वर्ण की परिभाषा character definition
वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं, जिसके खंड या टुकड़े नहीं किये जा सकते। जैसे– अ, ई, व, च, क, ख् इत्यादि। वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई है, इसके और खंड नहीं किये जा सकते।
‘राम’ और ‘गया’ में चार-चार मूल ध्वनियाँ हैं, जिनके खंड नहीं किये जा सकते- र + आ + म + अ = राम, ग + अ + य + आ = गया। इन्हीं अखंड मूल ध्वनियों को वर्ण कहते हैं। हर वर्ण की अपनी लिपि होती है। लिपि को वर्ण-संकेत भी कहते हैं। हिन्दी में 52 वर्ण हैं।
वर्णमाला की परिभाषा definition of alphabet
हिंदी भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि होती है। इसी ध्वनि को ही वर्ण कहा जाता है। वर्णों को व्यवस्थित करने के समूह को वर्णमाला कहते हैं। हिंदी में उच्चारण के आधार पर 45 वर्ण होते हैं। इनमें 10 स्वर और 35 व्यंजन होते हैं। लेखन के आधार पर 52 वर्ण होते हैं इसमें 13 स्वर, 35 व्यंजन तथा 4 संयुक्त व्यंजन होते हैं।

जिन वर्णों का उच्चारण करते समय साँस, कंठ, तालु आदि स्थानों से बिना रुके हुए निकलती है, उन्हें ‘स्वर’ कहा जाता है। व्यंजन जिन वर्णों का उच्चारण करते समय साँस कंठ, तालु आदि स्थानों से रुककर निकलती है, उन्हें ‘व्यंजन’ कहा जाता है। प्राय: व्यंजनों का उच्चारण स्वर की सहायता से किया जाता है। हिन्दी वर्णमाला के समस्त वर्णों को व्याकरण में दो भागों में विभक्त किया गया है- स्वर और व्यंजन। पंचमाक्षर अर्थात वर्णमाला में किसी वर्ग का पाँचवाँ व्यंजन। जैसे- ‘ङ’, ‘ञ’, ‘ण’ आदि। आधुनिक हिन्दी में पंचमाक्षरों का प्रयोग बहुत कम हो गया है और इसके स्थान पर अब बिन्दी (ं) का प्रचलन बढ़ गया है। हिन्दी वर्णमाला हिन्दी वर्णमाला के समस्त वर्णों को व्याकरण में दो भागों में विभक्त किया गया है- स्वर और व्यंजन।
वर्ण के भेद
- स्वर
- व्यंजन
स्वर की परिभाषा
जिन वर्णों को स्वतंत्र रूप से बोला जा सके उसे स्वर कहते हैं। परम्परागत रूप से स्वरों की संख्या 13 मानी गई है लेकिन उच्चारण की दृष्टि से 10 ही स्वर होते हैं।‘स्वर’ का अर्थ है, ऐसा वर्ण जिसका उच्चारण अपने आप हो सके, जिसको उच्चारण के लिए दूसरे वर्ण से मिलने की आवश्यकता न हो। स्वरों का दूसरा नाम ‘अच्’ भी है।
उच्चारण के आधार पर स्वर: अ, आ , इ , ई , उ , ऊ , ए , ऐ , ओ , औ आदि।
लेखन के आधार पर स्वर: अ, आ, इ , ई , उ , ऊ , ए , ऐ , ओ , औ , अं , अ: , ऋ आदि।
स्वर के भेद (sawar ke kitne bhed hote hain)
स्वर के दो भेद होते है।
- मूल स्वर
- संयुक्त स्वर
मूल स्वर: अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ओ
संयुक्त स्वर: ऐ (अ +ए) और औ (अ +ओ)
मूल स्वर के भेद OriginalVocaldistinction
मूल स्वर के तीन भेद होते है।
- ह्रस्व स्वर
- दीर्घ स्वर
- प्लुत स्वर
ह्रस्व स्वर- जिन स्वरों के उच्चारण में कम-से-कम समय लगता हैं उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं। ये चार हैं- अ, इ, उ, ऋ। ‘ऋ’ की मात्रा (ृ) के रूप में लगाई जाती है तथा उच्चारण ‘रि’ की तरह होता है। इन्हें मूल स्वर भी कहते हैं।
दीर्घ स्वर- जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से दुगुना समय लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। सरल शब्दों में- स्वरों उच्चारण में अधिक समय लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते है।
दीर्घ स्वर सात होते है -आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ। दीर्घ स्वर दो शब्दों के योग से बनते है।
जैसे- आ =(अ +अ )
ई =(इ +इ )
ऊ =(उ +उ )
ए =(अ +इ )
ऐ =(अ +ए )
ओ =(अ +उ )
औ =(अ +ओ )
प्लुत स्वर- जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से भी अधिक समय लगता है उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं। प्रायः इनका प्रयोग दूर से बुलाने में किया जाता है। सरल शब्दों में- जिस स्वर के उच्चारण में तिगुना समय लगे, उसे ‘प्लुत’ कहते हैं। इसका चिह्न (ऽ) है। इसका प्रयोग अकसर पुकारते समय किया जाता है। जैसे- सुनोऽऽ, राऽऽम, ओऽऽम्।
हिन्दी में साधारणतः प्लुत का प्रयोग नहीं होता। वैदिक भाषा में प्लुत स्वर का प्रयोग अधिक हुआ है। इसे ‘त्रिमात्रिक’ स्वर भी कहते
व्यंजन की परिभाषा definition of cuisine
जो वर्ण स्वरों की सहायता से बोले जाते हैं उन्हें व्यंजन कहते हैं। हर व्यंजन के उच्चारण में अ स्वर लगा होता है। अ के बिना व्यंजन का उच्चारण नहीं हो सकता। ऐसे वर्ण जिसका उच्चारण बिना किसी दूसरे वर्ण – अर्थात् स्वर से मिले बिना नही किया जा सकता, व्यंजन कहलाते है।ऊपर ‘क’ से लेकर ‘ह’ तक के सारे वर्ण व्यंजन कहलाते है। व्यंजनों की संख्या 33 होती है, जबकि कुल व्यंजन 35 होते हैं। दो उच्छिप्त व्यंजन एवं दो अयोगवाह होते हैं।
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व्यंजनों के भेद Distinctions of Cuisine
- स्पर्श व्यंजन
- अन्तस्थ व्यंजन
- उष्म व्यंजन
स्पर्श व्यंजन: क से लेकर म तक होते हैं। इनकी संख्या 25 होती हैं। प्रत्येक वर्ग में पांच अक्षर होते हैं।
क वर्ग : क ख ग घ ङ
च वर्ग : च छ ज झ ञ
ट वर्ग : ट ठ ड ढ ण
त वर्ग : त थ द ध न
प वर्ग : प फ ब भ म
अन्तस्थ व्यंजन: इनकी संख्या 4 होती है।
य, र, ल, व
उष्म व्यंजन: इनकी संख्या भी 4 होती है।
श, ष, स, ह
उच्छिप्त व्यंजन: यह 2 होते हैं।
ढ़, ड़
इनको द्विगुण व्यंजन भी कहा जाता है।
संयुक्त व्यंजन
क्ष – क् + ष्
त्र – त् + र्
ज्ञ – ज् + ञ्
श्र – श् + र्
कम्पन के आधार पर हिंदी वर्णमाला के भेद Differences of Hindi alphabet on the basis of vibration
कम्पन के आधार पर हिंदी वर्णमाला के दो भेद होते हैं।
- अघोष व्यंजन
- सघोष व्यंजन
अघोष व्यंजन: इनकी संख्या 13 होती है।
क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ, श, ष, स
सघोष व्यंजन: इनकी संख्या 31 होती है। इसमें सभी स्वर अ से ओ तक और व्यंजन –
- ग, घ, ङ
- ज, झ, ञ
- ड, ढ, ण
- द, ध, न
- ब, भ, म
- य, र, ल, व, ह
अल्पप्राण व्यंजन एवं महाप्राण व्यंजन undercooked dishes and aspirated dishes
उच्चारण के अनुसार व्यंजनों को दो भागों में बांटा गया हैं।
- अल्पप्राण व्यंजन
- महाप्राण व्यंजन
अल्पप्राण व्यंजन: ऐसे व्यंजन जिनको बोलने में कम समय लगता है और बोलते समय मुख से कम वायु निकलती है उन्हें अल्पप्राण व्यंजन कहते हैं। इनकी संख्या 20 होती है।
- क ग ङ
- च ज ञ
- ट ड ण ड़
- त द न
- प ब म
- य र ल व
महाप्राण व्यंजन: ऐसे व्यंजन जिनको बोलने में अधिक प्रत्यन करना पड़ता है और बोलते समय मुख से अधिक वायु निकलती है। उन्हें महाप्राण व्यंजन कहते हैं। इनकी संख्या 15 होती है।
- ख घ
- छ झ
- ठ ढ
- थ ध
- फ भ
- ढ़
- श ष स ह
विसर्ग की परिभाषा definition of exorcism
इसका उच्चारण ह् के समान होता है।इसका चिह्न (:) है।जैसे-अतः, प्रातः। सामान्यतः संस्कृत में विसर्ग का प्रयोग पुल्लिंग का बोध कराने के लिए होता है। जैसे-छात्रः,बालकः, धावकः इत्यादि।
इसके अतिरिक्त विभक्तियों के बोध के लिए भी विसर्ग का प्रयोग होता है।विभक्तियों में विसर्ग का प्रयोग सूत्रानुसार प्रत्येक लिंग में होता है।विभक्ति तथा वचन के अनुसार शब्दों में विसर्ग विभिन्न सूत्रों की सहायता तथा आदेश के अनुसार लगाए जाते हैं।
जैसे- अगर वाक्य है- “राम एक बालक है।” तो इसका संस्कृत अनुवाद होगा – रामः एकः बालकः अस्ति।
अगर वाक्य है- सीता एक बालिका है।। तो इसका संस्कृत अनुवाद इस प्रकार होगा – सीता एका बालिका अस्ति।
उपर्युक्त तीनों वाक्यों में भेद है। क्योंकि तीनों क्रमशः पुल्लिंग स्त्रीलिंग तथा नपुंसकलिंग हैं।पुल्लिंग में विसर्ग का प्रयोग है, किंतु शेष में विसर्ग का प्रयोग नही है। स्त्रीलिंग तथा नपुंसकलिंग शब्दों में भी विभक्तियों तथा वचनों के अनुसार विसर्ग का प्रयोग होता है। अतः कह सकते हैं कि विशेष रूप से पुल्लिंग में विसर्ग का प्रयोग होता है, लेकिन ये आवश्यक नही की प्रत्येक पुल्लिंग शब्द या वाक्य में विसर्ग हो। विसर्ग के प्रयोग के विषय में नियम होतें हैं।
अनुस्वार (बिंदु) की परिभाषा Definition of ‘point’
बिंदु (अनुस्वार) वे शब्द जिनका उच्चारण नाक से होता है, उन्हे अनुस्वार कहते हैं। जैसे = पंख। अनुस्वार एक उच्चारण की मात्रा है, जो अधिकांश भारतीय लिपियों में प्रयुक्त होती है। अनुस्वार स्वर के बाद आने वाला व्यंजन है। इसकी ध्वनि नाक से निकलती है।, अतः इसे नसिक या अनुनासिक कहते हैं। इसको कभी-कभी म (और अन्य) अक्षरों द्वारा भी लिखते हैं। इसका प्रयोग पंचम वर्ण के स्थान पर होता है।इसका चिन्ह (ं) है।जैसे- सम्भव=संभव, सञ्जय=संजय, गड़्गा=गंगा।
जैसे: कंबल ~ कम्बल; इंफाल ~ इम्फाल इत्यादि। देवनागरी में इसे, उदाहरण-स्वरूप, क पर लगाने से कं लिखा जाता है।
पंचम वर्णों के स्थान पर At the location of the fifth letter
अनुस्वार (ं) का प्रयोग पंचम वर्ण ( ङ्, ञ़्, ण्, न्, म् – ये पंचमाक्षर कहलाते हैं) के स्थान पर किया जाता है।
जैसे –
गड्.गा – गंगा
चञ़्चल – चंचल
झण्डा – झंडा
गन्दा – गंदा
कम्पन – कंपन
अनुस्वार शब्द percussion word
धूल– सुन्दर, पंक्ति, चकाचौंध, श्रृंगार, संसर्ग, वंचित, गंध, उपरांत, सौंदर्य, संस्कृति।
दुःख का अधिकार– बंद, बंधन , पतंग, संबंध, ज़िंदा, नंगा, अंदाज़ा, संभ्रांत।
एवरेस्ट मेरी शिखर यात्रा– कैंप, अधिकांश, संपूर्ण, सुन्दर, रंगीन, तंबू, नींद, ठंडी, पुंज, हिमपिंड, अत्यंत, कुकिंग, सिलिंडर, चिंतित, कौंधा, शंकु, लंबी, आनंद।
कीचड़ का काव्य– पसंद, गंदा, रौंदते, सींगो, खंभात, पंकज, कंठ।
धर्म की आड़– भयंकर, प्रपंच, शंख।
शुक्रतारे के समान- मंडल, मंत्री, सौंप, संक्षिप्त, अंग्रेजी, प्रशंसक, संचालक, ग्रंथकार, धुरंधर, संपन्न।
अनुनासिक (चंद्रबिन्दु) की परिभाषा Definition of nasal (crescent)
चंद्रबिन्दु (अनुनासिक) वे शब्द जिनका उच्चारण नाक और मुँह दोनों से होता है, उन्हे अनुनासिक कहते हैं।जिन स्वरों के उच्चारण में मुख के साथ-साथ नासिका की भी सहायता लेनी पड़ती है। अर्थात् जिन स्वरों का उच्चारण मुख और नासिका दोनों से किया जाता है वे अनुनासिक कहलाते हैं। जब किसी स्वर का उच्चारण नासिका और मुख दोनों से किया जाता है तब उसके ऊपर चंद्रबिंदु (ँ) लगा दिया जाता है। जैसे-हँसना, आँख,चाँद। इनका चिह्न चन्द्रबिन्दु (ँ) है।
अनुनासिक का प्रयोग Use of nasal
जिस प्रकार अनुनासिक की परिभाषा में बताया गया है, कि जिन स्वरों का उच्चारण मुख और नासिका दोनों से किया जाता है, वे अनुनासिक कहलाते हैं और इन्हीं स्वरों को लिखते समय इनके ऊपर अनुनासिक के चिह्न चन्द्रबिन्दु (ँ) का प्रयोग किया जाता है।
यह ध्वनि (अनुनासिक) वास्तव में स्वरों का गुण होती है। अ, आ, उ, ऊ, तथा ऋ स्वर वाले शब्दों में अनुनासिक लगता है।
जैसे –
कुआँ, चाँद, अँधेरा आदि।
अनुस्वार(बिन्दु)और अनुनासिका (चंद्रबिन्दु) में अंतर
अनुनासिका स्वर है, जबकि अनुस्वार मूलत: व्यंजन। इनके प्रयोग के कारण कुछ शब्दों के अर्थ में अंतर आ जाता है।
जैसे –
हंस (एक जल पक्षी), हँस (हँसने की क्रिया)।
अंगना (सुंदर अंगों वाली स्त्री), अँगना (घर के बाहर खुला बरामदा)
अनुनासिका (चंद्रबिंदु) को परिवर्तित नहीं किया जा सकता, जबकि अनुस्वार को वर्ण में बदला जा सकता है।
अनुनासिका का प्रयोग केवल उन शब्दों में ही किया जा सकता है, जिनकी मात्राएँ शिरोरेखा से ऊपर न लगी हों।
जैसे- अ, आ, उ, ऊ, ऋ
उदाहरण के रूप में – हँस, चाँद, पूँछ
शिरोरेखा से ऊपर लगी मात्राओं वाले शब्दों में अनुनासिका के स्थान पर अनुस्वार अर्थात बिंदु का प्रयोग ही होता है। जैसे – गोंद, कोंपल, जबकि अनुस्वार हर तरह की मात्राओं वाले शब्दों पर लगाया जा सकता है।
हलंत की परिभाषा Definition of Halant
जब कभी व्यंजन का प्रयोग स्वर से रहित किया जाता है तब उसके नीचे एक तिरछी रेखा (्) लगा दी जाती है।यह रेखा हल कहलाती है।हलयुक्त व्यंजन हलंत वर्ण कहलाता है।जैसे-विद् या।
हलंत किसी वर्ण के आधे होने का एक सूचक चिह्न है, जो उस वर्ण के नीचे लगाया जाता है, जैसे- पश्चात्। या शुद्ध व्यंजन जिसके उच्चारण में स्वर न मिला हो, हलंत कहलाता है। विशेष – व्यंजन दो रूपों में आते हैं – स्वरांत और हलंत ।
शब्द के हलन्त होने का पता शब्द के अंतिम अक्षर को देखने से लगता है । सही जानकारी के लिए मूल शब्द ( प्रातिपदिक ) देखना चाहिए, शब्द की विभक्ति रूप से सही जानकारी मिलना कठिन हो जाता है ।शब्द के अजन्त या हलन्त होने का पता शब्द के अंतिम अक्षर को देखने से लगता है । सही जानकारी के लिए मूल शब्द ( प्रातिपदिक ) देखना चाहिए, शब्द की विभक्ति रूप से सही जानकारी मिलना कठिन हो जाता है। साधारणतया कोई अक्षर, व्यंजन और स्वर का संयुक्त रूप होता है। जैसे : क = क् + अ इसलिए जो भी शब्द पूर्ण व्यंजन में अंत हो वह वास्तव में ‘अ’ की उपस्थिति के कारण स्वरान्त या अजन्त होगा ।
उदाहरण:
बालक = ब्+आ+ ल्+अ+क्+अ (स्वरान्त)अजन्त
गोपी = ग्+ओ+प्+ई (स्वरान्त) अजन्त
विद्वस् = व्+इ+द्+व्+स् (व्यंजनान्त)