मन सोचती थी कि आज तो बहुत मन ही धावक पूरी कचौड़ी बनी हुई है ना आज खाऊंगी बहुत आरोपों के बाद चीज बनी है
वही काफी मन ही मन यह सोचती थी लेकिन बुधराम की पत्नी रूपा इधर परेशान रहते थे कभी द्वार पर जाती थी कभी रसोईघर में जाती थी वह सोचती थी कि कहीं मेहमान भूखे ना रह जाए तो पड़ोसी मजा उठा ले और पड़ोसी उनका हंसी वाली इसलिए विद राम की पत्नी रूपा घर से बाहर बाहर से अंदर जाया करती थी इधर भूमिका थी अपनी कोठरी सूट पर सड़क के सड़क पर रसोई घर में कढ़ाई के पास जा पहुंची अबू धाबी कड़ाही के पास बैठी है और सभी पकवानों का स्वाद ले रही है आ रही मन ही मन सोचती है कि आज बढ़िया खाना खाने को मिलेगा इसमें में बुधराम की पत्नी आ गई और गुड़िया को झपट पड़ी वह बोले कि घर के मेहमान ना खाया पहले तू ही खाले ऐसा कहते हुए बूढ़ी काकी को दूर करते हुए कहा और कहां अरे क्या मेहमान ना था पहले तू ही खाले यह बात सुनकर रसोईघर से उठकर अपने कमरे में चली गई इधर मेहमान को जरूर खिला पिला दे तब फिर काकी का मन नहीं
माना और फिर वह उसे मेहमान खाने में चली गई बस बुधराम उन पर शुरू हो गया और काकी को भरी महफिल में बेइज्जत करके उनको घसीटते हुए उनके कमरे के अंदर ले गए घर के कमरे वाले थे और वह इतने बेइज्जत होने के बाद भी काकी के मन का शादी हो गया मैं खाने के लिए उनका मन लालसा बना ही रहा सारे मेहमान खातिर अपने अपने घर चले गए थे रात को 11:00 बज गई तो उनकी लाडली लड़की अपने खाने का हिस्सा एक टिफिन में छुपा कर रखी थी और जब रात के 11:00 बजे तो वह जाएगी और वह अपने मां को देखी कि कहीं मजाक तो नहीं रही है सिर्फ आज के अंगारे ही चमक रहे थे वह धीरे से काकी के कमरे के अंदर गई
और काकी को जगाया जगाने के बाद वह काकी को पूरी सब्जी तरकारी आने के लिए देने लगी तो काफी ने पूछा कि यह तुम्हारी मां ने दिया तो उनकी लाडली ने कहा नहीं मुझे माने नहीं दिया है मैं अपने हिस्से का खाना बचा कर आपके लिए लाई हूं काकी खाई सारा खाना खा गई तब लाडली ने पूछा कि काकी आपका पेट भर गया है तो काफी में वोट को चाटते हुए कहा कि नहीं फिर वह आंगन में ले गए और जो मेहमान खाकर चले गए थे उनके बचे हुए खाने जो पत्तल में पड़े हुए थे काफी को वही सब वह खिलाने लगी इतने में उसकी मां आ गई उसकी मां ने या सब कुछ देखते हुए उसके मन में बहुत ही पछतावा हुआ और वह बोली मैं
जिसके धन पर हजारों रुपए खर्च कर सकता हूं मैं उन्हीं का पेट नहीं भर सकती जिनके बार दौलत में इस तरह का अच्छे खान-पान करती हूं वही दूसरों के जूते चप्पल के खाए इतना सोचने के बाद वह काकी को अंदर ले गई अंदर ले जाने के बाद वह काकी को कमरे में बिठाया और वह रसोई घर से एक थाली में सारे पकवान लेकर काकी के पास आ गई अब काफी पेट भर गया तो उसने कहा कि पेट भर आपका यह आज के बाद में आपको खाने पीने के लिए नहीं कर पाएंगे और खाना खाइए और आप आशीर्वाद दीजिए इस प्रकार काशी पेट भर खाना खाया और उसको सच्चे मन से आशीर्वाद दिया तो इस कहानी से हमें क्या जानकारी मिलती है
इस कहानी से हमें यह जानकारी मिलती है कि कभी भी बूढ़े मां बाप अगर आपको आज ही जीवन में अपनी सारी जायदाद दे दे तो उनको खाने पीने के लिए नहीं तरसने देना चाहिए कृपया उन्हें आप लोग जो खाए उनको खाने को दो इससे वह उसी में से खाएंगे और आपको दुआ देंगे जिससे आपके घर में सुख और शांति बना रहेगा यदि आप अपने बूढ़े मां बाप को सताते हैं तो आपके बच्चे भैया सब देखते हैं भगवान ना करे कि अगर आप अपने मां-बाप के साथ कोई ऐसा दुष्कर्म करते हैं तो आगे चलकर आपके बच्चे भी आपके साथ दुष्कर्म करते हैं तो यह कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हम अपने बूढ़े मां बाप को अच्छे से अच्छे खाना देना चाहिए और अच्छे ढंग से उनका सेवा करना चाहिए जब हमारे मां-बाप को छोड़ देंगे तभी भी खुशी है
मुंशी प्रेमचंद की कहानी पूस की रात Story of Munshi Premchand Poos Ki Raat
मुंशी प्रेमचंद की सारी कहानियों में से एक कहानी पूस की रात की है हल्कू आकर मुन्नी से कहा कि लाओ पैसा मैं जो तुम रखी हो उसको मैं दे दूं भला जान तो छोड़ जाए मुन्नी ने कहा कि पूस की रात है कंबल के लिए पैसे इकट्ठे किए हो ना यह तुम दे दोगे तो जाड़ा कैसे कटेगा तो हल्कू ने कहा कि लव में पैसा दे देता हूं कम से कम जान तो बचेगा बार-बार मांग ना उसको तो पढ़ना ही पड़ेगा मुन्नी के लाख समझाने पर हल्कू ने नाम आना और रुपया ले जा कर दे दिया रुपए देते हैं उसके पास अब पैसे नहीं थी कि जाड़े की रात के लिए वह कंबल ले आया और आराम से सोए 1 दिन की बात है
हल्कू खेत में र खाने के लिए गया खेत की देखभाल के लिए वह रात को खेत में रख उसके साथ उसका जबड़ा कुत्ता भी साथ में गया पूस की रात है मानो आसमान से बर्फ बस बरस रहे हैं अब हल्कू की दांत बज रहे हैं और वह अपने पैरों को कलेजे में समेटे हुए लेटा हुआ है और उसके नीचे उसका जबरा कुत्ता भी लेटा हुआ है हल्कू ने कुत्ते से कहा कि मानव खेत में लड्डू बांट रहा है तुम भी साथ आए हो अब मजा लो खेत का अलगोजा डे के मारे बहुत परेशान था और उसके नसों में लग रहा था कि बर्फ का पानी बह रहा है इतना ठंड पड़ रहा था हल्कू के पास उड़ने के लिए कोई कंबल नहीं था तब अलक ने सोचा कि बगीचे में जाकर देखें कि बगीचे के पत्ते को इकट्ठा करके उसमें आग लगा दे तो कुछ ज्यादा कम लगेगा लेकिन अगर रात को कोई पत्ते बटोर ते हुए देखेगा की तो वह मानेगा कि भूत है अल खोया अपने मन में सोचता रहा लेकिन उसने बगीचे की तरफ गया और एक खेत में से अरहर की चार पांच पेड़ को उखाड़ कर उससे झाड़ू बना है झाड़ू बनाने के बाद वह बगीचे के सारे पत्ते को इकट्ठा करके उसमें आग लगा दिया आग लगाते ही हल्कू और कुत्ते
ने आराम से तापा अब उनके उनके शरीर से ठंड निकल गई थी और मैं दोनों मजाक करने लगे कि चलो आप को इधर से उधर कूदते हैं हल्कू ने आग को खुदा उसके पैरों को आग की लपटे थोड़ी सी लगी लेकिन कुछ साहनी नहीं था कुत्ता इधर-उधर घूम रहा था लेकिन वह नहीं
को दाग को अब हल्कू नहीं आपके पास बैठा हुआ है और उसका जबरा कुत्ता दौड़कर खेत के पास गया और भूख ने लगा हल्कू को यह पता चला कि खेत में लग रहा है नील गाय आ गई है लेकिन हल्कू ठंड के मारे खेत को देखने नहीं गया और कुत्ता भागता रहा अब हल्कू को ऐसा लग रहा था कि उसके खेत में चर चर चर न की आवाज आ रही है लेकिन अलकू आग के पास से उठा और थोड़ी दूर आकर फिर वहां आग की लपटे की ओर चला गया और वह कंबल बिछाकर लेट गया कुत्ता बहुत चिल्लाया लेकिन उसने नहीं जाएगा अबे लोगों को बहुत गहरी नींद आ गई थी सुबह हो गया उसकी पत्नी मुन्नी ने आकर उसे जगाया और कहा कि सारा खेत चौपट हो गया और तुम यहां सोए हुए हो ऐसा लग रहा है कि खेत में सारे फसल को नील गायों नेचर लिया है और तुम्हें खर्राटे मार रहे हो हल्कू ने मन ही मन सोचता रहा कि 4 गई होगी खेती अब तो आ कर रखा ना नहीं पड़ेगा आराम से घर पर तो रहूंगा और उसकी पत्नी रो-रो कर उसका बुरा हाल हो रहा था और उनको मजे मार रहा था हल्कू ने प्रसन्न होकर कहा कि अब जाड़े की रात खेत में तो नहीं बिताना पड़ेगा मैं आराम से घर पर ही रहूंगा कम से कम ठंड तो कम लगेगा और मैं आराम से चैन की नींद घर में सोऊंगा
मुंशी प्रेमचंद की कहानियों ईदगाह Stories of Munshi Premchand Idgah
रमजान का आज 30 रोजे हो गए हैं आज ईद है आज सूरज भी अच्छा निकला हुआ है और मौसम भी बहुत सुहाना है बच्चे इधर-उधर घूम रहे हैं हर एक दूसरे से मिलते हैं किसी के कुरते में बटन नहीं है सवा बटन लगवाने के लिए दौड़ रहा है हर किसी के पजामे में नारे नहीं है इसके लिए वह दौड़ रहे हैं बच्चों में एक खुशी से छाई हुई है इधर आ हामिद की दादी
आमीना परेशान है क्योंकि हमीद के पिता की मृत्यु हो गई थी और उसकी माता को न जाने कौन सी बीमारी हो गई थी उसका शरीर पूरा पीला हो गया था हर एक दिन वह भी अल्लाह को प्यारी हो गई थी अमीना बहुत परेशान थी क्योंकि उसके पास पैसे नहीं और बच्चे ईदगाह जाने की जिद कर रहे हैं इसलिए हमें ना परेशान है कि उसे कैसे पैसे देकर ईदगाह भेजे यही सब सोच रही है तभी हामिद उसके पास आया और कहने लगा उसने 1 लोग का कपड़ा किया था उसी ने पांच पैसे रखे हुए थे उसमें से उसने आमिर को 3:00 पैसे दिए और कहा कि जावा हमें ना अमीना परेशान थे कि 3 कोस का दूर रह गया है नंगे पांव कैसे जाएगा जूते भी नहीं है पैर में छाले पड़ सकते हैं लेकिन बच्चों
में यह कहां थे वह अब सब लोग ईदगाह जाने के लिए तैयार हो गए थे आमिर भी जाने के लिए तैयार हो गया था अब सब बच्चे जा रहे हैं दौड़े-दौड़े वह बच्चे दौड़ कर आगे छांव में बैठ जाते जब फिर वह लोग साथ में आ जाते तो मैं बच्चे पेशाब जाने लगते शहर करीब आने लगा था बड़े-बड़े इमारतें और बगीचे लगे हुए थे बगीचे में कोई डंडे मारता तो उधर से चलकर धर गाली देकर निकलता और बच्चे उसकी हंसी उड़ा लेते थे आगे चले तो स्कूल पढ़ा तो उसमें हम इतने पूछा इसमें कि कितने बचे हुए इसमें बहुत से बच्चे पढ़ रहे हैं बहुत से बड़े बड़े बच्चे पढ़ रहे हैं उनके मुंह से भी हैं यह लोग इतना पढ़ लिख कर कर क्या करेंगे जहां मीडिया कह रहा है और आगे बढ़े तो कल अब मिला अब तालाब में हमने पूछा इसमें क्या होता है तो उसमें बताया कि इसमें जादू दिखाया जाता है ऐसा ऐसा करते हैं शहर निकल गया और ईदगाह पहुंच गया अब सारे लोग ईदगाह में पहुंचे सारे लोग ईद की नमाज पढ़ने के लिए लंबी लाइन में लगे आलो अब इस्लाम में कोई धर्म ऊंच-नीच नहीं मानते इसलिए जो जहां जगह पर है
उसी जगह खड़े होकर नमाज पढ़ने के लिए खड़े हो गए अब एक सभी लोग एक साथ झुकते और उठते फिर सजदा करते जिस प्रकार लाइट चली जाती है उसी प्रकार वह लोग कि आप हराया करते रहते हैं ईद की नमाज खत्म हो गए लोग एक दूसरे के गले मिलते हैं गले मिलने के बाद अब सब लोग सारे सामान खरीद रहे हैं हाशिम ने एक मिस्त्री तो उसने कहा कि मेरा मिस्त्री घर बनाएगा और सब ने फिर एक वकील खरीदा उतना का मेरा वकील वकालत करेगा और
फिर और हमें चुपचाप खड़ा है क्योंकि उसके पास पैसे नहीं उसके पास केवल तीन ही पैसे थे अब हाथ से मिलने वाले खरीदा और वाह अमित को देने के लिए हाथ आगे क्या हामिद ने हाथ आगे बढ़ाया तो उसने अपने मुंह में डाल लिया हामिद के पास पैसे नहीं है लेकिन वह कुछ नहीं कह रहा है तो सब लोग कह रहे हैं कि यह पैसे नहीं खर्चा कर रहा है कि अभी हमारे लोग का पैसा खत्म हो जाएगा तो यह में ललित चलाने के लिए लिए है अब सारे लोग सब कुछ खरीद चुके अब वहां मेरे एक लोहे की दुकान पर गया और वहां समटा देखा तो उसने सोचा कि दादी मां की रोटी बनाते वक्त हाथ जल जाते हैं
तो इसलिए मैं यह चिंता लूंगा जिससे दादी के हाथ नहीं जलेंगे तो उसने दुकानदार से पूछा उसने कहा 6 पैसे के हैं लेकिन ठीक ठीक 5 पैसे के लगेंग तो हामिद ने कहा कि तीन पैसे लोगे यह कह कर वह दुकान से आकर बढ़ गया तब दुकानदार ने बुला कर कहा कि आज आ जाओ और हम इतने दिन पैसे का चिमटा खरीद लिया चिमटा खरीदने के बाद वहां सबके सामने गया तो उसने सब ने उनकी हंसी उड़ा ली तो हमें ने कहा कि मेरी चिमटे से कोई बराबरी नहीं कर सकता तुम लोग जिस प्रकार मैं अपने चिमटे को नीचे गिरा हूं उस प्रकार तुम अपने खिलाने को गिरा अभी पता चल जाएगा इतने में कहते-कहते वह चला गया बहुत नोकझोंक हुई सब में लेकिन हामिद का चिमटा बड़ा ही निकला अब सारे लोग गांव में आ गए थे अब हामिद की दादी भी देखा तो अमित के हाथों में चिंता तो उसने कहा कि यह क्या है तो उसने कहा कि दादी मैंने आपके लिए चिंता लाया हूं दादी निका कितने का है तो उसने कहा 3 पैसे के आदमी का कुछ खाया पिया नहीं तो उसने कहा कि आपके हाथ जल जाते थे इसलिए मैं कुछ कहा नहीं इसलिए मैं चिंता ले आऊं दादा ने उसे गले से लगाकर और दुआ देने लगी
मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘मंत्र Story of Munshi Premchand ‘Mantra’
संध्या का समय है डॉक्टर चड्ढा के खेलने का समय है चलो देखते हैं कि उधर से एक टोली चार का हालिया रहे थे और उसके पीछे एक बूढ़ा भी आ रहा था टकटक करते हुए डॉ चड्ढा ने खिड़की से बोला कौन है उन्होंने कहा हमारा आज मेरे बेटे का तबीयत बहुत खराब है आप देख लीजिए डॉक्टर ने कहा कि या हमारे खेलने का समय है तुम कल आना बोरा ने कहा कि डॉक्टर साहब देख लो मेरे साथ वाला 2 में से यही है का औलाद बचा है कृपया आप देख लीजिए नहीं तो यह भी जान छोड़ देगा जाकर चड्ढा ने कहा कि भाई हम नहीं देख सकते हैं तुम कल आना यह मेरे खेलने का समय है बूढ़े के बहुत लाख कर कहने डॉक्टर चड्ढा ने नहीं माना डॉक्टर चड्ढा ने कहा कि तुम कल आना यह मेरे खेलने का समय है बूढ़ा दुआ ही लगाता रहा बार-बार कहता रहा लेकिन डॉक्टर चड्ढा कहां मानने वाले थे
दुनिया में ऐसे भी इंसान होते हैं कि कोई मर रहा है तो मरने दो वह अपने राठी लगाते रहते हैं वह किसी को नहीं मानते हम बूढ़े ने डॉक्टर चड्ढा से फिर कहा कि देख लीजिए डॉक्टर चड्ढा ने आकर कलाई पकड़ी और कहा कि कल सुबह आना अब बूढ़े ने कहा कि महाराज देख लीजिए लेकिन डॉक्टर चड्ढा बाहर आए और आकर अपनी गाड़ी की हो रहा है अब बूढ़ा आदमी फिर कहा कि डॉक्टर साहब देख लीजिए डॉक्टर चड्ढा ने कहा कि कल आना लेकिन बूढ़ा फिर कहा कि डॉक्टर साहब देख लीजिए लेकिन डॉक्टर चड्ढा का हाउस के सुनने वाले थे मैं अपनी मोटर की तरफ देखते गए डॉक्टर चड्ढा अपनी गाड़ी पर बैठे और खेलने के लिए
चले गए बूढ़ा आदमी डॉक्टर चड्ढा की गाड़ी को टकटकी लगाते हुए देख मूर्ति की भाति देखता रहा जिस प्रकार मूर्ति खड़ी रहती है उसी प्रकार बूढ़ा आदमी डॉ चड्ढा की गाड़ी को देखता ही रहा जब तक डॉक्टर चड्ढा की गाड़ी दिखाई दिया तब तक बूढ़ा आदमी उनकी गाड़ी को टकटकी लगाते हुए देख रहा था अभी भी मानो उसको विश्वास था कि डॉ चड्ढा लौट कर आ जाएंगे लेकिन नहीं लौटा फिर बूढ़े आदमी ने कहारों से कहा
कि डोली लेकर चलो और वह डोली को उठा कर घर ले कर आया और उसके पुत्र सातवें पुत्र ने भी उसके गोदी में दम तोड़ दिया था मानो अब बूढ़े बूढ़े के लिए दुनिया में जीने का कोई मकसद नहीं था बूढ़े के ऐसा लग रहा था कि बुढ़ापे की लाठी ही उसके हाथों से किसी ने छीन लिया और उसके बेटे का निधन हो गया समय बीतता गया बहुत समय बीतने के बाद डॉक्टर चड्ढा के यहां भी दो संतान हुई थी एक लड़का और एक लड़की डॉक्टर चड्ढा बहुत प्रेम और खुश रहे थे डॉ चड्ढा की अभी भी उम्र वही थी लग रहा था कि डॉक्टर चड्ढा कभी बूढ़े भी नहीं होंगे और उनकी पत्नी उनके पास दो ही औलाद थे इसलिए उनको भी ऐसा लग रहा था कि उनको भी बुढ़ापा नहीं आया था ऐसे ऐसे में करके उनके लड़की को शादी हो गई थी और उनका लड़का कैलाश कि आज सालगिरह था सालगिरह के समय पर चड्ढा ने एक पार्टी दी थी उस पार्टी में बहुत ही रंग बंद था और इधर आओ और कोई कहता कैलाश इधर आओ
कैलाश यही सब करता रहता इधर-उधर इनके पास आता जाता रहता था तब अचानक रानी हाय और उसने कहा कि कैलाश तुम सांपों को पाल रखे हो तुम मुझे सांपों का नाच दिखाओ हरे हरे घास हुए थे और उसमें उसने कैलाश उसकी बातें के नजरअंदाज करता रहा लेकिन रानी यह सब नहीं माने और उसको जबरदस्ती कहा कि कैलाश तुम आज शाम का नक्शा में दिखाते रहना कैलाश कहीं बाहर कालेजों में भी सांप का व्याख्यान किया था लेकिन कोई देखा नहीं था तो इसलिए मैं डालनी ने सांप का नाच देखने के लिए बहुत तो करते थे उसकी बस ना चलने
पर कैलाश ने सांपों को कमरे से पकड़ कर ले आया और सबके गर्दन को खूब कस कर पकड़ कर उसके मुंह फैलाने के लिए दबा रहा था जैसे ही वह मुंह फैलाया उसने सभी लोगों को दिखाने लगा कि देखिए इसके ने दांत है इसके बाद वह जैसे ही गर्दन को ढीला किया तो उसने चप्पू से कैलाश के उंगली पर काट लिया जहर तुरंत फैलने लगा कैलाश ने कहा कि जड़ी बूटियां कमरे में रखे उसको पेश कर हाथों में लगा दे लेकिन जाकर चल रहा कहां जड़ी-बूटी पर विश्वास करने वाले थे उन्होंने कहा कि लाइए में उंगली का नाश्ता ही काट देता हूं लेकिन कैलाश ने ऐसा करने को नहीं कहा कैलाश ने जड़ी बूटियों की तरफ इशारा किया कैलाश की प्रेमिका ने जड़ी बूटियों को पेशाब करने के बाद उसके उंगली पर लेप लगा दिया जहां सांप काट लिया था और कैलाश का दिन-ब-दिन हालत बिगड़ता ही जा रहा था डॉक्टर चड्ढा हम भी पछाड़ खा रहे थे और उसकी मां भी पहचान कराई थी अब सारा रंग में भंग मच गया था सारे लोग गम में डूब गए थे किसी ने कहा कि झाड़-फूंक करने वालों को बुलाओ किसी ने कहा कि हां भाई झाड़-फूंक वालों को ब्लॉक शायद कैलाश की जान बच जाए किसी ने कहा कि मेरे पहचान का है मैं उनको बुला कर ले आता हूं झाड़-फूंक करने के लिए डॉक्टर चड्ढा ने कहा
कि अगर यह हमें मिले का नाश्ता करने देता तो यह नौबत नहीं होती चांदनी की रात फैली हुई है चारों तरफ उजाला है और हर एक गांव में सारे मेहमान इकट्ठे यहां और सभी लोग कैलाश के चारों तरफ खड़े हुए हाय हाय कर रहे हैं किसी नगर में एक बूढ़ा बूढ़ी रहते थे आए एक मिट्टी के घर में रहते थे वह बूढ़ी और बोल ओखा पीता था बुलाओ का पीता था और बुढ़िया घुटने और मुंह को एक में दबोचे हुए आख्यान घर के सामने बैठी हुई है
और उन बूढ़ा और बूढ़ी को किसी ने ना कभी हंसते हुए ना कभी रोते हुए किसी ने देखा हुआ था बूढ़ी ने कहा कि एक बार एक किसी ने आया और तीन दरवाजे को खटखटा आते हुए कहा कि भगत सो गया क्या तो भगत नेट क्यों होना खोला और कहा बोला क्या उसने कहा कि कुछ सुना तुमने उसने कहा कि हमने कुछ नहीं सुना है बताओ क्या हो गया उसने कहा कि डॉ चड्ढा के लड़के को सांप ने डस लिया है तो जाकर तुम देख आते तो बुलाने मन ही मन सोचा और कहा कि भला मैं क्यों देखने जाऊं वही चढ़ा साहब है जो मैंने अपने पुत्र को ले गया था और मैं एक भी बार भी मुड़कर नहीं देखे थे क्या चढ़ा साहब भगवान थे जो देख लेते तो हमारे बेटा जी जाता उसको मरना ही मरता था लेकिन डॉक्टर चड्ढा साहब ने एक भी बार मेरे पुत्र को नहीं देखा था वह देख लेते तो क्या अमृत बरसे जाता लेकिन चड्डा साहब ने एक भी बार एक भीम बार नहीं
देखा था भला मैं क्यों देखने जाऊं चाहे कोई मरे चाहे कोई जीवित रहिय क्या करवा चला गया बूढ़ा उठता और बैठ साथ रहता था बुढ़िया ने कहा कि जाना हो तो जाओ क्यों उठते बैठते हो उसने कहा कि भला मैं क्यों जाऊंगा अब गुड़िया के सो जाने के बाद वह बूढ़ा फिर जगह और घर की केवल धीरे से खोलकर बाहर निकला तो गश्त पर आते हुए एक हवलदार को उसने देखा तो हवलदार ने कहा कि क्या चाचा क्या कर रहे हो उसने का कुछ नहीं देख रहा हूं कि अभी कितनी रात बाकी है तो उसने कहा कि अभी रात के 1:00 बजे हैं अभी मैं थाने से आया हूं मैं उधर से आ रहा था तो देखा कि डॉक्टर चड्ढा बाबू के महल में बहुत भीड़
लगी हुई है उनके बेटे को सांप ने काट लिया है जाकर तुम देख आते तो बूढ़े ने कहा कि भला मैं क्यों देखने जाऊं चाहे कोई मरे चाहे कोई जिंदा रह ऐसा कह कर वह पुलिस अपने घर की ओर चला गया अब बोल है क्या मन है मान रहा था और वह जिस प्रकार शराबी अपने पैरों को नहीं रोक पाता उसी प्रकार हुआ बुरा भी नहीं रोक पाता और वह बूढ़ा चड्ढा के वह घर महल पर जा पहुंचा अब सुबह के 4:00 बजे हुए थे वह साफ नहीं दिख रहा था बूढ़ा गया और कैलाश के हाथों पर जड़ी बूटी लगा दिया कैलाश जीवित हो गया और उसके साथ चलने लगी और बूढ़ा उठकर तुरंत उसी चला आया तो डॉक्टर चड्ढा ने देखा कि यह वही आदमी था लेकिन मैं उसे पहचान नहीं सका यह वही आदमी है जो एक बार अपने पुत्र को हमारे यहां लगा था और मैंने उसको एक भी बार मुड़ कर नहीं देखा था इसके पुत्र को
प्रेमचंद की कहानी short stories short stories of premchand
प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के निकट लमही गाँव में हुआ था उनकी माता का नाम आनन्दी देवी था तथा पिता मुंशी अजायबराय लमही में डाकमुंशी थे उनकी शिक्षा का आरंभ उर्दू, फारसी से हुआ और जीवनयापन का अध्यापन से पढ़ने का शौक उन्हें बचपन से ही लग गया 13 साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्मे होशरूबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ ‘शरसार’, मिरजा रुसबा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया1898 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हो ग नौकरी के साथ ही उन्होंने पढ़ाई जारी रखी
1910 में उन्होंने अंग्रेजी, दर्शन, फारसी और इतिहास लेकर इंटर पास किया और 1919 में बी.ए. पास करने के बाद शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में पिता का देहान्त हो जाने के कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा उनका पहला विवाह उन दिनों की परंपरा के अनुसार पंद्रह साल की उम्र में हुआ जो सफल नहीं रहा। वे आर्य समाज से प्रभावित रहे, जो उस समय का बहुत बड़ा धार्मिक और सामाजिक आंदोलन था उन्होंने विधवा-विवाह का समर्थन किया और 1906 में दूसरा विवाह अपनी प्रगतिशील परंपरा के अनुरूप बाल-विधवा शिवरानी देवी
से किया।उनकी तीन संताने हुईं- श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव 1910 में उनकी रचना सोजे-वतन (राष्ट्र का विलाप) के लिए हमीरपुर के जिला कलेक्टर ने तलब किया और उन पर जनता को भड़काने का आरोप लगाया सोजे-वतन की सभी प्रतियाँ जब्त कर नष्ट कर दी गईं। कलेक्टर ने नवाबराय को हिदायत दी कि अब वे कुछ भी नहीं लिखेंगे, यदि लिखा तो जेल भेज दिया जाएगा इस समय तक प्रेमचंद ,धनपत राय नाम से लिखते थे। उर्दू में प्रकाशित होने वाली ज़माना पत्रिका के सम्पादक और उनके अजीज दोस्त मुंशी दयानारायण निगम ने उन्हें प्रेमचंद नाम से लिखने की सलाह दी इसके बाद वे प्रेमचन्द के नाम से लिखने लगे उन्होंने आरंभिक लेखन ज़माना पत्रिका में ही किया
जीवन के अंतिम दिनों में वे गंभीर रुप से बीमार पड़े उनका उपन्यास मंगलसूत्र पूरा नहीं हो सका और लम्बी बीमारी के बाद 8 अक्टूबर 1936 को उनका निधन हो गया उनका अंतिम उपन्यास मंगल सूत्र उनके पुत्र अमृत ने पूरा किया प्रेमचंद का कुल दरिद्र कायस्थों का था, जिनके पास क़रीब छ: बीघे ज़मीन थी और जिनका परिवार बड़ा था प्रेमचंद के पितामह, मुंशी गुरुसहाय लाल, पटवारी थे उनके पिता, मुंशी अजायब लाल, डाकमुंशी थे और उनका वेतन लगभग पच्चीस रुपये मासिक थ उनकी
माँ, आनन्द देवी, सुन्दर सुशील और सुघड़ महिला थीं छ: महीने की बीमारी के बाद प्रेमचंद की माँ की मृत्यु हो ग तब वे आठवीं कक्षा में पढ़ रहे थ दो वर्ष के बाद उनके पिता ने फिर विवाह कर लिया और उनके जीवन में विमाता का अवतरण हुआ प्रेमचंद के इतिहास में विमाता के अनेक वर्णन हैं यह स्पष्ट है कि प्रेमचंद के जीवन में माँ के अभाव की पूर्ति विमाता द्वारा न हो सकी थी ग़रीबी से लड़ते हुए प्रेमचन्द ने अपनी पढ़ाई मैट्रिक
तक पहुँचाई जीवन के आरंभ में ही इनको गाँव से दूर वाराणसी पढ़ने के लिए नंगे पाँव जाना पड़ता था इसी बीच में इनके पिता का देहान्त हो गया प्रेमचन्द को पढ़ने का शौक़ था, आगे चलकर यह वकील बनना चाहते थे, मगर ग़रीबी ने इन्हें तोड़ दिया प्रेमचन्द ने स्कूल आने-जाने के झंझट से बचने के लिए एक वकील साहब के यहाँ ट्यूशन पकड़ लिया और उसी के घर में एक कमरा लेकर रहने लगे इनको ट्यूशन का पाँच रुपया मिलता था पाँच रुपये में से तीन रुपये घर वालों को और दो रुपये से प्रेमचन्द अपनी ज़िन्दगी की गाड़ी को आगे बढ़ाते रहे प्रेमचन्द महीना भर तंगी और अभाव का जीवन बिताते थे इन्हीं जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों में प्रेमचन्द ने मैट्रिक पास किया उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य, पर्सियन और इतिहास विषयों से स्नातक की उपाधि द्वितीय श्रेणी में प्राप्त की थी इंटरमीडिएट कक्षा में उन्होंने अंग्रेजी, दर्शन, फारसी और इतिहास साहित्य विषय के रूप में पढा था
जन्म | 13 जुलाई 1888 |
पिता का नाम | मुंशी अजायबराय |
माता का नाम | आनंदी देवी |
8 अक्टूबर 1936 | |
पत्नी का नाम | शिवरानी देवी |
कहानियां | अनेकों कहानियां लिखी |
जन्म स्थान | लमाही |
पितामह | मुंशी गुरुसहाय लाल, पटवारी |
मुंशी प्रेमचंद का जन्मकब हुआ था
मुंशी प्रेमचंद का जन्म 1888 ईस्वी में लमही नामक ग्राम में हुआ था
मुंशी प्रेमचंद के पिता का क्या नाम था
मुंशी प्रेमचंद के पिता का नाम मुंशी अजायबराय रहा था
मुंशी प्रेमचंद पहला शादी क्यों नहीं किया
मुंशी प्रेमचंद ने पहला शादी इसलिए नहीं किया क्योंकि उनकी पहली पत्नी बहुत ही झगड़ालू और बहुत ही कठोर दिल की थी इसलिए मुंशी प्रेमचंद एक शांति भाव के भक्त थे इसलिए उन्होंने उससे शादी नहीं किया
मुंशी प्रेमचंद की दूसरी पत्नी का क्या नाम था
मुंशी चांद की दूसरी पत्नी का नाम शिवरानी था
मुंशी प्रेमचंद के मां का क्या नाम था
मुंशी मां का नाम आनंद देवी था
मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु कब हुई
मुंशी मृत्यु 8 अक्टूबर 1936 ईस्वी को हुआ था