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यण संधि किसे कहते है (yan sandhi ke udaharan in hindi)

यण संधि किसे कहते है (yan sandhi ke udaharan in hindi) – यण संधि के बारे में बताने वाला हूं तथा यण संधि के कितने भेद होते हैं इसके बारे में बताने वाला हूं तथा वाले संधि के उदाहरण बताने वाला हूं तो आप बिल्कुल मत परेशान हैं क्योंकि मैं आज आप लोगों को पसंद के बारे में सारी चीज बताने वाला हूं अगर आप ईयर संघ के सूत्र बनाना जानते नहीं हैं तो मैं आप लोगों को युवा संघ के सूत्र भी बताने वाला हूं जिससे आप लोगों को काफी पसंद आएगा और आप लोग जानकर बहुत ही आसानी के से यण संधि को वाक्य में प्रयोग कर लेंगे तो चलिए दोस्तों मैं आज आप लोगों को संघ के बारे में बताने वाला हूं और अगर आपको संत से कोई रिलेटेड जानकारी लेनी है तो कृपया हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर जरूर बताइए हैं और मैं आप लोगों को बताने का जरूर प्रयास करूंगा और करता रहूंगा

यण संधि किसे कहते है
यण संधि किसे कहते है

यण संधि के नियम

यण संधि की पहचानसंभवतः किसी शब्द में य, व, र, ल से पहले आधा वर्ण हो तो वहां यण संधि होती हैं।

अत्यधिक = अति+ अधिक

स्वच्छ = सु + अच्छ

अन्वय = अनु + अय

पित्राज्ञा = पितृ + आज्ञा

यण संधि की banane ki vidhi

इ/ई + असमान स्वर = य्

उ/ऊ + असमान स्वर = व्

ऋ + असमान स्वर  = र्

यण संधि के बनाने की विधि

जैसे

जब लघु (ह्रस्व) इ और दीर्घ ई के बाद कोई असमान स्वर आये तो इ, ई की जगह ‘य्’ हो जाता हैं।

उदाहरण

अति+ अधिक = अत्यधिक

अधि + अक्ष = अध्यक्ष

अभि + अर्थी = अभ्यर्थी

परि + अटन = पर्यटन

प्रति + अय = प्रत्यय

वि + आकुल = व्याकुल

परि + आवरण = पर्यावरण

जिस प्रकार से ऊपर के उदाहरण में देख सकते हैं कि “इ, ई के स्थान पर अ या आ आता है तो “य” बन जाता है। मुख्य रूप से देखा जाए तो इ, ई और अ व आ दोनों ही स्वर है और इन दोनों के बीच संधि होती है, तो य बन जाता है।

बनाने की विधि

जब उ/ऊ के बाद कोई अन्य स्वर आये तो उ/ऊ के स्थान पर ‘व’ हो जाता है।

उदाहरण

अनु + अय = अन्वय

सु + अस्ति = स्वस्ति

सु + आगत = स्वागत

धातु + इक = धात्विक

अनु + ईक्षा = अन्वीक्षा

वधू + आगमन = वध्वागमन

जिस प्रकार से ऊपर के उदाहरण में देख सकते हैं कि उ, ऊ के स्थान पर अ, आ या अन्य स्वर आता है तो “व” बन जाता है। मुख्य रूप से देखा जाए तो उ,ऊ और अ तथा आ एवं अन्य स्वर जिनके बीच संधि होती है तो व बन जाता है।

बनाने की विधि

जब ऋ के बाद में कोई भी असमान स्वर हो तो ‘ऋ’ के स्थान पर ‘र’ हो जाता हैं।

मातृ + आज्ञा = मात्राज्ञा

मातृ + आदेश = मात्रादेश

पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा

पितृ + आनंद = पित्रानंद

जिस प्रकार से ऊपर के उदाहरण में देख सकते हैं कि “ऋ” के स्थान पर “कोई स्वर” आता है तो “र” बन जाता है। मुख्य रूप से देखा जाए तो ऋ और अन्य स्व के बीच संधि होती है तो र बन जाता है।

यण संधि के उदाहरण

  • अति + अधिक : अत्यधिक (इ + अ = य)
  • प्रति + अक्ष : प्रत्यक्ष (इ + अ = य)
  • प्रति + आघात : प्रत्याघात (इ + आ = या)
  • अति + अंत : अत्यंत (इ + अ = य)

अति + आवश्यक : अत्यावश्यक (इ + आ = या)

यण संधि की परिभाषा

जब संधि करते समय इ, ई के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ य ‘ बन जाता है, जब उ, ऊ के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ व् ‘ बन जाता है , जब ऋ के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ र ‘ बन जाता है।

यण संधि के उदाहरण

अधि + आय : अध्याय (इ + आ = या)

जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं इ एवं आ वह दो स्वर हैं जिनसे मुख्यतः संधि करने पर शब्दों में परिवर्तन आ रहा है। जब शब्दों कि संधि हो रही है तो ये दोनों स्वर मिलकर या बना देते हैं। अधि और आय का अध्याय बन जाता है। अतः यह उदाहरण यण संधि के अंतर्गत आएगा।

अनु + एषण : अन्वेषण (उ + ए = व्)

जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं उ एवं ए वह दो स्वर हैं जिनसे मुख्यतः संधि करने पर शब्दों में परिवर्तन आ रहा है। जब शब्दों कि संधि हो रही है तो ये दोनों स्वर मिलकर व बना देते हैं। अनु और एषण का अन्वेषण बन जाता है। अतः यह उदाहरण यण संधि के अंतर्गत आएगा।

अधि + अयन : अध्ययन (इ + अ = य)

जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं इ एवं अ वह दो स्वर हैं जिनसे मुख्यतः संधि करने पर शब्दों में परिवर्तन आ रहा है। जब शब्दों कि संधि हो रही है तो ये दोनों स्वर मिलकर य बना देते हैं। अधि और अयन का अध्ययन

यण संधि के अपवाद

यण संधि के अपवाद जब हृस्व इ, उ, ऋ या दीर्घ ई, ऊ, ॠ के बाद कोई असमान स्वर आये, तो इ, ई के स्थान पर ‘य्’ तथा उ, ऊ के स्थान पर ‘व्’ और ऋ, ॠ के स्थान पर ‘र्’ हो जाता है इसे यण् संधि कहते है

जब हृस्व इ, उ, ऋ या दीर्घ ई, ऊ, ॠ के बाद कोई असमान स्वर आये, तो इ, ई के स्थान पर ‘य्’ तथा उ, ऊ के स्थान पर ‘व्’ और ऋ, ॠ के स्थान पर ‘र्’ हो जाता है। इसे यण् संधि कहते हैँ।
यहाँ यह ध्यातव्य है कि इ/ई या उ/ऊ स्वर तो ‘य्’ या ‘व्’ मेँ बदल जाते हैँ किँतु जिस व्यंजन के ये स्वर लगे होते हैँ, वह संधि होने पर स्वर–रहित हो जाता है। जैसे– अभि+अर्थी = अभ्यार्थी, तनु+अंगी = तन्वंगी। यहाँ अभ्यर्थी मेँ ‘य्’ के पहले ‘भ्’ तथा तन्वंगी मेँ ‘व्’ के पहले ‘न्’ स्वर–रहित हैँ। प्रायः य्, व्, र् से पहले स्वर–रहित व्यंजन का होना यण् संधि की पहचान है। जैसे–
इ/ई+अ = य
यदि+अपि = यद्यपि
परि+अटन = पर्यटन
नि+अस्त = न्यस्त
वि+अस्त = व्यस्त
वि+अय = व्यय
वि+अग्र = व्यग्र
परि+अंक = पर्यँक
परि+अवेक्षक = पर्यवेक्षक
वि+अष्टि = व्यष्टि
वि+अंजन = व्यंजन
वि+अवहार = व्यवहार
वि+अभिचार = व्यभिचार
वि+अक्ति = व्यक्ति
वि+अवस्था = व्यवस्था
वि+अवसाय = व्यवसाय
प्रति+अय = प्रत्यय
नदी+अर्पण = नद्यर्पण
अभि+अर्थी = अभ्यर्थी
परि+अंत = पर्यँत
अभि+उदय = अभ्युदय
देवी+अर्पण = देव्यर्पण
प्रति+अर्पण = प्रत्यर्पण
प्रति+अक्ष = प्रत्यक्ष
वि+अंग्य = व्यंग्य
इ/ई+आ = या
वि+आप्त = व्याप्त
अधि+आय = अध्याय
इति+आदि = इत्यादि
परि+आवरण = पर्यावरण
अभि+आगत = अभ्यागत
वि+आस = व्यास
वि+आयाम = व्यायाम
अधि+आदेश = अध्यादेश
वि+आख्यान = व्याख्यान
प्रति+आशी = प्रत्याशी
अधि+आपक = अध्यापक
वि+आकुल = व्याकुल
अधि+आत्म = अध्यात्म
प्रति+आवर्तन = प्रत्यावर्तन
प्रति+आशित = प्रत्याशित
प्रति+आभूति = प्रत्याभूति
प्रति+आरोपण = प्रत्यारोपण
वि+आवृत्त = व्यावृत्त
वि+आधि = व्याधि
वि+आहत = व्याहत
प्रति+आहार = प्रत्याहार
अभि+आस = अभ्यास
सखी+आगमन = सख्यागमन
मही+आधार = मह्याधार
इ/ई+उ/ऊ = यु/यू
परि+उषण = पर्युषण
नारी+उचित = नार्युचित
उपरि+उक्त = उपर्युक्त
स्त्री+उपयोगी = स्त्र्युपयोगी
अभि+उदय = अभ्युदय
अति+उक्ति = अत्युक्ति
प्रति+उत्तर = प्रत्युत्तर
अभि+उत्थान = अभ्युत्थान
आदि+उपांत = आद्युपांत
अति+उत्तम = अत्युत्तम
स्त्री+उचित = स्त्र्युचित
प्रति+उत्पन्न = प्रत्युत्पन्न
प्रति+उपकार = प्रत्युपकार
वि+उत्पत्ति = व्युत्पत्ति
वि+उपदेश = व्युपदेश
नि+ऊन = न्यून
प्रति+ऊह = प्रत्यूह
वि+ऊह = व्यूह
अभि+ऊह = अभ्यूह
इ/ई+ए/ओ/औ = ये/यो/यौ
प्रति+एक = प्रत्येक
वि+ओम = व्योम
वाणी+औचित्य = वाण्यौचित्य
उ/ऊ+अ/आ = व/वा
तनु+अंगी = तन्वंगी
अनु+अय = अन्वय
मधु+अरि = मध्वरि
सु+अल्प = स्वल्प
समनु+अय = समन्वय
सु+अस्ति = स्वस्ति
परमाणु+अस्त्र = परमाण्वस्त्र
सु+आगत = स्वागत
साधु+आचार = साध्वाचार
गुरु+आदेश = गुर्वादेश
मधु+आचार्य = मध्वाचार्य
वधू+आगमन = वध्वागमन
ऋतु+आगमन = ऋत्वागमन
सु+आभास = स्वाभास
सु+आगम = स्वागम
उ/ऊ+इ/ई/ए = वि/वी/वे
अनु+इति = अन्विति
धातु+इक = धात्विक
अनु+इष्ट = अन्विष्ट
पू+इत्र = पवित्र
अनु+ईक्षा = अन्वीक्षा
अनु+ईक्षण = अन्वीक्षण
तनु+ई = तन्वी
धातु+ईय = धात्वीय
अनु+एषण = अन्वेषण
अनु+एषक = अन्वेषक
अनु+एक्षक = अन्वेक्षक
ऋ+अ/आ/इ/उ = र/रा/रि/रु
मातृ+अर्थ = मात्रर्थ
पितृ+अनुमति = पित्रनुमति
मातृ+आनन्द = मात्रानन्द
पितृ+आज्ञा = पित्राज्ञा
मातृ+आज्ञा = मात्राज्ञा
पितृ+आदेश = पित्रादेश
मातृ+आदेश = मात्रादेश
मातृ+इच्छा = मात्रिच्छा
पितृ+इच्छा = पित्रिच्छा
मातृ+उपदेश = मात्रुपदेश
पितृ+उपदेश = पित्रुपदेश

यण संधि के महत्वपूर्ण उदाहरण

नियम 1. इ, ई के आगे कोई विजातीय (असमान) स्वर होने पर इ ई को ‘य्’ हो जाता है।इ + आ = य् –> अति + आचार: = अत्याचार:
इ + अ = य् + अ –> यदि + अपि = यद्यपिई + आ = य् + आ –> इति + आदि = इत्यादि।ई + अ = य् + अ –> नदी + अर्पण = नद्यर्पणई + आ = य् + आ –> देवी + आगमन = देव्यागमननियम 2. उ, ऊ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर उ ऊ को ‘व्’ हो जाता है।उ + आ = व् –> सु + आगतम् = स्वागतम्
उ + अ = व् + अ –> अनु + अय = अन्वयउ + आ = व् + आ –> सु + आगत = स्वागतउ + ए = व् + ए –> अनु + एषण = अन्वेषणनियम 3. ‘ऋ’ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर ऋ को ‘र्’ हो जाता है। इन्हें यण-संधि कहते हैं।ऋ + अ = र् + आ –> पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञानियम 4. ‘ल्र’ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर ऋ को ‘ल्’ हो जाता है। इन्हें यण-संधि कहते हैं।ल्र + आ = ल् –> ल्र + आक्रति = लाक्रति

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