नदी की आत्मकथा इन हिंदी (nadi Ki Atmakatha In Hindi) - Rskg » Rskg

नदी की आत्मकथा इन हिंदी (nadi ki atmakatha in hindi) – rskg

नदी की आत्मकथा इन हिंदी (nadi ki atmakatha in hindi) नदी की आत्मकथा आज हम आप लोगों को बताएंगे जिससे आप लोग जानेंगे कि नदी की आत्मकथा क्या है नदी कहती है कि मैं हिमालय की चोटी से निकलती हूं मेरी उत्पत्ति बर्फ के पिघलने से होती है और यह जब बर्फ पिघलता है तो मैं पहाड़ियों के बीच से होकर निकलती हूं और मैं जैसे जैसे आगे निकलती हूं वैसे ही मैं और बड़ी होती जाती हूं और मैं कुछ क्षेत्रों से होकर गुजरती हैं जिससे वहां की फसल को मैं सोचती हूं और मेरी पानी से जीव जंतु पीते हैं और मैं और जैसे-जैसे आगे जाती हूं मेरा भी शालू रूप में बनता जाता रहता है और मैं एक दिन ऐसा होता है कि मैं पूरा जाकर समुंदर में जाता मिल जाती हूं और मैं समुंद्र में समाहित हो जाती हूं लेकिन मैं इंसान को बहुत ही सुविधा प्रदान करती हूं जैसे मेरे पानी से ही बिजली बनती है और मनुष्य उस बिजली से उपयोग करके बस तमाम उद्योग और तमाम कारोबार करते हैं और अगर बिजली ना हो तो मनुष्य का जीवन मानव नरक हो जाता है उनके कार्यों में बहुत से बाधा एवं कठिनाइयां पड़ने लगती हैं और उनका सारा धंधा ध्वस्त हो जाता है और मैं धीरे-धीरे नीचे गिरने लगते हैं देश की तरक्की की काम करते हैं क्योंकि मेरे द्रा बिजली बनाई जाती है और जब बिजली बनती है

तो बिजनेस पति लोग बिजनेस करते हैं और उसे देश चलता है लेकिन मैं बिजनेस के साथ-साथ किसानों को भी बहुत से लाभ देती हैं जैसे कृषि के क्षेत्र में मेरी भी बहुत बड़ी अहम भूमिका है जिसके कारण किसान भी बहुत खुश रहता है किसान अपनी फसलों को मेरे ही द्वारा सीखता है और मैं उसके फसलों की उत्पत्ति बढ़ाने का काम करती हूं और मेरे द्वारा ही उनके फसल हरे भरे होते हैं इसलिए वह किसानों को बहुत ज्यादा सुख सुविधा प्रदान करती हूं और मैं हर एक किसानों को अच्छी फसल उगाने में सहयोग करती हूं क्योंकि मेरे ही द्वारा फसल बेचकर किसान बीज बोता है और मैं उसे पका देती हूं पकने के बाद जब किसान वाह जब उस फसल को मार्केट में भेजता है काफी अच्छा मुनाफा होता है

IeLtMl1 qSA HD 22/03/2023

और किसान अपने अन्य पैदा करके अपने बच्चों बीव का पेट भरता है इसलिए मैं दोनों के लिए बहुत ही अच्छा काम करती हूं लेकिन मुझे लोग आज बहुत गंदा करते हैं जैसे उद्योगपति लोग कारखानों से बेकार पानी मुझ में छोड़ते हैं आप और उसमें प्लास्टिक पॉलिथीन इत्यादि लोग भेजते हैं जिसके कारण मैं अब बहुत दुखी हो गई हूं इसलिए वह लोगों को मैं जिनके लिए इतना करते हैं वही लोग मुझे इतना गंदा करते है

नदी की आत्मकथा हिंदी निबंध 80 words

नदी कहती है कि मैं इस संसार में हर एक मनुष्य हर एक प्राणी को बराबर एक ही निगाह से देखती हूं और मैं किसी के लिए नहीं मैं सबके लिए कार्य करती हूं और मैं अपने पानी से किसानों तथा जीव जंतु पानी पीकर हमारे पानी से संतुष्टि पाते हैं लेकिन मैं यह कहती हूं कि जो लोगों को मैं सुख सुविधा देते हैं वही लोग मुझे आज गंदी करते हैं और मैं किसानों से लेकर उद्योगपति तक की सब की मैं मैं किसानों के साथ-साथ उद्योगपतयों का भी बहुत ही लाभ देती हूं लेकिन वही लोग मुझे आज गद्दा करते हैं लेकिन मैं बिजनेसमैन को अत्यधिक लाभ देते हैं क्योंकि मेरे द्वारा ही बिजली उत्पन्न होती है और उस बिजली से हर एक प्राणी सुख में जीवन व्यतीत करता है और वह बहुत ही अच्छे ढंग से उसका जीवन फुलेरा होता है

बहुत ही अच्छे ढंग से उसका जीवन फुलेरा होता है क्योंकि बिजली के के द्वारा बहुत ही बिजनेस उद्योगपति करते हैं जैसे आज के दौर में देख लीजिए कंप्यूटर इत्यादि प्रिंटर मशीन इलेक्ट्रॉनिक सामान बनाने की बिल्डिंग करने में और बड़े-बड़े कारोबार करने में तथा फैक्ट्रियों में लाइट की बहुत ही महत्व ज्यादा रहती है क्योंकि अगर लाइट नहीं रहती है तो मानो फैक्ट्री दो कौड़ी की है क्योंकि लाइट में हर एक सामान लाइट के जरिए ही चलती है और कंपनी में इसका बहुत ही महत्व रहता है और यह सब कुछ नदी के जल से ही होता है क्योंकि नदी के जल को बांध बनाकर एक जगह एकत्रित करते हैं और इसके लिए वहां पर वह बिजली बनाने का कार्य करते हैं जिससे बिजली बड़ी आसानी से बनाकर में फैक्ट्रियों तथा कारोबार में लगाते हैं और उसी के जरिए से लोग बिजनेस करते हैं

और किसी के क्षेत्र में नदी का बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है क्योंकि नदी के द्वारा ही किसान अपनी सारी फसल उगाता है और यदि अगर उसे फसल के लिए पानी ना मिले तो मानो फसल वह होगा ही नहीं पाएगा असंभव है क्योंकि फसल के साथ-साथ उसमें पानी की भी बहुत ही अधिक मात्रा चाहिए क्योंकि जब फसल सूखने लगती है तो पानी के जरिए ही बचा जा सकता है और वह पानी नदियों के द्वारा या जिल के द्वारा चलाया जाता है तो इसलिए कृषि के क्षेत्र में भी पानी की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है इसलिए हमें करना चाहिए क्योंकि जल है तो कल है

नदी की आत्मकथा हिंदी में

नदी पहाड़ों से निकलती है और यह बर्फ के पिघलने से नदी निकलती है और यह पहाड़ों के बीच में छोटी हुआ करती है लेकिन या जैसे-जैसे आगे बढ़ती है और इधर उधर का पानी इकट्ठा होकर इसम मिल जाता है ऐसे ही अपना रौद्र रूप धारण कर लेती है और इसके जल से बहुत से वन्यजीव इत्यादि पानी पीकर अपनी संतुष्टि बुझाते हैं और जल में बहुत ही अधिक जीव जंतु रहते हैं जैसे मछली की किट इत्यादि जानवर जल में विचरण करते हैं तो यह जल में ही इनका वितरण संभव रहता है क्योंकि अगर इनको जल्द से बाहर निकालते हैं तो इनका तुरंत प्राण चला जाता है इसलिए नदी बार-बार यही कहती है कि मेरे द्वारा ही बहुत से अधिक ज्यादा ज्यादा मनुष्य आज के क्षेत्र में बढ़ा हुआ है यदि अगर मैं ना होती तो मनुष्य का जीवन लगभग लगभग ना होता और इसमें मैं कहता हूं कि अगर नदी ना होती तो मैं हम लोगों का जीवन संभव ही नहीं रहता इस पृथ्वी पर क्योंकि पानी के द्वारा ही हम पीते हैं और पानी से हम अपना प्यास बुझाते हैं

और पानी से ही हम भोजन बनाते हैं यह पानी हमारे जीवन में नहीं रहता तो हमारा जीवन संभव ना रहता है इसलिए पानी हमारे जीवन में बहुत ही अहम भूमिका निभाता है इसलिए कहा गया है जल है तो कल है या नारा सही लगाया गया है इसीलिए नदी की आत्मकथा है कि कृपया मैं आप लोगों को इतनी सुविधा देती हूं और आप लोग मुझे ही दूषित करते हैं मनुष्य किस प्रकार गंगा को दूषित करता है जैसे उसमें फैक्ट्रियों का दूषित पानी निकालकर और सड़े हुए चीजों को नदी में फेंका और पॉलिथीन इत्यादि चीजों का फेंका बार नदी को दूषित करता है

और वह उसकी पानी पीने के लिए योग्य नहीं है इस पर सरकार को बहुत ही लेना चाहिए और सरकार को या देखना चाहिए क्योंकि अगर पानी गंगा का दूषित रहेगा और हम लोग पिएंगे तो इससे हम लोग भी बीमारी के शिकार हो जाएंगे और हम बीमार पड़ जाएंगे इसलिए सरकार को इस पर बहुत ही सब तो होना चाहिए और सरकार इसके लिए फैक्ट्रियों वालों से क्या है कि उन्हें अगर फैक्ट्री का पानी दूषित निकालना है नदी में तो उसे फिल्टर करके ही निकाले

नदी की आत्मकथा हिंदी निबंध विकिपीडि

नदी की आत्मकथा आज हम आप लोगों को नदी की आत्मकथा पर निबंध लिखिए जिससे आप लोग बहुत ही आसानी से नदी की आत्मकथा समझए नदी आत्मकथा नदिया कहती है कि मैं पहाड़ों से निकलती हैं और मेरा उत्पन्न बर्फ के पिघलने से होता है और मैं जैसे जैसे आगे बढ़ती हूं वैसे वैसे मैं बड़ी होती जाती हूं और मैं अनेक जीव जंतुओं को पानी पीने के लिए योग्य हूं और मैं जानवरों के साथ-साथ मनुष्य के लिए भी बहुत ही उपयोगी क्योंकि मैं अपने जल के द्वारा किसानों की मां फसलों को सिद्धि हूं और क्योंकि अगर फसल को मेरे द्वारा ना सीखा जाए तो वह फसल ना हो पाएगा इसलिए मैं किसानों की फसल सिंचाई के लिए बहुत ही अहम भूमिका निभाती है और मेरे द्वारा किसान अपने खेतों की सिंचाई कर कर वह अच्छी कमाई और वह अपने परिवार का पालन पोषण करता है किसान के साथ-साथ में उद्योगपतियों को भी बहुत ही सुख सुविधा देती हूं

क्योंकि मेरे द्वारा ही बिजली का उत्पन्न किया जाता है और बिजली का उत्पन्न करने के बावजूद में तरह-तरह की फैक्ट्री में तरह-तरह की मशीनें चलकर वह उपयोग करते हैं और उसके जरिए से में तमाम पैसे कमाते हैं जिससे मैं बड़ी आसानी से पैसा कमा लेते हैं तो यह सब मेरे ही द्वारा होता है मैं मनुष्यों को इतना सुख सुविधा देती हूं और मैं इतना सुख सुविधा देती देती और आगे निकल जाती हूं और मैं उसमें मेरे में समाहित मछली और कुछ जीव जंतु रहते हैं मैं उनके लिए भी एक निवास की तरह काम करती हूं और मैं धीरे-धीरे आगर बढ़कर समुंद्र में जाकर मै समाहित हो जाती हूं

पानी की आत्मकथा हिंदी निबंध

आज मैं आप लोगों को पानी की आत्मकथा बताऊंगा पानी हकीकत आत्मकथा या होता है पानी कहता है कि मैं आदमियों की प्यास बुझाने के लिए कार्य करता हूं लेकिन मनुष्य मुझे ही आज दूषित करता है क्योंकि कहीं भी ले लिया नदी के द्वारा ही मुझे लाया जाता है और कंपनी में मुझे फिल्टर कर कर तरह-तरह के कट गए घरों में मुझे बांट देता है इस तरह बढ़ता है कि मैं कहीं बिसलेरी तो कहीं कुछ कहीं कुछ नाम की बन जाती है लेकिन मैं मनुष्य के लिए सदा उपयोगी रहती हूं क्योंकि मनुष्य प्यास के लिए हमेशा मुझे उपयोग करता है लेकिन वह मुझे ही दूषित करता है क्योंकि फैक्ट्रियों इत्यादि का जो होता है मुझ में ही वह समाहित कर देता है इसलिए मुझ में कचरा ना फिकर मुझे दूषित ना करें क्योंकि मैं आपके उपयोग के लिए हूं और मुझे आप उपयोग करके ही आप अपना जीवन चला पाते हैं क्योंकि मेरा उपयोग बहुत ही अहम भूमिका है

यहां तक आप जो खाना बनाते हैं वह खाने में भी मैं मिश्रित होकर मैं अपने द्वारा उस भोजन को बताती हूं और पकाने के बाद जब आप यूज करते हैं तो उसके बाद भी आप खाना खाने के लिए बैठते हैं और बैठने के बाद आप किसी लौटाया गिलास में पानी लेकर ही पढते हैं और आप लोग मुझे ही पीकर अपनी प्यास बुझाते हैं और यदि मैं ना होती तो आपका जीवन असंभव होता है इसलिए मुझे आप लोग को दूषित ना

नदी की आत्मकथा मराठी निबंध

नदीच्या आत्मचरित्रातून मी पुढे जातो आणि जसजसा मी पुढे जातो तसतसा मी मोठा होतो आणि मी काही भागांतून जातो जेणेकरून मी तिथल्या पिकांचा विचार करतो आणि प्राणी माझ्या पाण्यातून पितात आणि मी पुढे जातो आणि मी देखील शालूच्या रूपात बनत आहे आणि मी एक दिवस असे होते की मी भरून जातो आणि समुद्रात जातो आणि मी समुद्रात गढून जातो पण मी माणसाला खूप सुविधा देतो जसे माझे पाणी वीज निर्माण होते आणि माणूस त्या वीजेचा वापर सर्व उद्योग करण्यासाठी करतो आणि सर्व व्यवसाय आणि वीज नसेल तर मानवी जीवन नरक बनते, त्यांच्या कामात अनेक अडथळे आणि अडचणी येतात आणि त्यांचा संपूर्ण व्यवसाय उद्ध्वस्त होतो आणि मी हळूहळू खाली पडू लागतो, मी देशाच्या प्रगतीसाठी काम करतो कारण माझ्याकडे वीज आहे. . ती बनवली जाते आणि जेव्हा वीज निर्माण होते, तेव्हा उद्योगपती व्यवसाय करतात आणि त्यातून देश चालतो, परंतु मी शेतकर्‍यांना तसेच व्यवसायासाठी अनेक फायदे देतो,

जसे की कृषी क्षेत्रात माझी खूप महत्त्वाची भूमिका आहे, यामुळे शेतकरी माझ्या मार्फत शेतकरी आपली पिके शिकतो याचाही खूप आनंद होतो आणि मी त्याच्या पिकांचे उत्पादन वाढवण्याचे काम करतो आणि माझ्याद्वारे त्याची पिके हिरवीगार असतात, त्यामुळे तो शेतकऱ्यांना खूप दिलासा देतो आणि मी प्रत्येकाला मदत करतो. शेतकऱ्यांनी चांगले पीक घ्यायचे आहे कारण माझ्यामार्फत पीक विकून शेतकरी बियाणे पेरतो आणि मी ते शिजवतो, पिकल्यानंतर जेव्हा शेतकरी ते पीक बाजारात पाठवतो तेव्हा भरपूर नफा होतो आणि शेतकरी त्याचे उत्पादन घेतो.

इतर माझ्या मुलांचे आणि बायकोचे पोट भरतात, म्हणून मी या दोघांसाठी खूप चांगले काम करतो, पण आज लोक मला खूप घाणेरडे करतात जसे उद्योगपती कारखान्यांचे सांडपाणी माझ्यात सोडतात आणि तुम्ही त्यात प्लास्टिक पॉलिथीन वगैरे पाठवता, यामुळे मी आता खूप दुःखी झालो आहे म्हणूनच ती त्या लोकांना सांगते ज्यांच्यासाठी मी खूप काही करते. तेच लोक मला इतके घाण करतात

नदी की आत्मकथा कविता

नदी की कविता तथा आत्मकथा हम आप लोगों को आज बताएंगे मैं आप लोगों को अपने पाठ्यपुस्तक के जरिए से यह बताऊंगा इंटर 11 या 12 की क्लास में यह आपको कविता मिलेगा जो कब के द्वारा रचा गया है आर्य तथा आपको पढ़ने में बहुत ही आनंद आएगा क्योंकि यहां पूरा कविता नदी पर ही आधारित है

1.मैं नदी हूं हिमालय की गोद से बहती हूंतोड़कर पहाड़ों को अपने साहस सेसरल भाव से बहती हूं।लेकर चलती हूं मैं सबको साथचाहे कंकड़ हो चाहे झाड़बंजर को भी उपजाऊ बना दूऐसी हूं मैं नदी।बिछड़ों को मैं मिलातीप्यासे की प्यास में बुझातीकल-कल करके में बहतीसुर ताल लगाकर संगीत बजाती।कहीं पर गहरी तो कहीं पर उथली हो जातीना कोई रोक पाया ना कोई टोक पायामैं तो अपने मन से अविरल बहतीमैं नदी हूं।मैं नदी हूंसब सहती चाहे आंधी हो या तूफानचाहे शीत और चाहे गर्मीकभी ना रूकती, कभी ना थकतीमैं नदी सारे जहां में बहती

2.रो रही है गंगा, रो रहीना जाने क्यों धीरे-धीरे सो रही हैबह तो रही है पर ना जानेक्यों जहर हो रही है।बड़े-बड़े मैदानों में दौड़ने वालीना जाने क्यों सिकुड़ रही हैप्यास बुझाने वाली गंगा,आज ना जाने क्यों खुद ही प्यासी है।गंगा तू क्यों मुख मोड़ रही है,ना जाने क्यों धीरे-धीरे सो रही हैगूंगी सी हो कर ना जाने क्योंधीरे-धीरे चुप-चुप सी हो रही है।संस्कृतियों को अपने रंग में रंगने वालीना जाने अब क्यों बेरंग हो रही हैबंजर को उपवन करने वालीना जाने क्यों खुद ही जर्जर हो रही है।बावरी सी होकर ना जाने क्योंफंस गई है प्लास्टिक, प्रदूषण,बांधों और नहरो के जाल मेंढूंढ रही है अब खुद ही के किनारेरो रही है गंगा, रो रही है।आओ अब एक नई पहल करें गंगा को सजाने मेंमिलकर हाथ से हाथ मिलाए गंगा को बचाने मेंआओ जगाए सोयी हुई सरकारों कोआओ जगाए सोए हुए लोगों को।रो रही है गंगा, ना जाने क्यों धीरे-धीरे सो रही है

3.नदी ओ नदीनदी ओ नदी कहां बढ़ चलीजरा तो ठहर पहर दो पहरनदी ओ नदी कहां बढ़ चली।क्यों है इतनी तू बेसबरजरा तो ठहर पहर दो पहरकोई फूल-बूटा तो हरित हो सकेकोई जीव जरा तो तृप्त हो सके।जानते है तुझे जाकर मिलना है सागर सेकुछ जल भर तो ले कोई एक गागर सेजा के मिली तुम सागर से मतवालीउसी में समाकर जीवन गुजारो।अब जानते हैं नदी हो नदी तुममिल कर सागर से सागर ही कहलाओ

(2) नदी की आत्मकथा

1.नदी नदी कहती है कि मैं पहाड़ों की चोटियों से बर्फ के पिघलने से निकलते हैं और मैं जैसे धीरे-धीरे आगे बढ़ती हूं उसी प्रकार मै बड़ी होती जाती हूं और मेरे पानी को बहुत से जानवर जीव जंतु इत्यादि लोग सेवन करते हैं जिससे वह अपने प्यास को बुझाते हैं और मैं और आगे बढ़ जाती हूं और मेरे पानी के द्वारा ही किसान अपनी फसल की सिंचाई करता है हर सिंचाई के साथ-साथ वह अच्छी फसल अपने खेतों में होगा कर उसे बाजार में बेचकर अच्छे मुनाफा कमाता है जिससे उसके घर की खर्चा पानी चलता रहता है और जैसे जैस मैं आगे बढ़ती हूं वैसे ही मेरे द्वारा बिजली पैदा किया जाता है बिजली उत्पन्न होने के बाद मेरे द्वारा बहुत ही अनेक प्रकार काम करते हैं जैसे बिजली से अनेक प्रकार की फैक्ट्रियां चलाते हैं और अनेक प्रकार के उद्योग करते हैं जिसके द्वारा यह मेरे ही अहम भूमिका है और मैं ऐसे ऐसे करके और आगे बढ़ जाती हैं और 1 दिन में समुंदर में समाहित हो जाती हूं

2.एक दिन घाटियों को फाँदकर बाहर निकलने की मेरी इच्छा हुई घाटियों ने बहुत रोका, पर मैं मानती कैसे बड़ी मुसीबतों से चट्टानों को तोड़ती-फोड़ती आखिर मैं एक खुले स्थान पर पहुँच गई: यह स्थान मेरी जन्मभूमि की अपेक्षा बहुत नीचा था थकान के कारण मेरी गति धीमी पड़ गई यहाँ मेरे दोनों ओर हरी-भरी घास अपनी शोभा बिखेर रही थी एक दिन मैंने बहुत-से मनुष्यों को अपनी ओर आते हुए देखा वे मेरे किनारे पर झोपड़ियाँ बनाकर रहने लगे वे मुझमें स्नान करते, मेरे पानी से अपने कपड़े धोते और मेरा जल पीकर प्रसन्न रहने लगे धीरे-धीरे बहुत-से गाँव मेरे किनारे बस गए इस तरह मैं ‘लोकमाता’ बन गईमेरे तट पर धीरे-धीरे गाँवों की जगह अनेक नगर बनते गए। मैं सोचती थी कि जो मनुष्य एक दिन अपनी असंस्कृत अवस्था में मेरी शरण आया था, वह संस्कृति और सभ्यता के क्षेत्र में कितना आगे बढ़ गया है आज मनुष्य द्वारा बनाई गई ना मुझ पर चल रही हैं बड़े-बड़े जहाज भी मुझ पर घूमते रहते हैं मुझ पर पुल बाँधे जा रहे हैं बाँध बनाए जा रहे हैं मेरे जल से उत्पन्न बिजली द्वारा कल-कारखाने चलते हैं मेरे तट पर न जाने कितने मेलों और उत्सवों की धूम मची रहती है लोग मेरे तट पर आकर अपना दुख भूल जाते हैं बच्चे खेलते हैं, कवि कविताएँ रचते हैं और चित्रकार चित्र बनाते हैं वे मेरे हैं और मैं उनकी हूँ

नदी के पानी से क्या-क्या उत्पन्न होता है

नदी के पानी से बिजली उत्पन्न होती है तथा किसानों की खेती की सिंचाई

जल में कौन-कौन जीव जंतु रहते हैं

जल में मछली मगरमच्छ इत्यादि कीड़े मकोड़े रहते हैं

नदी कहां से निकलती है

नदी पहाड़ों से बर्फ के पिघलने से निकलती है

नदी किस को कह रहे कि मुझे गंदा मत करो

नदी इंसानों से विनती करती है कि मैं तुम्हें तरह-तरह की सुख-सुविधा उत्पन्न करती हूं और मुझे तुम गंदा करते हो

नदी किस जमीन को हरा भरा कर देती है

नदी बंजर जमीन से जब होकर गुजरती है तो वह उस जमीन को उपजाऊ बनाती है

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